पेड़ पौधों के जरिए गंगा को साफ करने का विचार नया नहीं हैं। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) वर्षों पहले इसकी शुरुआत की। उसने उत्तराखण्ड में प्रयोग किये हैं। पहले चरण में 36 जगहों पर जलीय पौधों से गंगा सफाई का अभियान आरम्भ हुआ। इन जगहों पर गन्दे नाले सीधे गंगा में प्रवाहित होते हैं। नालों के समीप विशेष प्रकार के पौधे रोपकर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के इस प्रयास के फल पाँच-दस साल ही दिख सकेंगे।
गंगा की स्थिति को सुधारने में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन और नेहरू युवा संगठन के बीच समझौता हुआ है। समझौता पत्र पर केन्द्रीय जल-संसाधन, नदी-विकास और गंगा-संरक्षण मन्त्री उमा भारती की उपस्थिति में 8 जून को हस्ताक्षर हुए।युवाओं में सार्वजनिक सम्पर्क गतिविधियों को प्रोत्साहन देने, चिकित्सीय पौधों और देशी प्रजाति के पेड़ों के वनरोपण के अभियान, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शौचालयों का निर्माण और सफाई, नदी में तैरते ठोस अपशिष्ट को दूर करने, जैव कृषि और स्वच्छ गाँव को प्रोत्साहित करने में दोनों संगठनों के बीच साझेदारी होगी।
इस अवसर पर उमा भारती ने कहा कि युवाओं को शामिल करके गंगा की सफाई को प्रोत्साहित करने का यह एक बेहतरीन अवसर है। नेहरू युवा केन्द्र के स्वयंसेवक गंगोत्री से गंगा सागर तक विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों, वृक्षों और चारा फसलों के पौधे लगाएँगे। इसके लिये एक स्वयंसेवक कोर भी स्थापित की जाएगी। स्वयंसेवक गंगा की सफाई के लिये भी कार्य करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह समझौता नदियों की पवित्रता और महत्ता के बारे में जागरुकता पैदा करेगा।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन एक स्वायत्त सोसाइटी है जो केन्द्र में वित्तीय योजना, निगरानी और समन्वय निकाय है। यह राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिये राज्यस्तर पर कार्यक्रम प्रबन्धन समूह की सहायता कर रहा है। प्रदूषण का निराकरण और गंगा नदी का संरक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये गंगा मिशन को हर तरह की कार्रवाई करने का अधिकार है।
नेहरू युवा संगठन युवा मामले और खेल मन्त्रालय के अधीन स्वायत्त संगठन है जो देश भर में फैले नेहरू युवा केन्द्रों के कार्यों की देखरेख करता है। इन केन्द्रों की स्थापना 1972 में हुई थी ताकि ग्रामीण युवकोें को राष्ट्र निर्माण के साथ अपने व्यक्तित्व और कौशल विकास के अवसर भी उपलब्ध हो सकें।
नेहरू युवा संगठन के युवाओं के मजबूत नेटवर्क की लाभ उठाते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन स्थानीय स्तर पर गतिविधियाँ लागू करने में इनकी सहायता लेना चाहता है। इससे जन भागीदारी के साथ गंगा की स्थिति सुधारने में सहायता मिलेगी।
पेड़ पौधों के जरिए गंगा को साफ करने का विचार नया नहीं हैं। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) वर्षों पहले इसकी शुरुआत की। उसने उत्तराखण्ड में प्रयोग किये हैं। पहले चरण में 36 जगहों पर जलीय पौधों से गंगा सफाई का अभियान आरम्भ हुआ। इन जगहों पर गन्दे नाले सीधे गंगा में प्रवाहित होते हैं। नालों के समीप विशेष प्रकार के पौधे रोपकर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के इस प्रयास के फल पाँच-दस साल ही दिख सकेंगे।
ग्रामीणों को भागीदारी के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस लिहाज से गंगा कार्य मन्त्री उमा भारती की पहल पर नेहरू युवा संगठन से करार होना महत्त्वपूर्ण है। मलजल शोधन संयन्त्रों की स्थापना, संचालन और परिणाम को देखते हुए जैविक समाधानों की तलाश करना लाज़िमी हो गया है।
उल्लेखनीय है कि अब तक जो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, उनमें केवल मलजल को शोधित करने की क्षमता है। जबकि शहरों के सीवेज में औद्योगिक उत्सर्जन भी रहता है जिसमें सीसा, कैडियम, क्रोमियम, निकल जैसी भारी धातुएँ मिली होती हैं। एसटीपी पानी में जैविक प्रदूषण तो कम करते हैं, लेकिन धातुएँ मौजूद रह जाती हैं। वे नदी के पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक हैं।
उद्योगों को ऐसे संयन्त्र लगाने होते हैं जो उनसे निकलने वाले रासायनिक अवशिष्ट का निपटारा कर सकें। उपयुक्त तकनीक से युक्त संयन्त्र खोजना और उसकी स्थापना व संचालन हर स्तर पर गड़बड़ी की सम्भावना होती है। यहीं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और जिला प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता होती है।
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Post By: RuralWater