दिल्ली शहर के तेजी से बढ़ने के कारण 1600 अनधिकृत कॉलोनियां, 189 शहरीकृत गांव और उनका विस्तार, 1000 से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर के कारण कुछ क्षेत्रों में कानूनी और संस्थागत बाध्यता के कारण यहां सीवर सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई, जिसके कारण असंशोधित पानी नालों और नालियों के जरिए यमुना में मिल रहा है। यमूना के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण वर्तमान में 22 नालों से गंदा पानी औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, ठोस कचरा आदि यमुना में सीधे छोड़ा जाना भी है। नई दिल्ली, 24 जून। यमुना नदी के प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए दिल्ली सरकार ने एक व्यापक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत नदी में गिरने के पहले नालों के मल-जल को साफ किया जाएगा।
दिल्ली जल बोर्ड तीन प्रमुख नालों (सप्लीमेंट्री, नजफगढ़ और शारदरा) के साथ एक इंटरसेप्टर सीवर तैयार कराएगा, जिसकी लंबाई 59 किलोमीटर होगी। इस सीवर को करीब 100 सहायक छोटी नालियों से जोड़ा जाएगा और इसे नजदीकी सीवर ट्रीटमेंट संयंत्र तक पहुंचाया जाएगा।
यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रमुख नालों में सिर्फ उपचारित अवशिष्ट ही मिले। इस प्रक्रिया से लगभम 70 फीसद प्रदूषण कम हो जाएगा।
इस पहल का मुख्य मकसद यमुना नदी को बढ़ते हुए प्रदूषण से बचाना और यमुना की विरासत को अक्षुण्ण रखना है। इन सभी मुद्दों पर उप राज्यपाल ने सोमवार को एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में यमुना नदी के पुनरुद्धार, विकास और परियोजना को तय समय में समाप्त करने के बारे में व्यापक चर्चा की गई।
इस योजना में मुख्य कार्य दिल्ली जल बोर्ड के साथ मिल कर प्रदूषण की जांच की जाएगी। इसके तहत यमुना नदी में स्वच्छ उपलब्ध जल को प्रदान करना तथा सीवर आदि के गंदे पानी को शोधित करके यमुना में प्रवाहित करना आदि शामिल है।
दिल्ली शहर के तेजी से बढ़ने के कारण 1600 अनधिकृत कॉलोनियां, 189 शहरीकृत गांव और उनका विस्तार, 1000 से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर के कारण कुछ क्षेत्रों में कानूनी और संस्थागत बाध्यता के कारण यहां सीवर सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई, जिसके कारण असंशोधित पानी नालों और नालियों के जरिए यमुना में मिल रहा है।
यमूना के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण यह भी है। वर्तमान में 22 नालों से गंदा पानी औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, ठोस कचरा आदि यमुना में सीधा छोड़ा जा रहा है।
अरुणा नगर, जेजे क्लस्टर से खैबर पास नाले के बीच चल रहे सीवर अवरोधक, जिससे स्वीपर कॉलेनी, मैगजीन रोड और खैबर पास नाले का असंशोधित पानी मिलता था, आंशिक रूप से चालू हो गया है जो जून, 2015 तक पूरी तरह से काम करना चालू कर देगा। इन नालों से निकलने वाला अपशिष्ट पंप करके निगम बोध और ओखला सीवर शोधन संयंत्र तक ले जाया जाएगा, जिसकी जल शोधन क्षमता 170 एमजीडी है।
