यमुना को बचाना होगा

यमुना के प्रदूषण को लेकर संत-महात्माओं, किसानों और समाजसेवी संगठनों द्वारा वृहद आंदोलन, जनजागरण और धरना-प्रदर्शन अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन प्रदेश व केंद्र की सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। यह आंदोलन सामाजिक संस्थाओं द्वारा चलाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि यमुना बचाओ आंदोलन सत्ताधारियों का ढकोसला मात्र है। यमुना प्रदूषण को लेकर नेताओं की दिलचस्पी केवल आगामी चुनाव तक है। इस संबंध में ब्रज विकास मंडल के सचिव गोविंद बंसल का आरोप है कि यमुना की प्रदूषण-मुक्ति को लेकर नेताओं की नीति व नीयत दोनों ही सही नहीं हैं। पिछले दिनों साधु-संतों और किसानों द्वारा यमुना-प्रदूषण मुक्ति अभियान के दौरान जंतर-मंतर पर दिए गए धरने के दौरान भी नेताओं की यही राजनीति देखने को मिली। इस धरने के दौरान केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार का कोई प्रतिनिधि तक धरना स्थल नहीं फटका और स्थानीय विधायक भी मात्र नेतागिरी करते ही दिखाई दिए।

आश्चर्य का विषय तो यह है कि आ़खिर तथाकथित यमुना-भक्त उच्च न्यायालय व शासनादेशों का पालन होने पर भी मौन क्यों साधे रहे तथा सबंधित दोषियों के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं की। इस सबंध में यमुना प्रदूषण मॉनीटरिंग कमेटी के पूर्व सदस्य व ब्रज विकास मंडल के सचिव गोविंद बंसल का कहना है कि यमुना प्रदूषण मुक्ति अभियान में गांधीवादी नेता अन्ना हज़ारे की तरह एक लंबे अध्ययन और आंदोलन की भूमिका तैयार करने की ज़रूरत है।

केंद्र और प्रदेश सरकारें यमुना नदी के प्रदूषण के प्रति कितनी गंभीर है, इससे यह स्पष्ट पता चलता है। यमुना प्रदूषण मुक्ति आंदोलन को लेकर तीन दशक से विभिन्न संगठन जनजागरण अभियान चलाते आ रहे हैं। इन संगठनों की एकमात्र मांग यही है कि हरियाणा और दिल्ली का औद्योगिक कचरा, गंदे नालों और सीवर का पानी यमुना नदी में छोड़ना बंद किया जाए और हरियाणा स्थित हथिनी कुंड बैराज व ताजेवाला हैंडवर्क से यमुना को पर्याप्त पानी छोड़ा जाए, जिससे यमुना नदी अपने प्राकृतिक स्वरूप को पुन: प्राप्त कर सके, लेकिन हरियाणा और दिल्ली सरकार की तानाशाही के चलते मथुरा जनपद को उसके हक़ का पानी नहीं मिल पा रहा। गहवर वन के संत रमेश बाबा का कहना है कि यमुना नदी का धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व भी है। माथुर चतुर्वेदी परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष एवं हिंदूवादी नेता गोपेश्वर चतुर्वेदी द्वारा उच्च न्यायालय में यमुना प्रदूषण को लेकर लगभग डेढ़ दशक पूर्व एक रिट याचिका दायर की गई थी। जिस पर दिए गए क़डे आदेशों के कारण प्रदेश सरकार व ज़िला प्रशासन में सक्रियता आई तथा जनता की सहभागिता को लेकर सिटी मॉनीटरिंग कमेटी का गठन किया गया। तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत एवं नोडल अधिकारी आर.डी. शुक्ला द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों के पालन को लेकर गंभीरता दिखाई गई और उनकी अध्यक्षता में हुई सिटी मॉनीटरिंग कमेटी की बैठक में निर्णय लिया गया कि यमुना के दोनों किनारों के आसपास अधिक प्रदूषण होता है, जिसमें अवैध रूप से बालू/खनिज निकालने, मछली निकालने तथा क़ब्ज़ों की भूमिका प्रमुख है।

