अग्निशेखर

अग्निशेखर
वितस्ता का जन्मदिन
Posted on 01 Dec, 2013 03:29 PM
सूर्यास्त तक बाट जोहती नदी में
मछलियों की तरह
उछलती-तैरती रही बेसब्री
रेशे-रेशे में अंधेरा घुलते हुए भी
बराबर सोचती है नदी
कि कोई तो आएगा ही
उसके जन्मदिन पर
विसर्जित करेगा गेंदे के फूल
गुलाब और दिए उसमें
कोई तो जरूर ही आएगा
वह बहती है सबके भीतर से
दिन-रात
दुलारती
गुनगुनाती
मैल धोती और ढोती हुई
बहती होगी वितस्ता
Posted on 01 Dec, 2013 03:20 PM
मेरी रीढ़ की हड्डी में
यह जो सांप घुसकर फुफकार रहा है
समुद्र की ऊब है
दूर-दूर तक फैला गहरा है समुद्र
जो शराब का रंग और तीखापन ओढ़े हुए
हर ओर छा गया है
सिल्वटहीन
सब कुछ बेहोश है
हवा का एक-एक कदम
लड़खड़ा रहा है

बड़ा डर लगता है
बीच समुद्र में आ गया हूं
चिनार के पत्तों-सा
कांप रहा है
रोम-रोम
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