ज्ञानेश उपाध्याय

ज्ञानेश उपाध्याय
खेजड़ी का पेड़
Posted on 16 Sep, 2011 11:55 AM

जहां रूठ गया पानी
जहां उखड़ गए पेड़ों के पांव,
जहां चंद बूंदों की भीख को
रोते सूख गए पौधे।
वहां जम गया
रम गया
अकेला खेजड़ी।

खेजड़ी में देखता है मरुथल
कि कैसे होते हैं पेड़।
कितनी मीठी होती है छांव,
ठन्डे पत्ते और नर्म स्पर्श
और उनसे फूटती हवा।
क्या होता है,
जलते-तपते में वीरान में जीना।

×