मैटकॉफ हाऊस, कुदसिया बाग, मोरी गेट, तांगा स्टैंड, सिविल मिलिट्री नाला का पानी शोधित होकर विद्यमान रिंग रोड ट्रंक सीवर में शोधित होगा, जिसको यमुना एक्शन प्लान-2 के तहत पुनःस्थापित किया गया है। इन नालों से निकलने वाला अपशिष्ट पंपों के जरिए ओखला जलशोधन संयंत्र में जाएगा।
यह काम भी जून 2015 तक पूरा हो जाएगा। दिल्ली गेट नाले के मुहाने पर स्थित जल शोधन संयंत्र क्षमता 2.2 से बढ़ाकर 17.2 एमजीडी कर दी गई है।
इसका 65 फीसद काम पूरा हो गया है और यह प्लांट दिसंबर 2015 तक पूरी तरह से काम करना चालू कर देगा। बारापूला नाला जिसकी अवजल शोधन क्षमता 30-40 एमजीडी है, इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड लघु, मध्यम तथा दीर्घ अवधि योजना बनाएगा ताकि सारा गंदा पानी जो बारापूला नाले में मिलता है उसको संशोधित करके ओखला सीवर शोधन संयंत्र में पहुंचाया जा सके।
दिल्ली जल बोर्ड ने 604 एमजीडी शोधन क्षमता को छुआ। 80 एमजीडी के चार संयंत्र, जो पप्पनकलां (20 एमजीडी), निलोठी (20 एमजीडी), दिल्ली गेट (15 एमजीडी) और यमुना विहार (25 एमजीडी) है, का निर्माण कार्य प्रगति पर है और जिसके दिसंबर 2014 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। जिससे दिल्ली जल बोर्ड 684 एमजीडी क्षमता को छूने में सहायक हो जाएगी।
100 किलोमीटर ट्रंक सीवर की परिधि में आने वाले सभी सीवर शोधन संयंत्रों को पुनः स्थापित किया जा रहा है और 168 किलोमीटर लंबे पैरीफेरल सीवर के पुनःस्थापन का कार्य प्रगति है इसके पूरा होने में तीन साल लगेंगे।
पप्पनकलां, निलोठी, दिल्ली गेट, चिल्ला तथा कापसहेड़ा आदि स्थानों पर अधिक मात्रा में अपशिष्ट शोधन करने वाले सीवर शोधन संयंत्र लगाए जाएंगे। यह भी प्रस्तावित है कि सभी पुराने सीवर शोधन संयंत्रों की शोधन क्षमता को बढ़ाने के लिए यमुना कार्य योजना-3 के तहत सुधारा जाएगा, जिसके टेंडर का काम प्रक्रियाधीन है।
सीवेज मास्टर प्लान, 2031 के तहत दिल्ली जल बोर्ड, जिन क्षेत्रों में सीवर नहीं है, वहां सीवर व्यवस्था को स्थापित करने का काम प्रक्रियाधीन है। अब तक 567 अनधिकृत कॉलोनियों में से 541 कॉलोनियां, 135 शहरीकृत गांवों में से 131 गांव, 44 पुनर्वास कॉलोनी, 189 गांवों में से 134 गांव और 1639 अनधिकृत/नियमित कॉलोनियों में से 104 कॉलोनियों में सीवर सुविधा उपलब्ध है।
162 कॉलोनियों में सीवर व्यवस्था का काम चल रहा है और अन्य 142 कॉलोनियों में सीवर व्यवस्था के कार्य के लिए निविदा आदि आमंत्रित कर दी गई हैं। इन सभी कार्यों के क्रियान्वयन के लिए दिल्ली जल बोर्ड को लगभग 25000 करोड़ रुपए व्यय करने होंगे।
उप राज्यपाल ने अन्य सभी संबंधित विभागों के साथ इन मुद्दों पर चर्चा की और उनसे सहयोग के लिए कहा, जो इन सभी योजनाओं पर कार्य करेंगे। दिल्ली नगर निगम और लोक निर्माण विभाग – ठोस कचरा प्रबंधन के लिए कार्य करें ताकि यमुना नदी में छोटे और बड़े नालों के द्वारा ठोस कचरा प्रवाहित न हो सके।
