अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
प्रेमधारा
Posted on 08 Jul, 2013 01:21 PM
उसका ललित प्रवाह लसित सब लोको में है।
उसका रव कमनीय भरा सब ओकों में है।।
उसकी क्रिड़ा-केलि कल्प-लतिका सफला है।
उसकी लीला लोल लहर कैवल्य कला है।
मूल अमरपुर अमरता सदा प्रेमधारा रही।
वसुंधरा तल पर वही लोकोत्तरता से बही।।1।।

रवि किरणें हैं इसी धार में उमग नहाती।
इसीलिए रज तक को हैं रंजित कर जातीं।।
कला कलानिधी कलित बनी पाकर वह धारा।
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