यमुना को साफ करने का सरकारी प्रयास बेअसर

नई दिल्ली, 17 अप्रैल। दिल्ली की धरोहर यमुना को साफ करने का एक और सरकारी प्रयोग बेकार साबित होने वाला है। इस बार गंदे नालों के मुंहाने पर करीब दो हजार करोड़ रुपए की लागत से इंटरसेप्टर लगने वाला है। इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड की सलाह के बाद इंटरसेप्टर लगाने का ठेका दिया जाएगा। प्रक्रिया लगभग पूरी होने वाली है। जुलाई से काम शुरू भी होने वाला है। लेकिन पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) दिल्ली नागरिक परिषद ही नहीं अनेक विशेषज्ञ इस पर पहले से ही अनेक सवाल उठा रहे हैं। यह आम धारणा है कि पूरी दिल्ली की सीवर प्रणाली और सीवर साफ करने वाले संयंत्रों को ठीक किए बिना कोई प्रयोग सफल नहीं हो सकता है।

यमुना का पानी अब इस लायक भी नहीं है कि उससे सिंचाई की जा सके। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के हस्तक्षेप से हरियाणा थोड़ा सजग हुआ है। दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रमेश नेगी बताते हैं कि हमारा यह प्रयास है कि हरियाणा जितना पीने का पानी हमें पल्ला बांध पर दे उसे हम उतना ही सिंचाई योग्य पानी ओखला बांध पर दें। इंटरसेप्टर की योजना भी इसी का हिस्सा है। दिल्ली में सीवर प्रणाली 70 फीसद इलाकों में है। बाकी गांव, अनधिकृत कालोनियों का सीवर छोटे-छोटे नालों से होता हुआ नजफगढ़ शाहदरा समेत 18 बड़े नालों में आता है जो सीधे यमुना में गिरता है। अगर इन नालों से साफ पानी यमुना में जाने लगे तो यमुना साफ होने लगेगी।

पहले इस पर 1300 करोड़ खर्च होने थे अब दो हजार करोड़ खर्च किए जाने की बात कही जा रही है। वैसे इसके पांच हजार करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं। इससे पहले यमुना सफाई के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। वैसे यह नई योजना बेहतरीन लग रही है लेकिन इसका भी हाल बाकी योजनाओं जैसा होने का खतरा है। आधुनिक मशीनों से मुख्य पानी की लाइनों में रिसाव को रोककर जल बोर्ड से सम्मानित कावेरी कंस्ट्रक्शन के प्रमुख विजय कटारिया कहते हैं कि टंक सीवर ही नहीं दिल्ली की सभी छोटी बड़ी करीब नौ हजार किलोमीटर लंबी सीवर की सफाई और उसके मरम्मत के बिना गंदा पानी यमुना में जाने से नहीं रुक सकता है।

अगले चार साल के लिए सीवर लाइन डालने और पुराने को ठीक करने की बड़ी परियोजना बने। उस पर एक बार पैसे खर्च होंगे लेकिन न केवल यमुना साफ करने में सहुलियत होगी बल्कि अगले 20 से तीस साल तक सीवर की समस्या से दिल्ली मुक्त हो जाएगी।

दिल्ली में ज्यादातर सीवर 25 से 30 साल पुराने हैं, कुछ तो उससे भी पहले के हैं। जल बोर्ड के मौजूदा सीईओ ने पहल करके 170 किलोमीटर मुख्य सीवर लाइन की सफाई करवाई है। उसका सीवर प्रणाली सुधारने में काफी अच्छा असर होगा। उन्होंने पानी की मुख्य लाइनों का मरम्मत भी कराया। हर साल तीन हजार किलोमीटर लाइनें बदली भी जा रही हैं। 30 किलोमीटर कावेरी ने साफ किया और अंदर फिनिशिंग का काम किया। अकेले उनके प्रयास से तीन लाख गैलन से ज्यादा पानी का रिसाव रुका। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित किए गए। पानी का रिसाव 30 से 40 फीसद है उसे भी ठीक करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। इसका सीधे यमुना की सफाई से संबंध नहीं है। इसका संबंध दिल्ली की पानी की आपूर्ति से है सभी दिल्ली वालों को साफ पानी उपलब्ध कराना आज की तारीख में बड़ी चुनौती है।