नालों की नियमित रूप से गाद निकालना और ठोस कचरे को निर्धारित सेनेटरी लैंडफील जगहों पर डालना। सरकार ने अभी हाल ही में आठ लैंडफील साइट नगर निगम को दिए हैं।
उप राज्यपाल ने बैठक में उपस्थित दिल्ली जल बोर्ड और अन्य सहभागी विभागों को कहा कि यमुना के विकास में कोई कसर बाकी नहीं रहे। यमुना के विकास की प्रतिबद्धता प्राथमिकता होनी चाहिए।
दिल्ली जल बोर्ड तीन प्रमुख नालों (सप्लीमेंट्री, नजफगढ़ और शारदरा) के साथ एक इंटरसेप्टर सीवर तैयार कराएगा, जिसकी लंबाई 59 किलोमीटर होगी। इस सीवर को करीब 100 सहायक छोटी नालियों से जोड़ा जाएगा और इसे नजदीकी सीवर ट्रीटमेंट संयंत्र तक पहुंचाया जाएगा।
यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रमुख नालों में सिर्फ उपचारित अवशिष्ट ही मिले। इस प्रक्रिया से लगभम 70 फीसद प्रदूषण कम हो जाएगा।
इस पहल का मुख्य मकसद यमुना नदी को बढ़ते हुए प्रदूषण से बचाना और यमुना की विरासत को अक्षुण्ण रखना है। इन सभी मुद्दों पर उप राज्यपाल ने सोमवार को एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में यमुना नदी के पुनरुद्धार, विकास और परियोजना को तय समय में समाप्त करने के बारे में व्यापक चर्चा की गई।
इस योजना में मुख्य कार्य दिल्ली जल बोर्ड के साथ मिल कर प्रदूषण की जांच की जाएगी। इसके तहत यमुना नदी में स्वच्छ उपलब्ध जल को प्रदान करना तथा सीवर आदि के गंदे पानी को शोधित करके यमुना में प्रवाहित करना आदि शामिल है।
दिल्ली शहर के तेजी से बढ़ने के कारण 1600 अनधिकृत कॉलोनियां, 189 शहरीकृत गांव और उनका विस्तार, 1000 से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर के कारण कुछ क्षेत्रों में कानूनी और संस्थागत बाध्यता के कारण यहां सीवर सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई, जिसके कारण असंशोधित पानी नालों और नालियों के जरिए यमुना में मिल रहा है।
यमूना के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण यह भी है। वर्तमान में 22 नालों से गंदा पानी औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, ठोस कचरा आदि यमुना में सीधा छोड़ा जा रहा है।
अरुणा नगर, जेजे क्लस्टर से खैबर पास नाले के बीच चल रहे सीवर अवरोधक, जिससे स्वीपर कॉलेनी, मैगजीन रोड और खैबर पास नाले का असंशोधित पानी मिलता था, आंशिक रूप से चालू हो गया है जो जून, 2015 तक पूरी तरह से काम करना चालू कर देगा। इन नालों से निकलने वाला अपशिष्ट पंप करके निगम बोध और ओखला सीवर शोधन संयंत्र तक ले जाया जाएगा, जिसकी जल शोधन क्षमता 170 एमजीडी है।
मैटकॉफ हाऊस, कुदसिया बाग, मोरी गेट, तांगा स्टैंड, सिविल मिलिट्री नाला का पानी शोधित होकर विद्यमान रिंग रोड ट्रंक सीवर में शोधित होगा, जिसको यमुना एक्शन प्लान-2 के तहत पुनःस्थापित किया गया है। इन नालों से निकलने वाला अपशिष्ट पंपों के जरिए ओखला जलशोधन संयंत्र में जाएगा।
