मनोज त्यागी

मनोज त्यागी
काला सोना बचाने की जंग
Posted on 31 Dec, 2013 01:13 PM
झारखंड की कर्णपुरा घाटी में धरती के नीचे दबे कोयले को हड़पने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां लंबे अरसे से जुटी हुई हैं। लेकिन अब वहां के स्थानीय बाशिंदों ने अपनी इस खनिज संपदा को बचाने के लिए कमर कस ली है। सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने भी उनका उत्साह बढ़ाया है। इस उभरते आंदोलन का जायजा ले रहे हैं मनोज त्यागी।

कर्णपुरा घाटी में आराहरा जैसे दो सौ पाच गांव हैं जिनकी जमीन के नीचे ऐसा ही काला सोना मौजूद है। इन गांवों में साढ़े तीन लाख की आबादी रहती है। एनटीपीसी के अलावा पैंतीस और देशी विदेशी कंपनियों को सरकार इन गांवों की जमीन को कोयला ब्लाकों में तब्दील कर अब तक आबंटित कर चुकी है। यहां जमीन के अधिग्रहण की पुरजोर कोशिश कंपनियां कर रही हैं, पर इन गांवों के किसान हकीकत समझ गए हैं। उन्होंने अपने नजदीक में पहले खुली खदानों से विस्थापित हुए किसानों का दर्दनाक हाल देखा है। वे दहशत में हैं। शायद इसी दहशत से उनमें एक नया संकल्प उभर रहा है। झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़का गांव प्रखंड में कर्णपुरा घाटी के बीच में स्थित है आराहरा गांव। पूरे गांव के नीचे काला सोना कहे जाने वाले बेशकीमती कोयले का विशाल भंडार है। रांची के सेंट्रल प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआईएल) के अध्ययन के मुताबिक यहां एक एकड़ जमीन के नीचे औसतन एक लाख से ढाई लाख टन कोयला भंडार है जिसका बाजार मूल्य करीब साठ करोड़ रुपए बैठता है। यहां कोयला खनन के लिए जमीन के अंदर खान नहीं बनानी पड़ती, ऊपर की तीन-चार फुट मिट्टी हटा देने से कोयले की परत चमकाने लगती है औऱ उसे गैंती से तोड़कर या हल्का-फुल्का विस्फोट करके उखाड़ा जा सकता है।
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