डॉ. किशोर पंवार

डॉ. किशोर पंवार
खेत का पानी खेत में तो घर का कचरा बगीचे में क्यों नहीं
Posted on 17 Nov, 2017 01:17 PM

सुरसा की तरह विकराल होती शहरी कचरे की समस्या का कोई हल ढूँढने की आवश्यकता है। इस मानव जनित उपभोक्तावादी संकट से पार पाने के लिये नागरिकों को समन्वित प्रयास करने होंगे। कई छोटे-छोटे उपाय अपनाने होंगे। इनमें कचरे के सेग्रीगेशन से लेकर अपने घरों में कम्पोस्ट खाद बनाने के तरीके अपनाने होंगे। खेत का पानी खेत की तर्ज पर घरों का कचरा बगीचे में रखने की पैरवी करता प्रस्तुत आलेख।
तालाब
जैवविविधता से ही बचेगी मानवता
Posted on 03 Jun, 2010 03:07 PM

रेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर। इसके अलावा बसने वाले लोग भी तरह-तरह के। जीव-जंतुओं की यही विविधता वैज्ञानिक शब्दावली में जैवविविधता कहलाती है।

हमारी पृथ्वी तो एक ही है। परंतु इस एकता में अनेकता के कई नजारे देखे जा सकते हैं। भांति-भांति के जंगल, पहाड़, नदी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और तरह-तरह के लोग। जंगल व पहाड़ भी एक जैसे नहीं। कई किस्मों के। जंगल की बात करें तो कहीं सदाबहार तो कुछ जगहों पर शुष्क पर्ण पाती। कहीं मिश्रित भी। बर्फ के पहाड़ भी हैं और नग्न तपती चट्टानों वाले पहाड़ भी।

रेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर।
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