सरकार ने नदियों का 200 मीटर क्षेत्र संरक्षित घोषित किया है। इसके लिए एक समिति का गठन किया गया था। कमेटी में सचिव मथुरा वृंदावन प्राधिकरण अध्यक्ष, नगर मजिस्ट्रेट, क्षेत्राधिकारी नगर, मथुरा/वृंदावन के अध्यक्ष द्वारा नामित प्रतिनिधि एवं सार्वजनिक संस्थाओं के सदस्य प्रतिनिधि थे। इस निर्णय के बावजूद 13 साल के अतंराल में यमुना किनारे कितनी कॉलोनियां भू-माफिया द्वारा बना दी गईं और कितने अतिक्रमण यमुना के घाटों पर हो गए और खनन और मछली के शिकार की तो गिनती ही नहीं। उच्च न्यायालय ने नगर में पशु वधशालाओं पर भी रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद निरंतर अवैध पशु वधशालाओं का संचालन आज तक जारी है। मांस, मछली व अंडों की बिक्री के लाइसेंस विगत कई वर्षों से नहीं बनाए गए हैं, न ही उनकी कभी कोई सैंपलिंग हुई, न कभी चालान काटे गए। इन पशु वधशालाओं का अवशेष सीधे यमुना में जा रहा है। प्रदेश शासन के सचिव राकेश बहादुर द्वारा निर्देश दिए गए थे कि उक्त कमेटी की बैठक अधिक से अधिक तीन माह के अतंराल में कराया जाए, लेकिन ज़िला प्रशासन एवं उद्योगपतियों की साठ-गांठ के कारण कमेटी के अस्तित्व को ही नकार दिया गया।

यमुना कार्य योजना के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मायाजाल में फंसकर काऱखानों का कचरा यमुना में निरंतर डाला जा रहा है। उच्च न्यायालय द्वारा ज़िला प्रशासन/विद्युत विभाग तथा सबंधित पालिका परिषदों को भी यह क़डे निर्देश जारी किए गए थे कि हर स्थिति में सीवेज पंपिंग स्टेशन चालू रहे तथा उनको राज भवन के स्तर पर विद्युत आपूर्ति दी जाए, अन्यथा जनरेटर द्वारा पंपिंग स्टेशनों का संचालन किया जाए। इसमें भी नगर पालिका परिषद द्वारा मोटी कमाई की गई, जिसे तत्कालीन जलकल अभियंता ने जनसूचना अधिकार में अवगत कराया है कि जनरेटरों के संचालन जहां सितंबर-अक्टूबर 2007 दो माह में 6763 रुपये का डीजल खर्च हुआ, वहीं दिसंबर 2007 के एक माह में 3,47,499 रुपये का डीजल खर्च कर डाला गया। इतना ही नहीं इन पंपिंग स्टेशनों का संचालन भी एक ही व्यक्ति की तीन फर्ज़ी फर्मों को 5,22,500 रुपये का ठेका दे दिया। यमुना प्रदूषण मुक्ति आंदोलन में जो प्रभावी भूमिका तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत ने निभाई, वही भूमिका उनके जाने के बाद आए जिलाधिकारियों ने भी निभाई होती तो आज यह स्थिति पैदा न होती। आश्चर्य का विषय तो यह है कि आ़खिर तथाकथित यमुना-भक्त उच्च न्यायालय व शासनादेशों का पालन होने पर भी मौन क्यों साधे रहे तथा सबंधित दोषियों के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं की। इस सबंध में यमुना प्रदूषण मॉनीटरिंग कमेटी के पूर्व सदस्य व ब्रज विकास मंडल के सचिव गोविंद बंसल का कहना है कि यमुना प्रदूषण मुक्ति अभियान में गांधीवादी नेता अन्ना हज़ारे की तरह एक लंबे अध्ययन और आंदोलन की भूमिका तैयार करने की ज़रूरत है। सरकारी युवाओं, महिलाओं व समाज के सभी वर्गों को लेकर जनआंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें वोटों के सौदागर राजनीतिज्ञों को आंदोलन से दूर रखा जाए।

सभी मिल-जुलकर लड़ें
शंकराचार्य ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य माधवाश्रम महाराज ने यमुना की मौजूदा दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसका प्रदूषण दूर करने के लिए सभी को मिलजुल कर लड़ना होगा, तभी सार्थक परिणाम सामने आएंगे। पानी वाले बाबा के नाम से मशहूर मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा कि नदियों की सेवा मां के भाव से करने की ज़रूरत है। आदिकाल से गंगा-यमुना नदियों को हम मां कहते आए हैं, लिहाज़ा हमें इससे बेटे के तौर पर ही जुड़ना होगा। साथ ही इन नदियों की स़फाई के लिए हमें इसके दर्शन और दृष्टि को समझने की ज़रूरत है। नदी स़फाई अभियान में युवाओं को आगे आना चाहिए और अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

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