लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी
घर की ऐतिहासिक याद
Posted on 18 Feb, 2015 03:28 PMजब हम घर बनाते हैंतब आकाश को गुफा में बदल रहे होते हैं
उतनी जमीन पर जंगल या खेती को कम कर रहे होते हैं
हमारा स्वभाव एकदम उस घर जैसा होता जाता है
जिसमें जंगल, जानवर और गुफाएं शामिल रही हों
वीराने ने जड़ जमाये किसी खंडहर में
जैसे कोई वनस्पति खिलने-खिलने को हो
हर नये में एक खंडहर होता है पहली बार टूटे दांत-सा
पनघट पर भगीरथ
Posted on 15 Oct, 2013 01:35 PM(1)आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
पवित्र पानी खाता है पछाड़
कटता है पहाड़ बनता है रास्ता
वेग, गति और प्रवाह से गंगा बन गई नदी
नदी की देह में मटमैला गाद
बनते जाते हैं फैलते जाते हैं दोआब
नदी के मुंह पर झाग ही झाग
आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
तल मल बहता है जैसे पुरखों के शव
पानी के पहिए पर पाँव और बीच भँवर घोड़े
चुल्लू की आत्मकथा
Posted on 19 Jan, 2014 04:41 PMमैं न झील न ताल न तलैया,न बादल न समुद्रमैं यहां फंसा हूँ इस गढै़या में
चुल्लू भर आत्मा लिए,सड़क के बीचों-बीच
मुझ में भी झलकता है आसमान
चमकते हैं सूर्य सितारे चांद
दिखते हैं चील कौवे और तीतर
मुझे भी हिला देती है हवा
मुझ में भी पड़कर सड़ सकती है
फूल-पत्तों सहित हरियाली की आत्मा