आगरा यमुना बोल सकती तो बताती कि उसकी बर्बादी के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है। यदि यमुना पूछ सकती तो जरूर पूछती कि उसके इलाज के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपये कहां और कैसे खर्च कर दिए गए कि हालत सुधरने के बजाय और बद से बदतर हो गई। लेकिन अफसोस यमुना बोल नहीं सकती। सच तो यह है कि न्याय के मंदिर में भी यमुना को न्याय देने के नाम पर सरकारों ने कुछ किया तो सिर्फ वायदे और हलफनामें दाखिल करने का काम यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अदालतों में शपथ पत्र दाखिल करने के बाद भी सरकारी महकमों ने कोई काम समय पर नहीं किया। हलफनामों में यमुना की सफाई का मुद्दा उलझ कर रह गया। बीते पच्चीस सालों से यमुना की सफाई और प्रदूषण मुक्ति का मुकदमा अदालतों में चल रहा है पर यमुना को इंसाफ नहीं मिल पा रहा।
यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 1985 में कोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से जो कानूनी जंग शुरू हुई वह लगभग पच्चीस साल गुज़र जाने के बाद भी जारी है। इन सालों में हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यमुना के संबंध में एक नहीं कई निर्देश दिए। चाहे दिल्ली सरकार हो या केंद्र सरकार इन सालों में यदि कुछ किया गया तो बस हलफनामा दाखिल करने का काम। हलफनामों की यह फेहरिस्त इतनी लंबी है कि पूरा ग्रंथ लिख जाए और जब विभागों और सरकारों के हलफनों का असल मकसद खुद अदालत को समझ आया तो गंभीर रुख अपनाया।
सरकारी हलफनामों से निराश न्यायाधीश वाई.के.सब्बरवाल ने यहां तक कह डाला क शपथ पत्र विरोधाभासी बातें करते हैं। आखिरकार कोर्ट ने एक दस सदस्यीय उच्चाधिकार समिति का गठन कर दिया ताकि यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के काम में और हीला हवेली न हो।
असल में 11 अक्टूबर 2000 को दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया गया। इस हलफनामा में कहा गया कि सरकार ऐसी योजना बना रही है कि मार्च 2003 के बाद अशोधित सीवेज का गंदा पानी यमुना में नहीं जाए। इसी प्रकार का एक हलफनामा 8 नवंबर 2000 को केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से दाखिल किया गया। इसके बाद 10 अप्रैल 2001 को यमुना नदी की स्थिति पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत की गई विभिन्न रिपोर्ट पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि स्वीकृत योजना प्रस्तुत की जाए ताकि 31 मार्च 2003 तक नदी में जल गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। लेकिन 27 अप्रैल 2001 को दाखिल हलफ़नामा में 2003 को जगह 2005 की समय सीमा की बात उभर कर सामने आने लगी।
उम्मीद के मुताबिक 30 अप्रैल 2001 को एक और हलफ़नामा, दाखिल किया गया, जिसमें 27 अप्रैल के हलफनामें का उल्लेख करते हुए कहा गया कि यमुना को 2003 तक नहीं तो 2005 तक स्वच्छ कर दिया जाएगा। पर इस हलफनामें को भी दाखिल हुए सात साल गुज़र चुके हैं। यमुना की सफाई के नाम पर 1272.52 करोड़ रु. खर्च हो चुके हैं। पर यमुना में प्रदूषण का हाल यह है कि पांच हजार कोलिफॉर्म प्रति सौ लीटर की स्थिति में पानी उपभोग करने के योग्य होता है जबकि यमुना का प्रदूषण 11.8 करोड़ कॉलिफार्म प्रति सौ लीटर है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 1985 में कोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से जो कानूनी जंग शुरू हुई वह लगभग पच्चीस साल गुज़र जाने के बाद भी जारी है। इन सालों में हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यमुना के संबंध में एक नहीं कई निर्देश दिए। चाहे दिल्ली सरकार हो या केंद्र सरकार इन सालों में यदि कुछ किया गया तो बस हलफनामा दाखिल करने का काम। हलफनामों की यह फेहरिस्त इतनी लंबी है कि पूरा ग्रंथ लिख जाए और जब विभागों और सरकारों के हलफनों का असल मकसद खुद अदालत को समझ आया तो गंभीर रुख अपनाया।
सरकारी हलफनामों से निराश न्यायाधीश वाई.के.सब्बरवाल ने यहां तक कह डाला क शपथ पत्र विरोधाभासी बातें करते हैं। आखिरकार कोर्ट ने एक दस सदस्यीय उच्चाधिकार समिति का गठन कर दिया ताकि यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के काम में और हीला हवेली न हो।
असल में 11 अक्टूबर 2000 को दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया गया। इस हलफनामा में कहा गया कि सरकार ऐसी योजना बना रही है कि मार्च 2003 के बाद अशोधित सीवेज का गंदा पानी यमुना में नहीं जाए। इसी प्रकार का एक हलफनामा 8 नवंबर 2000 को केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की ओर से दाखिल किया गया। इसके बाद 10 अप्रैल 2001 को यमुना नदी की स्थिति पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत की गई विभिन्न रिपोर्ट पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि स्वीकृत योजना प्रस्तुत की जाए ताकि 31 मार्च 2003 तक नदी में जल गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। लेकिन 27 अप्रैल 2001 को दाखिल हलफ़नामा में 2003 को जगह 2005 की समय सीमा की बात उभर कर सामने आने लगी।
उम्मीद के मुताबिक 30 अप्रैल 2001 को एक और हलफ़नामा, दाखिल किया गया, जिसमें 27 अप्रैल के हलफनामें का उल्लेख करते हुए कहा गया कि यमुना को 2003 तक नहीं तो 2005 तक स्वच्छ कर दिया जाएगा। पर इस हलफनामें को भी दाखिल हुए सात साल गुज़र चुके हैं। यमुना की सफाई के नाम पर 1272.52 करोड़ रु. खर्च हो चुके हैं। पर यमुना में प्रदूषण का हाल यह है कि पांच हजार कोलिफॉर्म प्रति सौ लीटर की स्थिति में पानी उपभोग करने के योग्य होता है जबकि यमुना का प्रदूषण 11.8 करोड़ कॉलिफार्म प्रति सौ लीटर है।
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