मनीष राजनकर

मनीष राजनकर
जल का भंडारा
Posted on 03 Oct, 2012 04:43 PM

लेकिन इसी महाराष्ट्र में एक ऐसा भी इलाका है जो अकाल को अपने गांव की सीमा के बाहर ही रखता है। पानी सहेजने की एक लंबी सामाजिक परंपरा निभाते हुए यह अपनी गुमनामी में भी मस्त रहता है।अकाल की पदचाप सुनाई देने लगी है। पानी के अकाल के साथ-साथ इंसानियत के अकाल की खबरें भी अखबारों में आने लगी हैं। इस अकाल को और ज्यादा भयानक बनाने के लिए महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने पहले से ही कमर कस ली थी! सन् 2003 में महाराष्ट्र राज्य की जलनीति तैयार हुई थी। इस नीति में पानी के इस्तेमाल का क्रम बदल डाला था। केंद्र सरकार की नीति में पहली प्राथमिकता पीने के पानी की, दूसरी खेती की और उसके बाद उद्योगों की रखी गई है। पर महाराष्ट्र सरकार ने इस क्रम को बदल कर पहली प्राथमिकता पीने के पानी को दी, दूसरी उद्योगों को और उसके बाद अंतिम खेती को।

बात यहीं तक सीमित नहीं थी। महाराष्ट्र जल क्षेत्र सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत सन् 2005 में दो कानून बहुत आनन फानन में बना दिए गए थे। पहला था महाराष्ट्र जल नियामक प्राधिकरण अधिनियम और दूसरा सिंचाई में किसानों की सहभागिता अधिनियम। पहले कानून का आधार लेकर महाराष्ट्र में जल नियामक प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण पानी की दरों को तय करेगा, जल वितरण करेगा और जल संबंधी विवादों का निपटारा भी वही करेगा अब। ये सारे काम अब तक शासन करता था। अब तीन लोगों का प्राधिकरण इन कामों को करेगा। प्राधिकरण ने पहले काम की शुरूआत भी बड़ी जल्दी कर दी यानी पानी के दरें तय करना। बड़े पैमाने पर पानी के इस्तेमाल के लिए किस तरीके से दरें तय हों यह बताने के लिए ए.बी.पी. इन्फ्रास्ट्रकचर प्रा. लि. नामक कंपनी को टेंडर निकाल
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