गिरीश नारायण पांडेय

गिरीश नारायण पांडेय
धरती जानती है
Posted on 11 Mar, 2014 09:51 AM
धरती जानती है
धरती वह सब भी जानती है
जो हम नहीं जानते।
युगों-युगों से तपी है यह धरती
लगातार तपस्यारत है, तप रही है।
किसी भी संत, महात्मा, ऋषि, ब्रह्मर्षि, फकीर, तीर्थकर, बोधिसत्व
अवतार, पैगम्बर या मसीहा से अधिक तपी है धरती
और अभी तक अंतर्धान नहीं हुई है
शायद असली अवतार, पैगम्बर या मसीहा धरती ही है।
नदी
Posted on 11 Mar, 2014 09:50 AM
मैं नदी हूं, मेरी लंबी कहानी है
कभी मेरी तो कभी तेरी जुबानी है।
खेतों खलिहानों रही बहती-घूमती
किसी को प्यासा देख होती परेशानी है।
पहाड़ों से उतर आयीं तुम्हारी पुकार पर
लेकिन जो हो रहा, देख कर हैरानी है
बस्तियां, सभ्यताएं मेरे गोद में बसीं
ये देखो ये गांव, ये राजधानी है।
मेरे अंदर जो बह रहा है जीवन द्रव
वह मेरा रक्त है, तुम कहते हो पानी है।
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