यमुना में पानी बढ़ा है, बाढ़ नहीं आयी!


22 अगस्त 2010. पुरानी दिल्ली के इलाके में पुराने लोहेवाले पुल के आस पास टीवी चैनलों के ओवी वैन की लंबी कतारें खड़ी हैं। हर बड़े चैनल की ओवी वैन वहां मौजूद हैं और उन वैन में लगे हुए जनरेटर पूरी क्षमता से चल रहे हैं। संकेत साफ है कि लाइव वगैरह भी किया जा रहा है। कुछ ओवी वैन में भले ही ड्राइवर सीट पर ही सो रहे थे लेकिन रिपोर्टर और कैमरामैन दिल्ली में आयी 'बाढ़' को कवर करने के लिए पूरी तत्परता से तैनात थे।

चैनल के कर्मचारीनुमा रिपोर्टर और रिपोर्टरनुमा कैमरामैन पुल के किनारे ठीक उस जगह पर अपने खड़े होने की जगह बनाए हुए हैं जहां से पीछे खतरे के निशान वाला मार्क क्लोजअप शाट में आ जाए। निश्चित रूप से यह रिपोर्टरनुमा कैमरामैनों की ही सलाह होगी ताकि वे एक ही शॉट में रिपोर्टर और खतरे के निशान दोनों को साथ में शूट कर सकें। न्यूज एक्स की एक महिला रिपोर्टर ने कुछ अधिक हिम्मत दिखाई। वह पुल के बगल में बने एक पत्थर के टीलेनुमा स्थान पर जा खड़ी हुई। आसपास खड़ी सैकड़ों लोगों की भीड़ ने यमुना की बाढ़ को छोड़कर अपनी दृष्टि इस बहादुर रिपोर्टर के आस पास समेट लिया। रिपोर्टर को भी इस बात का अहसास था। शॉट तो न जाने कब ओके होगा लेकिन तब तक उसे भी यह अहसास बना रहा कि वह किसी फिल्म के शूटिंग सेट पर खड़ी है जहां सैकड़ो लोग उस नायिका की एक बार झलक पा लेना चाहते हैं जिसे पर्दे पर देखकर आहें भरते हैं।

टीवी चैनलों पर देखकर भले ही देशभर में यह दहशत फैल रही हो कि दिल्ली में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है लेकिन यहां यमुना के किनारे बाढ़ महोत्सव चल रहा है। दिल्ली में रहते हुए जब हमें ही अखबारों से पता चला कि दिल्ली में यमुना खतरे के निशान से ऊपर चली गयी है तो आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। रोज तो यमुना को एक बार पार करते ही हैं, यह खतरे का निशान कहां है जिसे बाढ़ का पानी पार कर गया और रोज आते जाते हमें दिखा ही नहीं। इस खतरे के निशान को खोजने की शुरूआत हमने डीएनडी फ्लाईओवर से शुरू की। दिल्ली में कुल 48 किलोमीटर की यात्रा करनेवाली यमुना नदी को नापना कोई मुश्किल काम नहीं है। फिर अपने को केवल खतरे का निशान ही खोजना था ताकि हम भी देख सकें कि पानी उसे कैसे पार कर गया है। डीएनडी फ्लाईओवर पूरी तरह से यमुना के हिस्से की जमीन में हस्तक्षेप करके बनाया गया है। दक्षिणी दिल्ली और नोएडा के बीच दूरी कम हो सके इसलिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर इस संक्षिप्त एक्सप्रेसवे को बनाया गया है जिसपर स्कूटर लेकर पा जाने का भी दस रूपया वसूल लिया जाता है। जब आप उस रास्ते से गुजरेंगे तो कुछ पोस्टर जरूर दिखेंगे कि यमुना आपकी पहचान है। इसे बनाए रखिए। उसी जगह खड़े होकर जब हमने यमुना को निहारा तो कहीं कोई ऐसा निशान नजर नहीं आया जो बाढ़ आने का संकेत देता हो। पानी सामान्य गति से ही बह रहा है। हां, कल जो काला बदबूदार नाले का पानी दिखता था उसकी जगह मटमैले बारिश के पानी ने लिया है। मात्रा में कोई खास अंतर नहीं दिखा।

खतरे के इसी निशान की खोज में लोहेवाले पुल के पास पहुंचे जहां मीडिया पहले ही खड़े होकर दिल्ली में बाढ़ का खतरा दिखा रहा था। खतरे के निशान को देखकर एकबारगी लगा कि पानी तो निशान के बहुत नीचे है फिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि पानी खतरे के निशान को पार कर गया है? हो सकता है कि इसमें सच्चाई हो भी लेकिन एक छोटी सी भूल हो रही है। यमुना में पिछले कुछ दशकों में कितनी गाद जमा हो गयी इसका कहीं कोई हिसाब नहीं है। जब नदी सदा निर्जला रहे और केवल गटर का पानी छोड़ा जाए तो उसमें गाद भरने की गति क्या होगी? पानी बह नहीं रहा है तो नदी का तल तेजी से भरना शुरू हो जाता है। यमुना के साथ दिल्ली में दशकों से यही हो रहा है। और समस्या केवल गाद भर की नहीं है। यमुना के किनारे और आस पास के इलाकों में जो भी निर्माण और विध्वंस होते हैं उसका मलबा भी यमुना में लाकर डाल दिया जाता है। यह मलबा यमुना में फेके जा रहे फूल और पूजा सामग्री नहीं बल्कि टनों और ट्रकों में लाया जाता है। नदी का तल नीचे से भरेगा तो पानी कहां से बहेगा? खतरे के निशान के साथ भी यही खेल हुआ है। इतनी मिट्टी, गाद जमा हो गयी है कि खतरे का निशान ही बेमानी हो गया है। इसका एक और उदाहरण देखना हो तो ऐसे समझिए कि सिर्फ पुराने पुल के नीचे ही पानी पुल को छूता हुआ सा दिखता है नहीं तो नये बने किसी भी पुल के आधे तक भी पानी नहीं पहुंचा है। कारण समझे? पुराना पुल नदी के पुराने बहाव के अनुसार बनाया गया था लेकिन नये पुल भर चुकी नदी के अनुसार बनाये गये हैं इसलिए पानी उनको छू भी नहीं पा रहा है। लेकिन दिक्कत यह है कि खतरे का निशान भी उसी पुराने पुल के पास लगा है इसलिए खतरे का निशान जो दर्शा देगा उसे ही अंतिम सच बता दिया जाएगा, भले ही सच्चाई वह न हो।

फिर भी, दिल्ली में इस साल अच्छी बारिश तो हो ही रही है। शीला दीक्षित एण्ड कंपनी के लिए मुश्किल यह है कि कम समय में कामनवेल्थ गेम्स के लिए की जा रही तैयारियों को कैसे पूरा करें? तो क्या यमुना में बाढ़ का शिगूफा भी एक सरकारी संयंत्र है ताकि यमुना की दुर्दशा और सरकारी भ्रष्टाचार दोनों को ढंका जा सके?
 
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