अमरनाथ

अमरनाथ
तालाबों के पुनरुद्धार से मिली विकास की राह
Posted on 23 Jul, 2015 11:27 AM
पचास साल पहले तक इन गाँवों में जरूरत के मुताबिक तालाब होते थे। पोखर ग्राम्य जीवन के अभिन्न अंग होते थे। इनसे कई प्रयोजन सिद्ध होते थे। बरसात के मौसम में वर्षाजल इनमें संचित होता था। बाढ़ आने पर वह पानी पहले तालाबों को भरता था। गाँव और बस्ती डूबने से बच जाते थे। अगर कभी बड़ी बाढ़ आई तो तालाबों के पाट, घाट मवेशियों और मनुष्यों के आश्रय स्थल होते थे। अगर बाढ़ नहीं आई तो अगले मौसम में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध होता था। कोसी तटबन्धों के बीच फँसा एक गाँव है बसुआरी। तटबन्ध बनने के बाद यह गाँव भीषण बाढ़ और जल-जमाव से पीड़ित हो गया। यहाँ भूतही-बलान नदी से बाढ़ आती थी जो अप्रत्याशित और भीषण बाढ़ के लिये बदनाम नदी है। अचानक अत्यधिक पानी आना और उसका अचानक घट जाना इसकी प्रकृति रही है। पर तटबन्ध बनने के बाद बाढ़ के पानी की निकासी में अवरोध आया और पानी अधिक दिन तक जमने लगा।

तटबन्ध बनने के पहले भी इस क्षेत्र में बाढ़ आती थी। कई बार पानी अधिक दिनों तक लगा रहता था और कई बार साल में पाँच-सात बार बाढ़ आ जाती थी। जिससे धान की फसल भी नहीं हो पाती थी या लहलहाती फसल बह जाती थी। धान का इलाक़ा कहलाने वाले इस क्षेत्र में ऐसी हालत निश्चित रूप से बहुत ही भयावह होती थी। पर धान की फसल नहीं हो, तब भी दलहन की उपज काफी होती थी। मसूर, खेसारी और तिसी की फसल में कोई खर्च भी नहीं होता था। गर्मी अधिक होने पर सिंचाई करनी पड़ती थी। जिसके लिये गाँव-गाँव में बने तालाब काम में आते थे।
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प्रदूषित नदियों की संख्या बढ़ी-नमामि गंगे परियोजना केवल दो नए पहल
Posted on 02 Jul, 2015 10:42 AM
गंगा सफाई योजना भी यमुना के साथ जुड़ी हुई है। योजना गंगा रिवर बेसि
polluted river
स्वच्छ गंगा मिशन : युवाओं की भागीदारी के लिये नेहरू युवा संगठन से करार
Posted on 19 Jun, 2015 04:19 PM

पेड़ पौधों के जरिए गंगा को साफ करने का विचार नया नहीं हैं। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान

swachh ganga mission
गंगा अगले वर्ष प्रदूषण मुक्त दिखेगी - उमा भारती
Posted on 19 Jun, 2015 03:32 PM
सुप्रीम की फटकार और हिदायत के मद्देनज़र नमामि गंगे कार्यक्रम की शु
Uma Bharti
अब मानसरोवर का पानी बोतलबन्द करेंगे
Posted on 19 Jun, 2015 02:41 PM

अब मानसरोवर का पानी बोतलबन्द करके बेचा जाएगा। तिब्बत में मानसोवर झील के एकदम निकट बॉटलिंग प्लांट लगाने की घोषणा हुई है। मानसरोवर का बोतलबन्द पानी भारत और दूसरे देशों के शिवभक्तों में बेचा जाएगा।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान हुई घोषणाओं में यह खबर दब सी गई। प्रोजेक्ट कम्प्यूटर निर्माता डेल के एशिया प्रशान्त क्षेत्र के प्रमुख अमित मिधा की पत्नी वैशाली मिधा लगा रही हैं। इसकी घोषणा 16 मई को हुई। मानसरोवर का पानी अक्टूबर तक भारत में बिकने लगेगा। बोतलों के ढक्कन रूद्राक्ष के बने होंगे। बोतलों पर शिव स्त्रोत लिखें होंगे। अर्थात शिवभक्तों को आकर्षित करने के उपायों के साथ यह कम्पनी पानी के बाजार में उतर रही है। बंगलुरु से संचालित न्यूज पोर्टल ‘स्वराज्य’ ने 11 जून को इस बारे में पत्रकार सहाना सिंह की रपट प्रकाशित की है।
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गंगा संग्रहालय के बाद वाटर एम्बुलेंस
Posted on 02 Jun, 2015 03:27 PM

