गंगा अगले वर्ष प्रदूषण मुक्त दिखेगी - उमा भारती

Uma Bharti
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सुप्रीम की फटकार और हिदायत के मद्देनज़र नमामि गंगे कार्यक्रम की शुरुआत जून 2014 में हुई। जिसमें पिछले अनुभवों के आधार पर तीन वर्ष, पाँच वर्ष और दस वर्ष में सम्पन्न होने वाले कार्यों की कार्ययोजना बनी है। उन परियोजनाओं और गतिविधियों में विभिन्न स्रोतों के प्रदूषण को कम करने के उपाय और नीतिगत पहल शामिल हैं। सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों आईआईटी के समूह ने ‘गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना-2015’ पेश की थी। गंगा के निर्मल होने के लक्षण अगले वर्ष अक्टूबर तक दिखने लगेंगे। यह दावा जल संसाधन मन्त्री उमा भारती ने किया है। नमामि गंगे परियोजना की प्रगति पर उन्हें भरोसा है। उन्होंने कहा कि परियोजना की पूरी लागत केन्द्र सरकार का वहन करेगी। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल के इस फैसले के कारण थोड़ा विलम्ब हुआ क्योंकि मन्त्रालय को वार्षिक वित्तीय योजना फिर से बनानी पड़ी। पर गंगा नदी से 50 करोड़ लोगों की आजीविका जुड़ी है।

घनी आबादी वाले बिहार और उत्तर प्रदेश की पूरी अर्थव्यवस्था इस पर निर्भर है। इसे देखते हुए और पुराने अनुभवों से सीखते हुए सरकार ने कार्यक्रम में अहम बदलाव किए हैं। सरकार ने गंगा नदी के किनारे बसे लोगों को स्वच्छ गंगा मिशन में शामिल करने पर ध्यान केन्द्रित किया है ताकि बेहतर और टिकाऊ नतीजे हासिल हो सकें।

राज्यों और ज़मीनी स्तर के संस्थान जैसे स्थानीय शहरी निकाय और पंचायती राज संस्थानों को शामिल करने पर पूरा ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा नेहरू युवा केन्द्र जैसे संगठन को इस काम से जोड़ने के प्रयास किए जाएँगे। परियोजना की सबसे उल्लेखनीय पहल जल जीवों और जल विविधता के संरक्षण के कार्यक्रम में वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के सहयोग लेने के प्रयास होंगे।

नमामि गंगे के तहत नदी के प्रदूषण को कम करने पर पूरा जोर होगा। इसमें प्रदूषण को रोकने और नालियों से बहने वाले कचरे के शोधन और उसे नदी से दूसरी ओर मोड़ने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। कचरा और सीवेज परिशोधन के लिये नई तकनीक की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा गंगा में प्रदूषण रोकने और इसे संरक्षित करने के लिये कानून लाने पर भी विचार हो रहा है ताकि गंगा निर्मल बनी रहे, फिर से मैली नहीं हो।

केन्द्रीय मन्त्रालयों, एजेंसियों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की व्यवस्था में सुधार लाने पर जोर होगा। शहरी विकास मन्त्रालय के तहत ढाँचागत सुविधाओं के विकास के कार्यक्रम भी चला जाएँगे। पेयजल, सफाई, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय के तहत चलने वाले कार्यक्रमों में निवेश किया जाएगा।

सुप्रीम की फटकार और हिदायत के मद्देनज़र नमामि गंगे कार्यक्रम की शुरुआत जून 2014 में हुई। जिसमें पिछले अनुभवों के आधार पर तीन वर्ष, पाँच वर्ष और दस वर्ष में सम्पन्न होने वाले कार्यों की कार्ययोजना बनी है। उन परियोजनाओं और गतिविधियों में विभिन्न स्रोतों के प्रदूषण को कम करने के उपाय और नीतिगत पहल शामिल हैं।

सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों आईआईटी के समूह ने ‘गंगा नदी घाटी प्रबन्धन योजना-2015’ पेश की थी। जिसने गंगा और उसकी सहायक नदियों के संरक्षण हेतु सात क्षेत्रों को प्राथमिकता दी है और 21 कार्रवाई बिन्दुओं की पहचान की है। इस वर्ष मई में केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने नमामि गंगे परियोजना की कार्ययोजना को मंजूरी प्रदान की।

गंगा की मुख्यधारा के तट के निकट स्थित चिन्हित नगरों में पहले ही कार्य शुरू कर दिए गए हैं। सम्बन्धित राज्यों के परियोजना प्रबन्धन समूहों से प्राथमिकता के आधार पर सीवेज प्रशोधन संयन्त्रों को शुरू करने का अनुरोध किया गया है ताकि इन नगरों के सीवेज गंगा नदी में न गिरे। दूषणकारी उद्योगों को वास्तविक स्थिति दिखने वाले उत्सर्जन निकासी मीटर लगाने के लिये कठोर आदेश दिये गए हैं। कठोर शर्तों के साथ अन्तिम समय सीमा को 30 जून तक बढ़ाया गया है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले 764 उद्योगों को सूचीबद्ध किया है। जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 501 एमएलडी कचरा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में डालती है। बोर्ड ने गंगा की मुख्य धारा में गिरने वाले 144 नालों की पहचान भी की है जो लगभग 6614 एमएलडी सीवेज, मलजल छोड़ते हैं।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने चमड़े की 98 इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है। केन्द्रीय बोर्ड ने 30 जून के पहले इकाइयों द्वारा रियल टाइम निगरानी व्यवस्था स्थापित करने का निर्देश दिया है। उसने गंगा में उत्सर्जन, मलजल के प्रवाह को रोकने के लिये क्षेत्रवार ‘शून्य तरल उत्सर्जन (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) के कार्यान्वयन हेतु समयबद्ध निर्देश जारी किए गए हैं।

कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) की ओर से लागू किया जाएगा। राज्यों में स्टेट प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप इस कार्यक्रम को लागू करेेंगे। जहाँ जरूरत होगी, एनएमसीजी फील्ड ऑफ़िस बनाएगा। कार्य की निगरानी के लिये तीन स्तरीय व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। राष्ट्रीय स्तर पर कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यबल का गठन किया जाएगा जिसे एनएमसीजी मदद करेगा।

राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की जाएगी जिसे स्टेट प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप सहायता करेगा। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में जिलास्तर पर कमेटी बनेगी। सभी गतिविधियों और परियोजनाओं की पूरी फंडिग केन्द्र करेगा। योजना पर पाँच वर्षों में 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे और इसे 2020 तक पूरा कर लेना है। राज्य सरकारों को आनुपातिक अंशदान नहीं देना होगा। इसके कारण मन्त्रालय की वित्तीय योजना फिर से तैयार करनी पड़ी जिसमें पहले चरण के कामों के लिये 12 हजार करोड़ आवंटित किये गए हैं।

अब तक के गंगा एक्शन प्लान की विफलता को ध्यान रखते हुए केन्द्र सरकार कम-से-कम दस साल तक इसकी सभी परिसम्पत्तियों के परिचालन और रखरखाव की व्यवस्था करेगा। गंगा में जिन स्थलों पर अधिक प्रदूषण है, वहाँ पीपीपी/एसपीवी के जरिए गंगा की सफाई की जाएगी। केन्द्र की इस योजना को अधिक मजबूत ढंग से लागू करने के लिये चार बटालियन गंगा इको फोर्स के गठन की योजना है। यह प्रादेशिक सैन्य इकाई होगी।

