अरविंद चतुर्वेद

अरविंद चतुर्वेद
एक समुंदर मेरे अंदर
Posted on 04 Oct, 2014 12:53 PM
एक समुंदर
मेरे अंदर
उमड़-घुमड़कर
ज्वार उठाता है
वह रोता है-
लोग समझते गाना गाता है

कितनी नदियों की
व्यथा-कथा को जिए समुंदर
कितनी सदियों के
खारे जल को पिए समुंदर
नीलेपन की ऊब भरी
खुद की विशालता
बोझ बन गई-
अब आसमान का नन्हा तारा
उसे लुभाता है

किसी नाव को
लहरों की बांहों में लेकर
बच्चे-सा
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