जलबोर्ड की नीयत में सुराख

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देश की राजधानी दिल्ली में जिस पेयजल की आपूर्ति की जाती है, उसमें नाले का पानी मिला होता है। यह बात दिल्ली नगरपालिका के एक सर्वेक्षण में उजागर हुई परन्तु इसे लेकर कोई सकारात्मक कारवाई नहीं हो पाई। अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष से चार सप्ताह के भीतर पेयजल आपूर्ति के बारे में जलापूर्ति की व्यवस्था को स्पष्ट करने की नोटिस दी है लेकिन वह सर्वेक्षण और इस नोटिस का नतीजा क्या निकलने जा रहा है, इसे आयोग और जलबोर्ड के बयानों से भी समझा जा सकता है। नगर निगम के सर्वेक्षण में जलापूर्ति की प्रमुख पाइप लाइनों में 67 स्थानों पर इस तरह के सुराख मिले, जिनसे होकर नाले का गंदा पानी पेयजल में मिल जाता है। सर्वेक्षण दो सौ इलाकों में कराए गए थे। एक चौथाई से अधिक इलाकों में प्रदूषित पानी की आपूर्ति होने का यह आंकड़ा भयावह है क्योंकि दिल्ली जलबोर्ड को चौदह हजार किलोमीटर लंबी पाइप लाइनों की देखभाल करनी होती है जिसमें सात सौ किलोमीटर की मुख्य और बाकी सहायक पाइप हैं।

यह सही है कि इनमें अनेक पाइप लाइनें काफी पुरानी है, कुछ तो एक सौ साल से भी अधिक पुरानी, जिनमें जंग भी लग चुकी है। ऐसी ज्यादातर लाइनें चांदनी चौक इलाके मे हैं। मानवाधिकार आयोग के प्रवक्ता ने कहा है कि दिल्ली निवासियों को प्रदूषित पानी की आपूर्ति होने से उनके स्वास्थ्य की संभावित क्षति को लेकर आयोग बेहद चिंतित है। दिल्ली जलबोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश नेगी ने भी स्वीकार किया है कि कुछ इलाकों मे प्रदूषित जल की आपूर्ति हो रही है पर उसे ठीक करने के लिए डेडिकेटेट यूटिलिटी कारीडोर की जरूरत होगी। मानवता के नाते उन्होंने यह भी कहा कि इस रिपोर्ट से अधिक घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उससे सिर्फ बोतलबंद पानी के व्यापारियों को फायदा होगा। उनकी सलाह है कि पानी को पीने के पहले उबालने की जरूरत होती है इसलिए दिल्ली वासी पानी को कम से कम बीस मिनट उबालकर पीने के काम में लाए।

दिल्ली में अन्य अंतर्राष्ट्रीय महानगरों की तरह पानी, नाली और बिजली के लिए अलग-अलग गलियारे उपलब्ध नहीं है। कहीं पेयजल आपूर्ति और मलजल की निकासी के नाले साथ होते हैं तो कहीं एक दूसरे से लिपटे हुए। राजधानी के आठ सौ अनधिकृत कालोनियों मे स्थिति अधिक खराब है। जलबोर्ड के सीईओ के अनुसार, गंदेपानी की आपूर्ति के बारे में रोजाना 30 से 40 शिकायतें आती हैं पर बोर्ड अधिक कुछ नहीं कर सकता। जलबोर्ड क्यों कुछ नहीं कर सकता? अगर नहीं कर सकता तो फिर उसके होने का क्या मतलब है? अगर उसके होने का वास्तव में दिल्ली के एक करोड़ से अधिक लोगों के लिए कोई मतलब है फिर भी जलबोर्ड दिल्ली वालों को मलमूत्र युक्त पानी पिला देता है तो निश्चित तौर पर सुराग पाइपों में ही नहीं, दिल्ली जलबोर्ड की नीयत में भी है।
 

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