उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को लेकर उम्मीदे उफान पर हैं, उनके शुरुआती कदम बताते हैं कि उनका चयन निर्णय लेने के लिये हुआ है। गंगा सफाई को लेकर भी प्रधानमंत्री की निगाहें भी अब उन्हीं की ओर हैं। योगी अपने काम में जुट गए हैं और सबसे अच्छी बात यह कि उन्होंने अपनी कोशिशों को तारीखों में बाँधने की जल्दबाजी नहीं की, वे जानते है गंगा स्वच्छता लगातार और लम्बी चलने वाली प्रक्रिया है।
योगी ने दो साल बाद होने वाले अर्धकुम्भ को लक्ष्य कर तैयारी शुरू कर दी है इसके लिये कानपुर और कन्नौज की चमड़ा शोधन ईकाइयों को शिफ्ट कराने की योजना है योगी उन्हें पर्याप्त समय देना चाहते हैं लेकिन इस सन्देश के साथ की गंगा में जानवरों का खून बहाने वाले कत्लखानों को हटना ही होगा।
लेकिन योगी को गंगा सफाई के रास्ते सबसे बड़ी लड़ाई अपनी पार्टी और सरकार के भीतर ही लड़नी होगी। गंगा संरक्षण पर केन्द्र का मत है कि परिस्थिति के हिसाब से गंगा पर बाँध बनाए जाने चाहिए और इस तरह बनाए जाने चाहिए कि वह अविरल बहती रहे। यानी बहना और बाँधना एक साथ। सामान्य समझ में यह दोनों एक साथ सम्भव नही हैं। इसका मतलब है गंगा के सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष पर आर्थिक पक्ष हावी हो रहा है जो सत्ता की सोच को साफगोई से सामने नहीं आने दे रहा। योगी की लड़ाई का निर्णायक पक्ष तब सामने आएगा जब उन्हें नरौरा और कानपुर बैराज पर निर्णय लेने की जरुरत महसूस होगी। क्योंकि ये दोनों बैराज वास्तविक रूप में गंगा के अन्तिम बिन्दू हैं इसके बाद गंगा इलाहाबाद तक नालों के सहारे बहती है। इलाहाबाद से गंगा की आगे की यात्रा यमुना के सहारे ही होती है। योगी पहले भी गंगा सफाई पर आन्दोलन का नेतृत्व कर चुके हैं और टिहरी सहित सभी बाँधों के विरोध में मुखर रहे हैं। गंगा सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश को तारती है और वही उसे सर्वाधिक प्रदूषित करता है।
भारत सरकार तीन अरब डॉलर खर्च कर गंगा नदी को साफ करना चाहती है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने आवंटित पैसे का बड़ा हिस्सा अब तक खर्च ही नहीं किया है। 2019 की लड़ाई को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी परिणाम के साथ जनता के सामने जाना चाहते हैं ना कि दावों के साथ। मिशन से जुड़े अधिकारी भी मानने लगे है कि 2018 की पहली समय सीमा तक निर्धारित काम खत्म करना असम्भव सा है। अभी तक कई जगहों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कमिशन ही नहीं हुए हैं और उनके बनने और संचालित होने में भी अच्छा खासा समय लगता है। वास्तविकता यह है कि राज्य सरकार अभी तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिये जमीन भी तय नहीं कर पाई है और जटिल टेंडर प्रक्रिया ठेकेदारों को आगे आने से रोक रही है।
यूपी में कुल 456 ऐसे उद्योग हैं जो गंगा को दूषित कर रहे हैं। लेकिन अब तक इनमें से सिर्फ 14 को बन्द किया गया है। घाटों को आधुनिक बनाने का काम भी समय सीमा से पीछे चल रहा है। योजना के तहत 182 घाटों का पुन: उद्धार करना था, लेकिन सिर्फ 50 पर ही काम शुरू हुआ है। 118 श्मशानों में से सिर्फ 15 को आधुनिक बनाया गया है। ऐसे में योगी के आगे चुनौतियाँ बड़ी हैं।
वैसे गंगा मंत्रालय देश भर में अब तक करीब 93 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को हरी झंडी दे चुका है और इनमें से करीब 16 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले प्लांट तैयार भी हो चुके हैं लेकिन वे चालू भी है या नहीं इसको देखने की फुरसत किसी के पास नहीं है। यह पूरे देश का आँकड़ा है और यूपी का योगदान इसमें बेहद कम है।
यूपी में अब असहयोग करने वाली सरकार नहीं है और गंगा का गंगत्व अपनी अन्तिम लड़ाई में आदित्यनाथ योगी का साथ चाहता है। क्या वे लड़ेंगे?
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