पटना की गंगा में वाटर एम्बुलेंस चलेगा। पटना में ऐसी आकर्षक योजनाएँ अकसर सामने आती हैं। कुछ में काम भी होता है, कुछ अधूरी रह जाती हैं, कुछ सुनियोजित सोच नहीं होने के कारण बेकार हो जाती है। अभी रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के तहत गंगा घाटों का विकास किया जा रहा है। कई योजनाओं पर काम चल रहा है। इसबीच, गाँधीसेतु के महाजाम में उत्तर बिहार के मरीजों का फँसकर जान गँवा दे

water ambulance
जलबोर्ड की नीयत में सुराख
Posted on 05 Aug, 2011 04:07 PM

देश की राजधानी दिल्ली में जिस पेयजल की आपूर्ति की जाती है, उसमें नाले का पानी मिला होता है। यह बात दिल्ली नगरपालिका के एक सर्वेक्षण में उजागर हुई परन्तु इसे लेकर कोई सकारात्मक कारवाई नहीं हो पाई। अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष से चार सप्ताह के भीतर पेयजल आपूर्ति के बारे में जलापूर्ति की व्यवस्था को स्पष्ट करने की नोटिस दी है लेकिन वह सर्वेक्षण और इस नोटिस का नतीजा क्

jal board
भूजल में आर्सेनिक की रासायनिक यात्रा (Arsenic Contamination in Groundwater)
Posted on 03 Jun, 2016 04:31 PM

विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष

 


.बिहार में करीब चालीस साल पहले सिंचाई में भूजल का इस्तेमाल आरम्भ हुआ। लोग संशय से भरे थे। इसे ‘नरक से आने वाला पैशाचिक पानी’ ठहराया गया। लेकिन भूजल के इस्तेमाल का दायरा बढ़ता गया। इसमें सन 67-68 में अकाल का बड़ा योगदान था। तालाब और कुआँ खुदवाने की अपेक्षा नलकूप लगाना आसान और सस्ता था। बड़े पैमाने पर नलकूप लग गए।

पानी सर्वसुलभ होने का असर खेती पर पड़ा। अब धान की दो फसलें हो सकती थीं। लेकिन इस पानी में जहर आर्सेनिक छिपा था। इसका पता बहुत बाद में चल पाया। भूजल के अत्यधिक उपयोग से धरती के भीतर छिपा आर्सेनिक पानी में घुलकर बाहर आने लगा।

पूरे गाँव में कैंसर - नहीं जगी सरकार
Posted on 29 Feb, 2016 12:19 PM


धर्मेन्द्र की उम्र 21 साल भी नहीं हुई थी। 13 जनवरी को कैंसर से मारा गया। उसके कई अंगों में कैंसर फैल गया था। कैंसर का पता चलने के करीब चार महीने बाद कोलकाता के पीजीआई अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी माँ मीना देवी के सिर पर बालों के बीच करीब दो साल से एक फोड़ा हो गया है। पहले इससे कोई परेशानी नहीं थी। अब खून झलक रहा है। हाथ और पैर के नाखून पीले पड़ जाते हैं, फिर गिर जाते हैं।

धर्मेन्द्र के पिता अर्थात रामकुमार यादव स्वयं लगातार सरदर्द, शरीरदर्द से परेशान हैं। सिर्फ बैठे रहने का मन करता है। पर बैठे रहने से कैसे चलेगा? मजदूर आदमी हैं। पेट भरने के लिये दैनिक मजदूरी का असरा है। उनका गाँव ‘तिलक राय का हाता’ बक्सर जिले के सिमरी प्रखण्ड में गंगा के तट पर है।

सब्जी की खेती से मालामाल हो रहे विनाश के गर्त से निकले लोग
Posted on 23 Aug, 2015 04:22 PM

भूगर्भ से जरूरत से अधिक पानी निकलने की सम्भावना अत्यल्प होती है। अभी इन 18 गाँवों के 123 किसान 64 एकड़ ज़मीन में सब्जी की खेती कर रहे हैं। 18 गाँवों के बीच यह कोई बड़ा आँकड़ा नहीं है। पर समेकित जल प्रबन्धन कार्यक्रम सब्जी की खेती तक सीमित नहीं है। उसने इलाके के लिये उपयुक्त फसलों और उपयुक्त विधियों के चयन किया। धान व गेहूँ की खेती के लिये श्रीविधि, एसवीआई और एसडब्ल्यूआई विधि में प्रशिक्षण की व्यवस्था की।

कोसी तटबन्धों के बीच फँसे बिहार के सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त और भयंकर सुखाड़ से पीड़ित गाँवों में गोभी, प्याज और मिर्च की लहलहाती फसल देखना जितना सुखद था, उतना ही आश्चर्यजनक भी। सुपौल जिले के मैनही गाँव में यह नजारा परम्परागत जलस्रोतों के समन्वित प्रबन्धन के साथ विभिन्न नवाचारों को अपनाने की वजह से दिख रहा है। यशस्वी इंजीनियर दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक ‘दुई पाटन के बीच’ के माध्यम से कोसी तटबन्धों के बीच फँसे 380 गाँवों और उनमें रहने वाली करीब 10 लाख लोगों की व्यथा-कथा उजागर होने पर मातमपूर्सी तो काफी हुई, पर संकटग्रस्त लोगों के कष्टों का टिकाऊ समाधान खोजने के प्रयास कम ही हुए।

इस तरह की कोशिश में जर्मनी की संस्था के सहयोग से जीपीएसवीएस, जगतपुर घोघरडीहा ने समेकित जल प्रबन्धन कार्यक्रम के माध्यम से टिकाऊ खेती और स्वस्थ्य जीवन का प्रयोग आरम्भ किया। इसके लिये ग्रामीण समुदाय को प्रेरित और संगठित किया गया।
vegetable farming
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