मनोज मिश्र पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों के विशेषज्ञ हैं। वे भारतीय वन सेवा से भी जुड़े रहे। वर्तमान में यमुना जिये अभियान चला रहे हैं। यमुना के मौजुदा हाल पर ‘मनोज मिश्र’ से यथावत के संवाददाता ‘जितेन्द्र चतुर्वेदी’ ने बातचीत की। उसके प्रमुख अंश :
हाँ, यह सही बात है कि यमुना को लेकर पिछले कई सालों से मैं काम कर रहा हूँ। 2007 में हमलोगों ने ‘यमुना जिये अभियान’ शुरू किया था। हालाँकि शुरुआती दौर में हमारी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं था। यमुना के सन्दर्भ में हम जो सन्देश देना चाहते थे, वह लोगों तक नहीं पहुँचते थे, लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है। अब नागरिक समाज हो या सरकार दोनों ही इस गम्भीर मुद्दों पर हमारी बात सुनती है। मीडिया का भी काफी सहयोग मिला है। मूल वजह यही है कि ‘यमुना जिये अभियान’ इतना आगे बढ़ पाया है।
यमुना तो गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह गंगा से कहीं ज्यादा पानी अपने साथ लाती है और इलाहाबाद में गंगा के प्रवाह को नया जीवन देती है। ऐसे में यदि यमुना का प्रवाह और उसके जल की गुणवत्ता प्रभावित होगी, तो गंगा पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
इतना समझ लीजिए कि यह नदी दिल्ली की जीवन रेखा है। यह दिल्ली में पानी का एक मात्र स्रोत है। यमुना नदी दिल्ली की 70 फीसदी पानी की जरूरतों को पूरा करती है। इन सबके अलावा यमुना दिल्ली की पहचान है। इस शहर की सभ्यता और संस्कृति का पालना है।
वन की कटाई की प्रक्रिया बारिश को प्रभावित करती है। इसकी वजह से बारिश का समय और उसकी तीव्रता दोनों में विचलन होता है। मतलब यह कि बारिश कभी भी हो जाती है। साथ ही बारिश की मात्रा भी निश्चित नहीं होती। इसका सीधा प्रभाव नदी की जल उपलब्धता पर पड़ता है, क्योंकि नदी को जो पानी मिलता है, वह कहीं बाहर से नहीं आता है, बल्कि वर्षा के जल से मिलता है। पेड़-पौधे बारिश के इस जल को संचित करके रखते हैं। इसलिए छोटे-छोटे नदी- नालों का जन्म होता है जो नदी में जल की आपूर्ति करते रहते हैं। वन के कटने से यह सिलसिला थम जाता है।
जहाँ तक अवैध बालू खनन की बात है तो उसका सीधा प्रभाव नदी की तलहटी पर पड़ता है। नदी में बालू के खनन से उसकी तलहटी में अस्थिरता आ जाती है। जब नदी में पानी कम होता है, तब नदी के प्रवाह को यह बाधित करती है।
समस्या की जड़ के बारे में समझ का अभाव है। यह समझ लेना चाहिए कि उसे नदी नहीं कहा जा सकता है, जिसमें प्रवाह न हो। दिल्ली में यमुना की यही हालत है। उसमें प्रवाह नाम की चीज ही नहीं है। इसमें एक दर्जन से ज्यादा नालों का पानी गिरता है। तमाम उद्योगों का कचरा यमुना में ही आता है। शहर की गन्दगी से यमुना को दूर रखा जाए, इसको लेकर कोई कारगर उपाय नहीं किए जा सके हैं।
नदी के लिए उसका प्रवाह बहुत जरूरी है। इस दिशा में अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं किए गए हैं। हालाँकि तथाकथित यमुना एक्शन प्लान के तहत जो कवायद की गई, वह सिर्फ प्रदूषण मुक्त यमुना के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करने पर केंद्रित थी। उसका भी कोई परिणाम नजर नहीं आ रहा है।
किसी भी समस्या का समाधान तब तक सम्भव नहीं है, जब तक समस्या की जड़ को न समझा जाए। यहाँ दिक्कत इसी बात की है।
सबसे पहले स्वाभाविक प्रवाह को बनाए रखने का प्रयास करना होगा। नदी के मैदान को अवैध बालू के खनन से बचाना होगा। साथ ही नदी में जाने वाले किसी भी प्रकार के अवशिष्ट को रोकने का प्रबन्ध करना होगा। किसी भी प्रकार के अवशिष्ट से मेरा आशय उपचारित और अनुपचारित दोनों से है।
‘यमुना बचाओ अभियान’ आप बहुत दिनों से चला रहे हैं। इस दौरान आपका क्या अनुभव रहा है?
