यमुना बचाने का संदेश देते स्वयंसेवक

मंगलवार, 1 सितम्बर से दिल्लीवासियों को यमुना नदी में अपने घर का कचरा और पूजा-पाठ तथा अन्य धार्मिक सामग्री फ़ेंकने में समस्या का सामना करना पड़ेगा। कुछ नागरिकों और स्कूली बच्चों ने स्वयंसेवकों की एक फ़ौज तैयार करके 'अडॉप्ट अ ब्रिज' अर्थात 'एक पुल को गोद लो' नामक योजना शुरु की है, ताकि यमुना नदी को कचरा फ़ेंकने का मैदान बनने से रोका जा सके। इस योजना को प्रायोगिक रूप से पहली बार निज़ामुद्दीन पुल से शुरु किया गया है, जहाँ यमुना जिये अभियान नामक NGO ने इस मुहिम की शुरुआत की।

यमुना जिये आन्दोलन के संयोजक मनोज मिश्रा कहते हैं, '…पुल प्रत्येक शहर की सबसे महत्वपूर्ण और दिखाई देने वाली संरचना होती है, हमने तय किया है कि 'यमुना बचाओ' के नारे और संदेश को घर-घर पहुँचाने के लिये पुलों का उपयोग किया जायेगा, हम चाहते हैं लोग नदी में कचरा फ़ेंकना बन्द करें…'। इस अभियान में 20-25 स्वयंसेवकों का एक समूह अगले एक माह तक निज़ामुद्दीन पुल पर प्रतिदिन निगाह रखेगा। आगे उन्होंने बताया कि '…ये स्वयंसेवक शिफ़्टों में काम करेंगे जैसे सुबह 9 से 12 और फ़िर दोपहर 2 से 5 बजे तक। ये स्वयंसेवक यमुना को साफ़ रखने और उसे बचाने के संदेश और स्लोगन लिये होंगे और साथ में प्रत्येक स्वयंसेवक के साथ एक बड़ा बक्सा होगा, नदी में फ़ेंके जाने वाले कचरे को उस बक्से में डालने का भी अनुरोध वे नागरिकों से करेंगे…। बक्से में एकत्रित होने वाली कचरा सामग्री को 'बायोडीग्रेडेबल' (सड़ाकर जैविक खाद) बनाने वाले संयंत्रों को सौंपा जायेगा, तथा प्लास्टिक को रीसायक्लिंग करने के लिये। स्वयंसेवकों द्वारा दिन भर एकत्रित होने वाले कचरे का हिसाब-किताब रखा जायेगा, कि उन्होंने यमुना नदी में कितना कचरा फ़ेंके जाने से बचाया…'।

ये स्वयंसेवक निज़ामुद्दीन पुल के पैदल-पथ पर बैनर और तख्तियाँ लिये खड़े होंगे और आने-जाने वालों से यमुना में कुछ न फ़ेंकने की अपील करेंगे। इस जनजागरण के काम के लिये हमें तत्पर और प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। फ़िलहाल हमें कुछ जागरूक नागरिकों और दो स्कूलों से मदद का आश्वासन मिला है और कुछ अन्य लोगों ने इस कार्य के प्रति रुचि दर्शाई है। इसी प्रकार कुछ सरकारी अधिकारी और पुल के रखरखाव हेतु जिम्मेदार कर्मचारी भी पर्यावरण को बचाने के इस काम में मदद करने वाले हैं। मिश्रा ने आगे बताया कि '…यह प्रयोग पहले भी 14 अगस्त को दिन भर के लिये किया जा चुका है, और हमने पाया कि पूजा सामग्री और धार्मिक गतिविधियों के बाद बचे हुए कचरे को सही और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाने के लिये लोग उत्सुक दिखे, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अदालती आदेशों के बावजूद सरकारें और अन्य प्रशासनिक विभाग इस तरफ़ गम्भीरता से देखने को तैयार ही नहीं हैं…'। इस आपराधिक सुस्ती के खिलाफ़ बच्चों और नागरिकों का यह अभियान जनजागरण करने में निश्चित ही उपयोगी सिद्ध होगा…।

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