यह काम भी जून 2015 तक पूरा हो जाएगा। दिल्ली गेट नाले के मुहाने पर स्थित जल शोधन संयंत्र क्षमता 2.2 से बढ़ाकर 17.2 एमजीडी कर दी गई है।
इसका 65 फीसद काम पूरा हो गया है और यह प्लांट दिसंबर 2015 तक पूरी तरह से काम करना चालू कर देगा। बारापूला नाला जिसकी अवजल शोधन क्षमता 30-40 एमजीडी है, इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड लघु, मध्यम तथा दीर्घ अवधि योजना बनाएगा ताकि सारा गंदा पानी जो बारापूला नाले में मिलता है उसको संशोधित करके ओखला सीवर शोधन संयंत्र में पहुंचाया जा सके।
दिल्ली जल बोर्ड ने 604 एमजीडी शोधन क्षमता को छुआ। 80 एमजीडी के चार संयंत्र, जो पप्पनकलां (20 एमजीडी), निलोठी (20 एमजीडी), दिल्ली गेट (15 एमजीडी) और यमुना विहार (25 एमजीडी) है, का निर्माण कार्य प्रगति पर है और जिसके दिसंबर 2014 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। जिससे दिल्ली जल बोर्ड 684 एमजीडी क्षमता को छूने में सहायक हो जाएगी।
100 किलोमीटर ट्रंक सीवर की परिधि में आने वाले सभी सीवर शोधन संयंत्रों को पुनः स्थापित किया जा रहा है और 168 किलोमीटर लंबे पैरीफेरल सीवर के पुनःस्थापन का कार्य प्रगति है इसके पूरा होने में तीन साल लगेंगे।
पप्पनकलां, निलोठी, दिल्ली गेट, चिल्ला तथा कापसहेड़ा आदि स्थानों पर अधिक मात्रा में अपशिष्ट शोधन करने वाले सीवर शोधन संयंत्र लगाए जाएंगे। यह भी प्रस्तावित है कि सभी पुराने सीवर शोधन संयंत्रों की शोधन क्षमता को बढ़ाने के लिए यमुना कार्य योजना-3 के तहत सुधारा जाएगा, जिसके टेंडर का काम प्रक्रियाधीन है।
सीवेज मास्टर प्लान, 2031 के तहत दिल्ली जल बोर्ड, जिन क्षेत्रों में सीवर नहीं है, वहां सीवर व्यवस्था को स्थापित करने का काम प्रक्रियाधीन है। अब तक 567 अनधिकृत कॉलोनियों में से 541 कॉलोनियां, 135 शहरीकृत गांवों में से 131 गांव, 44 पुनर्वास कॉलोनी, 189 गांवों में से 134 गांव और 1639 अनधिकृत/नियमित कॉलोनियों में से 104 कॉलोनियों में सीवर सुविधा उपलब्ध है।
162 कॉलोनियों में सीवर व्यवस्था का काम चल रहा है और अन्य 142 कॉलोनियों में सीवर व्यवस्था के कार्य के लिए निविदा आदि आमंत्रित कर दी गई हैं। इन सभी कार्यों के क्रियान्वयन के लिए दिल्ली जल बोर्ड को लगभग 25000 करोड़ रुपए व्यय करने होंगे।
उप राज्यपाल ने अन्य सभी संबंधित विभागों के साथ इन मुद्दों पर चर्चा की और उनसे सहयोग के लिए कहा, जो इन सभी योजनाओं पर कार्य करेंगे। दिल्ली नगर निगम और लोक निर्माण विभाग – ठोस कचरा प्रबंधन के लिए कार्य करें ताकि यमुना नदी में छोटे और बड़े नालों के द्वारा ठोस कचरा प्रवाहित न हो सके।
नालों की नियमित रूप से गाद निकालना और ठोस कचरे को निर्धारित सेनेटरी लैंडफील जगहों पर डालना। सरकार ने अभी हाल ही में आठ लैंडफील साइट नगर निगम को दिए हैं।
उप राज्यपाल ने बैठक में उपस्थित दिल्ली जल बोर्ड और अन्य सहभागी विभागों को कहा कि यमुना के विकास में कोई कसर बाकी नहीं रहे। यमुना के विकास की प्रतिबद्धता प्राथमिकता होनी चाहिए।
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