हाँ, यह सही बात है कि यमुना को लेकर पिछले कई सालों से मैं काम कर रहा हूँ। 2007 में हमलोगों ने ‘यमुना जिये अभियान’ शुरू किया था। हालाँकि शुरुआती दौर में हमारी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं था। यमुना के सन्दर्भ में हम जो सन्देश देना चाहते थे, वह लोगों तक नहीं पहुँचते थे, लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है। अब नागरिक समाज हो या सरकार दोनों ही इस गम्भीर मुद्दों पर हमारी बात सुनती है। मीडिया का भी काफी सहयोग मिला है। मूल वजह यही है कि ‘यमुना जिये अभियान’ इतना आगे बढ़ पाया है।
गंगा के प्रवाह तन्त्र में यमुना की क्या भूमिका है?
यमुना तो गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह गंगा से कहीं ज्यादा पानी अपने साथ लाती है और इलाहाबाद में गंगा के प्रवाह को नया जीवन देती है। ऐसे में यदि यमुना का प्रवाह और उसके जल की गुणवत्ता प्रभावित होगी, तो गंगा पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
दिल्ली के सन्दर्भ में यमुना की क्या उपयोगिता है?
इतना समझ लीजिए कि यह नदी दिल्ली की जीवन रेखा है। यह दिल्ली में पानी का एक मात्र स्रोत है। यमुना नदी दिल्ली की 70 फीसदी पानी की जरूरतों को पूरा करती है। इन सबके अलावा यमुना दिल्ली की पहचान है। इस शहर की सभ्यता और संस्कृति का पालना है।
दिल्ली में जारी पेड़-पौधे की कटाई और अवैध खनन का यमुना पर क्या प्रभाव पड़ा है?
वन की कटाई की प्रक्रिया बारिश को प्रभावित करती है। इसकी वजह से बारिश का समय और उसकी तीव्रता दोनों में विचलन होता है। मतलब यह कि बारिश कभी भी हो जाती है। साथ ही बारिश की मात्रा भी निश्चित नहीं होती। इसका सीधा प्रभाव नदी की जल उपलब्धता पर पड़ता है, क्योंकि नदी को जो पानी मिलता है, वह कहीं बाहर से नहीं आता है, बल्कि वर्षा के जल से मिलता है। पेड़-पौधे बारिश के इस जल को संचित करके रखते हैं। इसलिए छोटे-छोटे नदी- नालों का जन्म होता है जो नदी में जल की आपूर्ति करते रहते हैं। वन के कटने से यह सिलसिला थम जाता है।
जहाँ तक अवैध बालू खनन की बात है तो उसका सीधा प्रभाव नदी की तलहटी पर पड़ता है। नदी में बालू के खनन से उसकी तलहटी में अस्थिरता आ जाती है। जब नदी में पानी कम होता है, तब नदी के प्रवाह को यह बाधित करती है।
यमुना का जो हाल वर्तमान में है, उसकी वजह आप क्या मानते हैं?
समस्या की जड़ के बारे में समझ का अभाव है। यह समझ लेना चाहिए कि उसे नदी नहीं कहा जा सकता है, जिसमें प्रवाह न हो। दिल्ली में यमुना की यही हालत है। उसमें प्रवाह नाम की चीज ही नहीं है। इसमें एक दर्जन से ज्यादा नालों का पानी गिरता है। तमाम उद्योगों का कचरा यमुना में ही आता है। शहर की गन्दगी से यमुना को दूर रखा जाए, इसको लेकर कोई कारगर उपाय नहीं किए जा सके हैं।
यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए अब तक जो प्रयास किए गए हैं, उसमें कहाँ तक सफलता मिली है?
नदी के लिए उसका प्रवाह बहुत जरूरी है। इस दिशा में अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं किए गए हैं। हालाँकि तथाकथित यमुना एक्शन प्लान के तहत जो कवायद की गई, वह सिर्फ प्रदूषण मुक्त यमुना के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करने पर केंद्रित थी। उसका भी कोई परिणाम नजर नहीं आ रहा है।
क्या आप मानते हैं कि यमुना को बचाने के लिए सरकार का रवैया गैर-जिम्मेदारी भरा रहा है?
किसी भी समस्या का समाधान तब तक सम्भव नहीं है, जब तक समस्या की जड़ को न समझा जाए। यहाँ दिक्कत इसी बात की है।
यमुना को स्वच्छ रखने के लिए आपका क्या सुझाव है?
सबसे पहले स्वाभाविक प्रवाह को बनाए रखने का प्रयास करना होगा। नदी के मैदान को अवैध बालू के खनन से बचाना होगा। साथ ही नदी में जाने वाले किसी भी प्रकार के अवशिष्ट को रोकने का प्रबन्ध करना होगा। किसी भी प्रकार के अवशिष्ट से मेरा आशय उपचारित और अनुपचारित दोनों से है।
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