गंगा तट पर स्थित शहरी निकायों के साथ मिलकर ‘निर्मल गंगा सहभागिता’ नामक सतत् पहल आरम्भ किया गया है। इसका उद्देश्य नदी/नालों में ठोस कचरे को डम्प करने के चलते गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण के बारे में शहरी निकायों को संवेदनशील बनाना है। नालों से नदी में होने वाले ठोस कचरे के प्रवाह को रोकने के कार्य स्थानीय निकायों को सौंपने के लिये उनके साथ दीर्घकालीन समझौता किये जाएँगे।

गंगा में प्रदूषण को कम करने और इसका संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये प्राधिकरण के कार्यक्रमों के अमल पर नजर रखने और उनमें सामंजस्य बिठाने के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) का गठन किया गया। गंगा नदी के सन्दर्भ में योजना बनाने और सभी वर्तमान प्रयासों में सामंजस्य बिठाने का काम एनएमसीजी कर रहा है ताकि निर्धारित पर्यावरण मानकों को पूरा किया जा सके। स्थानीय निकाय इसके अलावा गंगा संरक्षण के साझा उद्देश्य को पाने के लिये कुछ खास गतिविधियों का जिम्मा ले सकते हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन स्थानीय निकायों के साथ सहमति करार करना चाहता है ताकि इस दिशा में कारगर और सार्थक प्रगति हो सके। प्रस्तावित करार का मसौदा अभी तैयार किया जा रहा है।

ठोस कचरे का प्रबन्धन, मलजल के शोधन के लिये नालों और शोधन उपकरणों का लगाना, उनका रखरखाव, नदी की धारा के आसपास 500 मीटर क्षेत्र में कूड़ा मुक्त क्षेत्र को बरकरार रखना, घाटों की साफ-सफाई के कार्य से स्वयंसेवी लोगों और युवाओं को जोड़ना इत्यादि कार्यों पर क़रीबी नजर रखना और उनका आयोजन करना शामिल है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल के शहरी निकायों और उद्योगों को गंगा में कचरे और प्रदूषित पानी का प्रवाह रोकने के लिये कठोर निर्देश जारी किए हैं। गंगा तट पर बसे 118 शहरों से रोज़ाना 363.6 करोड़ कचरा और 764 उद्योगों का रासायनिक कचरा इसमें प्रवाहित होता है। इनमें से 687 औद्योगिक इकाइयों को शोधन संयन्त्र लगाने या उन्नत बनाने के निर्देश जारी दिए गए हैं।

औद्योगिक कचरे पर काबू पाने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी युक्त यन्त्र लगाए जाएँगे। ऐसे उद्योगों को चिन्हित किया जा रहा है जो 15 मिनट से अधिक समय तक औद्योगिक कचरा प्रवाहित करते हैं। इसके अलावा पहले चरण में 678.23 एमएलडी क्षमता के 2546 किलोमीटर लम्बे सीवेज नेटवर्क तैयार करने के लिये 4974.79 करोड़ रुपए की लागत की 76 परियोजनाएँ मंजूर की गई है। स्वच्छ गंगा निधि स्थापित की गई है जिसके लिए 51 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकरण के चलते गंगा नदी बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो गई और प्रदूषण बढ़ता गया है। प्रदूषण को नियन्त्रित करने की योजनाओं की असफलता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में केन्द्र सरकार को दस वर्षों के भीतर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये कई निर्देश दिए थे।

उस निर्देश और धार्मिक आस्था का दोहन करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने सबसे पहले जल संसाधन मन्त्रालय का नाम बदलकर जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मन्त्रालय का गठन किया जिसके अन्तर्गत 29 सितम्बर 2014 को राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का गठन किया।

गंगा में प्रदूषण को कम करने और इसका संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये प्राधिकरण के कार्यक्रमों के अमल पर नजर रखने और उनमें सामंजस्य बिठाने के लिये राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) का गठन किया गया। गंगा नदी के सन्दर्भ में योजना बनाने और सभी वर्तमान प्रयासों में सामंजस्य बिठाने का काम एनएमसीजी कर रहा है ताकि निर्धारित पर्यावरण मानकों को पूरा किया जा सके।

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