ज्ञान चतुर्वेदी

ज्ञान चतुर्वेदी
पानी पर व्यंग्य कथाएं
Posted on 04 Mar, 2014 01:10 PM

(एक)


यहां पानी रुका हुआ था और नीचे वहां पानी के लिए हाहाकार था।
‘पानी छुड़वाइए साहब...’
‘क्यों जनाब?’
‘लोग प्यासे मर रहे हैं, इसीलिए...’
‘छोड़ दिया, तो बाढ़ से मर जाएँगे।’
‘इतना तो खैर आप क्या छोड़ेंगे... परंतु तनिक तो छोड़िए। सबको पानी तो बराबर मिल जाए...’

‘...तू कम्यूनिस्ट है क्या?’

गंगा में नाला
×