दिल्ली जल बोर्ड के एक बड़े अधिकारी कहते हैं कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट खराब पड़े हैं। ईमानदारी से काम नहीं हो रहा है। यमुना सफाई का महाअभियान शुरू करने से पहले सभी प्लांटों का किसी एजंसी से सर्वेक्षण कराया जाए। औचक निरीक्षण में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। यही हाल औद्योगिक इलाकों से यमुना में आने वाले कचरा को रोकने के लिए संयुक्त अवजल शोधन संयंत्र (सीईटीपी) और 13 सौ से अधिक अवजल शोधन संयंत्र (ईटीपी) का है। सरकार ने सभी बड़े होटलों, अस्पतालों और बड़े संस्थानों को अवजल शोधन संयंत्र लगाना अनिवार्य किया है। इनकी निगरानी भी जरूरी है। इसी तरह यह भी जरूरी है जिन इलाकों में सीवर लाइन नहीं है वहां पहले बाहर में लाइन (पेरिफोरियल) डले फिर गांव या अनधिकृत कालोनी में डले। अभी पहले गांव में लाइन डाली जा रही है, इसमें पाइप के ऊपर-नीचे होने का खतरा है।

अगले चार साल के लिए सीवर लाइन डालने और पुराने को ठीक करने की बड़ी परियोजना बने। उस पर एक बार पैसे खर्च होंगे लेकिन न केवल यमुना साफ करने में सहुलियत होगी बल्कि अगले 20 से तीस साल तक सीवर की समस्या से दिल्ली मुक्त हो जाएगी। अभी यह मानकर कि जिन इलाकों में सीवर नहीं हैं वहां से गंदा पानी नालों में आता है इसलिए नालों को साफ किया जाए। पहली समस्या तो यह है कि नाले बरसाती हैं उसमें साल के कई महीने तो मामूली पानी रहता है। उस दौरान उन इंटरसेप्टर का क्या होगा। बरसात में कितना पानी किस नाले में आएगा यह किसी को पता नहीं। पता चला कि ज्यादा पानी आ गया है और इंटरसेप्टर को ही बहा ले गया। वह तो एक सीमा तक ही पानी ले पाएगा। एक तो गांवों, अनधिकृत कालोनियों में पानी की लाइनें नहीं हैं। लोग जैसे-तैसे पानी का इंतजाम करते हैं यानी बाकी इलाकों के मुकाबले वहां पानी कम होता है। जाहिर है केवल उनसे यमुना का यह हाल नहीं है। बाकी दिल्ली का सीवर से साफ पानी यमुना में जाए। औद्योगिक कचरा या दूसरे कचरे यमुना में जाने से रुके उसके बाद ही यमुना सफाई की योजना कारगर हो पाएगी।

अभी यमुना इस हाल में है ही नहीं कि आनन-फानन में उसे साफ किया जाए। इंटरसेप्टर लगाने का अगर फायदा अधिकारी या कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं तो उस पर भी काम हो लेकिन बिना सीवर प्रणाली सुधारे यमुना की सफाई अधूरी है। दिल्लीवासी यह दृश्य हर इलाके में देखते हैं कि सीवर ओवर फ्लो हो रहा या सीवर में पानी जा ही नहीं रहा है। गंदगी इन सीवर और पानी के नालों में जमा होते-होते पत्थर का रूप ले लेते हैं या असावधानी से नालों का मुंह खुला होने पर लोग गंदगी डाल देते हैं। अगर पूरी सीवर प्रणाली सुधारने की ठोस योजना बने उस पर ईमानदारी से काम हो फिर यमुना साफ करने की मुहिम रंग लाएगी।

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