मिथिलेश वामनकर

मिथिलेश वामनकर
सुरक्षित-ऊर्ज़ा तथा पर्य़ावरण
Posted on 23 Jul, 2011 04:15 PM

ग्लोबल-वार्मिंग(विश्विक-भूताप) की गंभीर चुऩौती का सामऩा करऩे के लिय़े भारत- ऊर्ज़ा के वैकल्पिक

भूकंप
Posted on 22 Jul, 2011 04:06 PM
भूकंप आज भी ऐसा प्रलय माना जाता है जिसे रोकने या काफी समय पहले सूचना देने की कोई प्रणाली वैज्ञानिकों के पास नहीं है। प्रकृति के इस तांडव के आगे सभी बेबश हो जाते हैं। सामने होता है तो बस तबाही का ऐसा मंजर जिससे उबरना आसान नहीं होता है। अभी तो चीन में ही आए भूकंप को देख लीजिए। भरी दुपहरिया में जब लोग या तो अपने काम पर थे या फिर घरों में औरतें-बच्चे अपनी बेफिक्र जिंदगी में आने वाले इस मौत के तांडव से
तेल ने किया पर्यावरण का तेल
Posted on 18 Mar, 2011 10:27 AM

जिस पेट्रोलियम को आधुनिक सभ्यता का अग्रदूत कहा जाता हैं, वह वरदान है अथवा अभिशाप है, क्योंकि इस

सुरक्षित-ऊर्जा तथा पर्यावरण
Posted on 17 Mar, 2011 04:49 PM

हाल की एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की ओर से हो रही ग्लोबल वॉर्मिंग या वै

पर्यावरण के विभिन्न घटक
Posted on 17 Mar, 2011 02:02 PM

हम ‘पर्यावरण’ शब्द से परिचित हैं। इस शब्द का प्रयोग टेलीविजन पर, समाचार पत्रों में तथा हमारे आस-पास लोगों द्वारा प्राय: किया जाता है। हमारे बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि अब वह पर्यावरण/वातावरण नहीं रहा जैसा कि पहले था, दूसरे कहते हैं हमें स्वस्थ पर्यावरण में काम करना चाहिए। ‘पर्यावरणीय’ समस्याओं पर चर्चा के लिए विकसित एवं विकासशील देशों के वैश्विक सम्मेलन भी नियमित रूप से होते रहते हैं। इस आलेख म

भारत का जल संसाधन
Posted on 25 Feb, 2009 10:05 AM

संपादक- मिथिलेश वामनकर/ विजय मित्रा

Rainwater harvesting natural method
ज्वालामुखी
Posted on 23 Jul, 2011 04:28 PM
इंसान ने प्रकृति पर विजय पाने के सारे हथियार आजमा लिए हैं। मगर आज भी वह इसमें पूरी तरह से असफल रहा है। प्रकृति आज भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि में अपनी प्रचण्ड ताकत का अहसास कराती रहती है। चाहे वह किसी भयंकर तूफान के रूप में हो या भूकंप या फिर ज्वालामुखी के रूप में। इतिहास गवाह है कि इस पृथ्वी पर ज्वालामुखी पर्वतों ने कई सभ्यताओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
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