एनजीटी ने दिल्ली व उत्तर प्रदेश सरकार को दिया निर्देश

एनजीटी के प्रमुख स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार इन स्थलों से मलबा हटाने के लिए पुलिस सहायता समेत सभी तरह की मदद दे। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की सरकार भी पुलिस सहायता समेत सभी तरह की मदद मुहैया कराए। उन्होंने कहा कि दिल्ली मेट्रो (डीएमआरसी), उत्तर प्रदेश सरकार और गौतमबुद्ध नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक भी इस आदेश के पालन के लिए जिम्मेदार होंगे।
अधिकरण ने यह आदेश तब पास किया जब डीएमआरसी ने पीठ को अवगत कराया कि उसने यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास के स्थानों से करीब 23,281 टन मलबा हटाया है। लेकिन 4,700 टन मलबा हटाया नहीं जा सका क्योंकि यह इलाका झुग्गियों से घिरा है और वहां से मलबा हटाना मुश्किल है। न्यायधिकरण ने डीएमआरसी की तरफ से पेश हुए वकील से कहा कि आप पुलिस की मदद क्यों नहीं लेते। एनजीटी ने उन्हें पुलिस की मदद से बाकी बचा मलबा भी हटाने के निर्देश दिए।
पीठ ने डीडीए को उसकी 28 सितंबर की अधिसूचना पर कार्रवाई करने पर भी रोक लगा दी। यह अधिसूचना जोन ‘ओ’ (यमुना नदी और नदी के किनारे) के क्षेत्र को फिर से निर्धारित करने से जुड़ी है। इसमें विद्युत शवदाहगृह के निर्माण की इजाज़त देने, कम लागत वाले सार्वजनिक शौचालय बनाने और क्षेत्र में कुछ निर्माण कार्य करने का प्रस्ताव है। पीठ ने कहा कि अधिकरण के विशेष आदेश के बिना डीडीए 28 सितंबर, 2013 की अपनी अधिसूचना पर कार्रवाई नहीं करेगा।
डीडीए की अधिसूचना पर टिप्पणी करते हुए एनजीटी ने कहा कि यह दर्शाता है कि आप कुछ हास्यास्पद करने पर आमादा हैं और आप बचे-खुचे मैदानी क्षेत्र को भी खत्म कर देंगे। आप वहां कम लागत वाले शौचालयों की इजाज़त दे रहे हैं।
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने एक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा कि उसने अपने अधिकार क्षेत्र में यमुना के पास से 1.6 लाख टन मलबा हटा दिया है और यह सुनिश्चित करने के लिए भी एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं कि वहां कोई मलबा नहीं डाला जाए और दोषियों पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाए। अधिकरण का आदेश याची मनोज कुमार मिश्रा की अर्जी पर सुनवाई के दौरान आया। अर्जी में यमुना में कचरा डालने पर पाबंदी लगाने और नदी की सफाई सुनिश्चित करने की मांग की गई।
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