`घाघ´

`घाघ´
बरसा सौ कोस....
Posted on 20 Jan, 2009 07:42 AM

`घाघ´ कहें, बरसा सौ कोस....


अगर चींटियां नन्हें कदमों से बड़ी तेजी से चलते हुए अपने अंडों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहीं हों, कौवे भी महफूज स्थानों पर घौसलें खोज रहे हो, मोर मस्त होकर झूम रहे हों, टिटिहरी टी...टी..टी...करती घूम रही हो तो समझ लीजिए कि मानसून आने वाला है।

जीव जंतुओं की ये गतिविधियां मानसून के आने के प्रचलित और लोकप्रिय पूर्वानुमान हैं। उत्तर भारत में बरखा रानी के आने का समय कवि `घाघ´ कुछ इस तरह बताते हैं -

दिन में बद्दर, रात निबद्दर
बहे पुरवइया,झब्बर-झब्बर
दिन में गरमी,रात में ओस
`घाघ´ कहें, बरसा सौ कोस

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