नई दिल्ली, 4 जुलाई (जनसत्ता)। नागरिक परिषद यमुना को बचाने का व्यापक अभियान शुरू करेगी। परिषद के अध्यक्ष वीरेश प्रताप चौधरी ने रविवार को दिल्ली में इस बारे में विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की बैठक बुलाई। इस मौके पर यहां एक संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ जिसमें पर्यावरणविद, जल-विशेषज्ञों और पूर्व नौकरशाहों सहति कई राजनेताओं व गैरसरकारी संगठनों ने जमना-सफाई पर अपने अनुभव और विचार रखे। करीब तीन घंटे तक चले विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि दिल्ली की जनता को जागरूक करने के लिए सभी गांव के (360 खाप पंचायतों) के सरपंचों व प्रधानों, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ की अगुवाई में छात्रों, डीएवी संगठन व आर्य स्वयंसेवकों, आरडब्लयूए के पदाधिकारियों के बीच नागरिक परिषद जाकर यमुना बचाने में जुटने के लिए एक जन जागरुकता अभियान शुरू करेगी।
नागरिक परिषद के लोग यमुना डेवलपमेंट अथारिटी और मुख्यमंत्री से मिलकर इस बाबत दबाव बनाएंगे। इसकी जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना को सौंपी गई। इस मौके पर खुराना ने कहा कि वे मंगलवार को मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मुलाकात कर उन्हें परिषद के फैसलों से अवगत कराएंगे।
पूर्व नौकरशाह भूरेलाल ने कहा कि यमुना के प्रदूषण के बारे में जितना हम समझ रहे हैं समस्या उससे ज्यादा विकट है। सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि यमुना गंदा नाला बन चुकी है। क्रोमियम, जिंक, कोबाल्ट, मर्करी जैसे खतरनाक व कैंसर जैसे रोग के कारक जमना में मौजूद हैं। शाहदरा, दल्लुपूरा, बाटला हाउस आदि इलाकों में तो लाशों व मरे पशुओं का यमुना में प्रवाह जारी है। दिल्ली के तीन बड़े नाले जिनमें नजफगढ़ नाला, शाहदरा नाला, सप्लीमेंट्री नाला से पहुंच रहा कचरा यमुना के 70 फीसद प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। वजीराबाद से लेकर ओखला तक 22 किलोमीटर का दिल्ली में यमुना का प्रवाह अब जहरीले नाले की शक्ल ले चुका है। इसमें जीवन संभव नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें 3600 मिलियन लीटर कूड़ा-करकट जमना में हर रोज डाला जा रहा है। अब तक केवल 18 किलोमीटर यमुना की सफाई पर 1800 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसके लिए यमुना का अवैध अतिक्रमण और ओछी राजनीति जिम्मेदार है। वोट बैंक की खातिर सरकार चुप है। विशेषज्ञ मनोज मिश्र ने कहा कि यमुना का मसला केवल दिल्ली का नहीं है। सात राज्यों में 1400 किलोमीटर बहाव वाली यमुना का दोबारा अस्तित्व तभी संभव है जब जंगल बढ़े और छोटे-छोटे तालाब बनाए जाएं। यमुना की मुख्य धारा को बहने दिया जाए।
पर्यावरणविद विक्रम सोनी ने यमुना प्रदूषण के तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डाला। पूर्व महापौर राजेंद्र गुप्ता ने कहा कि हालांकि वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट भूमिगत जल बढ़ाने में कारगर साबित होते हैं लेकिन दिल्ली में इस बाबत पहल बहुत पेचिदा है। निगम, दिल्ली जल बोर्ड व दिल्ली पुलिस में इस बाबत सामंजस्य नहीं है। उन्होंने इस बाबत ‘एकल खिड़की व्यवस्था’ की जरूरत बताई। भाजपा नेता मेवाराम ने कहा कि जब तक दिल्ली वाले यमुना ही समस्या को अपनी समस्या नहीं समझ लेते तब तक समस्या का समाधान संभव नहीं। लिहाजा नागरिक परिषद जन जागरुकता का काम शुरू करे।
नागरिक परिषद के लोग यमुना डेवलपमेंट अथारिटी और मुख्यमंत्री से मिलकर इस बाबत दबाव बनाएंगे। इसकी जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना को सौंपी गई। इस मौके पर खुराना ने कहा कि वे मंगलवार को मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मुलाकात कर उन्हें परिषद के फैसलों से अवगत कराएंगे।
पूर्व नौकरशाह भूरेलाल ने कहा कि यमुना के प्रदूषण के बारे में जितना हम समझ रहे हैं समस्या उससे ज्यादा विकट है। सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि यमुना गंदा नाला बन चुकी है। क्रोमियम, जिंक, कोबाल्ट, मर्करी जैसे खतरनाक व कैंसर जैसे रोग के कारक जमना में मौजूद हैं। शाहदरा, दल्लुपूरा, बाटला हाउस आदि इलाकों में तो लाशों व मरे पशुओं का यमुना में प्रवाह जारी है। दिल्ली के तीन बड़े नाले जिनमें नजफगढ़ नाला, शाहदरा नाला, सप्लीमेंट्री नाला से पहुंच रहा कचरा यमुना के 70 फीसद प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। वजीराबाद से लेकर ओखला तक 22 किलोमीटर का दिल्ली में यमुना का प्रवाह अब जहरीले नाले की शक्ल ले चुका है। इसमें जीवन संभव नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि इसमें 3600 मिलियन लीटर कूड़ा-करकट जमना में हर रोज डाला जा रहा है। अब तक केवल 18 किलोमीटर यमुना की सफाई पर 1800 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसके लिए यमुना का अवैध अतिक्रमण और ओछी राजनीति जिम्मेदार है। वोट बैंक की खातिर सरकार चुप है। विशेषज्ञ मनोज मिश्र ने कहा कि यमुना का मसला केवल दिल्ली का नहीं है। सात राज्यों में 1400 किलोमीटर बहाव वाली यमुना का दोबारा अस्तित्व तभी संभव है जब जंगल बढ़े और छोटे-छोटे तालाब बनाए जाएं। यमुना की मुख्य धारा को बहने दिया जाए।
पर्यावरणविद विक्रम सोनी ने यमुना प्रदूषण के तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डाला। पूर्व महापौर राजेंद्र गुप्ता ने कहा कि हालांकि वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट भूमिगत जल बढ़ाने में कारगर साबित होते हैं लेकिन दिल्ली में इस बाबत पहल बहुत पेचिदा है। निगम, दिल्ली जल बोर्ड व दिल्ली पुलिस में इस बाबत सामंजस्य नहीं है। उन्होंने इस बाबत ‘एकल खिड़की व्यवस्था’ की जरूरत बताई। भाजपा नेता मेवाराम ने कहा कि जब तक दिल्ली वाले यमुना ही समस्या को अपनी समस्या नहीं समझ लेते तब तक समस्या का समाधान संभव नहीं। लिहाजा नागरिक परिषद जन जागरुकता का काम शुरू करे।
Path Alias
/articles/yamaunaa-kao-bacaanae-kae-laie-vayaapaka-abhaiyaana
Post By: admin