यमुना में गंदगी को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त

गंदगी ढोने की साधन बन गई है यमुना
गंदगी ढोने की साधन बन गई है यमुना
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सरकार से यमुना नदी के जल की स्वच्छता और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब तक खर्च हुई रकम का ब्यौरा तलब किया है। शीर्ष अदालत ने तीनों प्रदेश सरकारों से यह भी पूछा है कि लंबे अरसे के बाद भी अभी तक सीवर ट्रीटमेंट प्लांट क्यों नहीं बनाए जा सके हैं।

मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया, जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पीठ ने यमुना के दोनों तरफ अवैध कब्जे को लेकर अभी तक उठाए गए कदमों का विवरण भी तलब किया है। अदालत ने केंद्रीय जल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा है कि आगरा तक यमुना नदी के जल के नमूने लिए जाएं तथा रिपोर्ट चार सप्ताह के अंदर पेश की जाए। दिल्ली जल बोर्ड और नोएडा अथॉरिटी से कहा गया है कि अदालत के 2005 में दिए गए आदेश पर उसने क्या कार्रवाई की।

उच्चतम न्यायालय ने राजधानी के एक अंग्रेजी दैनिक में जुलाई 1994 में मौन भाव से बह रही मैली यमुना शीर्षक से प्रकाशित आलेख का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनवाई शुरू की थी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि पीठ को 18 साल की सुनवाई के बाद इस दिशा में अब सख्त आदेश पारित करने की जरूरत महसूस होती है। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि औद्योगिक इकाइयों का कचरा नदी में प्रवाहित न हो। अगर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बने हैं तो उसके विकल्प पर विचार किया जा सकता है।

अदालत ने दिल्ली, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी पूछा है कि ट्रीटमेंट प्लांट के डिजाइन तथा उन्हें स्थापित करने के लिए सलाहकार नियुक्त किए गए हैं या नहीं। मैली यमुना को साफ करने के लिए अभी तक गठित कमेटियों का विवरण भी अदालत ने मांगा है। पीठ ने सरकारों से पूछा है कि खर्च हुई रकम को ऑडिट किया गया हो तो ऑडिट रिपोर्ट भी पेश करें। अदालत ने इस संबंध में ब्यौरा देने के लिए छह सप्ताह का वक्त दिया है।न्यायालय ने इसी से संबंधित एक अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए देश की नदियों को आपस में जोड़े जाने को हरी झंडी दे दी है।

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