युवाओं को गाँवों की दहलीज लांघने से रोक सकता है मशरूम

युवाओं को गाँवों की दहलीज लांघने से रोक सकता है मशरूम
युवाओं को गाँवों की दहलीज लांघने से रोक सकता है मशरूम

प्रदेश में मशरूम की 15 प्रजातियाँ तो जंगलों में ही उगती हैं। इनमें से आठ प्रजातियाँ तो ऐसी हैं जो खाने योग्य हैं और लोग इनको खाते भी हैं। प्राकृतिक रूप से होने वाले इस मशरूम को घरों में उगाने के लिए युवाओं को न तो किसी वातानुकूल की जरूरत है और न ही महंगे उपरकरणों की।

पिछले कुछ समय में प्रदेश में मशरूम की खेती करने वालों की संख्या बढ़ी है। इतना होने पर भी मशरूम प्रदेश में सोना नहीं बन पा रहा है।

यह तब है जबकि प्रदेश में घर-घर मशरूम का उत्पादन हो सकता है। लोगों की जेब के मुफीद हो और उन्हें इसकी पौष्टिकता की जानकारी सही तरीके से मिल जाए तो मशरूम में इतनी ताकत तो दिखती ही है कि वह युवाओं को गाँव की देहरी लांघने से रोक सके। प्रदेश में मशरूम की 15 प्रजातियाँ तो जंगलों में ही उगती हैं। इनमें से आठ प्रजातियाँ तो ऐसी हैं जो खाने योग्य हैं और लोग इनको खाते भी हैं।

प्राकृतिक रूप से होने वाले इस मशरूम को घरों में उगाने के लिए युवाओं को न तो किसी वातानुकूल की जरूरत है और न ही महंगे उपरकरणों की। विशेषज्ञों के मुताबिक मशरूम की एक फैक्ट्री को स्थापित करने के लिए पाँच करोड़ की जरूरत होती है। लेकिन यह व्यवसाय 50 हजार से भी शुरू किया जा सकता है। उद्यान विभाग के साथ ही प्रदेश में पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और वन अनुसंधान संस्थान में भी मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह साफ है कि इसमें भी अभी और काम करने की जरूरत है।

मशरूम गर्ल ज्योति रावत को एक खास तरह के मशरूम के उत्पादन का प्रशिक्षण लेने के लिए विदेश तक जाना पड़ा था। कीड़ा जड़ी भी एक तरह का मशरूम है वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक लाखों की कीमत वाली कीड़ा जड़ी भी मशरूम ही है। कुछ देशों में तो इसकी खेती भी हो रही है। प्रदेश में यह वन उपज में शामिल है। हालांकि कुछ स्थानों पर इसका उत्पादन भी किया जा रहा है।

18000 रुपए तक आय में इजाफा सम्भव

अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान कृषि अनुसंधान केन्द्र के एक शोध के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्रों में मशरूम का उत्पादन किसानों की आय में 18000 रुपए तक का इजाफा कर सकता है और इस क्षेत्र में सात प्रतिशत तक रोजगार देने की क्षमता है। शोध के मुताबिक आय में इजाफा इससे भी अधिक हो सकता है लेकिन मार्केटिंग की सटीक व्यवस्था न होने, मशरूम महंगा होने, स्थानीय माँग में उतार चढ़ाव आड़े आते हैं।

मशरूम के एक बड़े प्रशिक्षण केन्द्र का विचार बेहतर है और इस पर काम किया जाएगा। प्रदेश सरकार मशरूम का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बना रही है और इसमें शोध, प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी की जाएगी- सुबोध उनियाल, कृषि एवं उद्यान मंत्री

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Post By: Shivendra
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