यमुना के लिए इंटरसेप्टर योजना की समीक्षा

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरॉनमेंट ने काफी नजदीक से इंटरसेप्टर योजना की छानबीन की और पाया कि यह हार्डवेयर योजना पूरी तरह पैसे की बर्बादी है। 2009-2012 के दौरान भारी निवेश योजनाओं के बावजूद नदी मृत ही रहेगी। दिल्ली जल बोर्ड ने यमुना प्रदूषण की समस्याओं के लिए रामबाण के रूप में इंटरसेप्टर परियोजना को प्रोजेक्ट किया है। इस परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि जिस रूप में इसे तैयार किया गया है,उसका परिणाम एक स्वच्छ नदी में नहीं दिखता है। इसके कारण नालियों में अधिक पैसा बहेगा।

यह प्रयास केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा चलाए गए यमुना एक्शन प्लान की आलोचना के बाद दिल्ली जल बोर्ड ने शुरू किया था। अब तक इस परियोजना में दिल्ली सरकार ने 1500 करोड़ रुपए से अधिक सिर्फ दिल्ली की 50 फीसदी आबादी को अपने सीवरेज नेटवर्क से जोडने के लिए खर्च किया है। दिल्ली के पास सबसे बड़ी सीवरेज सुविधा है-6000 किलोमीटर सेवेर्स और प्रति दिन 2330 मिलियन लीटर मलजल उपचार की क्षमता।

सीएसई ने अपनी रिपोर्ट “सीवेज कैनाल- हाउ टू क्लीन यमुना ” में इशारा किया है कि नदी की सफाई के लिए हमारे दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है। एक ऐसा दृष्टिकोण जो मानक हार्डवेयर-नाला और एसटीपी-दृष्टिकोण से अलग हो। ऐसी योजना जो पानी, मल और प्रदूषण के बीच संबंधों को और सबसे महत्वपूर्ण प्रामाणिक आंकडों की जरूरत को समझती हो।

मूल रिपोर्ट के लिये संलग्नक देखें-

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