रामलीला मैदान में तब्दील हुआ आली गांव परिसर
यमुना को फिर से जीवन मिलने की आस लिए दिल्ली की सड़कों पर पैदल गुजरती गोपियों, नंद सखाओं और नंद नगरी की गइयों के काफिले में कई ऐसे श्रद्धालु भी पहुंचे जो देश के अलग-अलग हिस्सों से ही नहीं, विदेश से भी यहां यमुना से अपने लगाव को दर्शाने आए हैं। राधा कृष्ण भक्तों के इस तबके को भी आस है कि भारतीय संस्कृति की इस अनमोल धारा को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा। उनका कहना है कि यह अभियान किसी नदी के संरक्षण से ही नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही आस्था को संरक्षित करने से भी वास्ता रखता है। ढोल नगाड़ों की थाप और फूलों की बारिश के बीच लंबी यात्रा के बाद दिल्ली में प्रवेश पाए यमुना आंदोलनकारियों का राजधानी में सोमवार को भव्य स्वागत किया गया। राजधानी पहुंचे इन आंदोलनकारियों को सरिता विहार के आली गांव के एक मैदान में ठहराया गया है। गांव में प्रवेश करते ही इन आंदोलनकारियों के दर्शन मात्र करने के लिए हजारों की तादाद में स्थानीय लोग यहां एकत्रित हुए और रास्ते से गुजरते इनके काफ़िले को देखने के लिए घर की महिलाएं व बच्चे भी अपने घर की छतों और बरामदों पर पहुँचकर यमुना की स्वच्छता पर लगाए जा रहे नारों में अपनी आवाजें जोड़ते दिखे। शाम तक करीब 20 से 25 हजार की आबादी में एकत्रित हुए इस हुजूम का बदरपुर बॉर्डर में प्रवेश दोपहर बारह बजे से शुरू हुआ था और सड़कों और फ्लाई ओवरों से पैदल चलते हुए काफिला करीब तीन बजे आली गांव के अपने निर्धारित पड़ाव तक पहुंचा। आंदोलकारियों के यहां प्रवेश के साथ ही यहां का नज़ारा रामलीला मैदान और जंतर-मंतर में तब्दील होता दिखाई दिया। आंदोलनकारियों के यहां पहुंचने से पहले ही स्थानीय लोगों ने इनके स्वागत में अपनी तरफ से पूरा योगदान देते हुए दोपहर से पहले तक तमाम व्यवस्थाएं दुरुस्त कर लीं और करीब 11 दिनों के इस पैदल यात्रा के बाद राजधानी में प्रवेश पाए इन आंदोलनकारियों के विश्राम करने से लेकर खाने पीने व अन्य तमाम व्यवस्थाओं का मुआयना भी किया गया।
सुरक्षा के लिए चाकचौबंद
सुरक्षा की दृष्टि से यहां की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने के लिए परिसर के करीब हर पेड़ व खंभों पर सीसीटीवी कैमरे नजर आए। सुरक्षा की गंभीरता को देखते हुए यहां दिल्ली पुलिस के अलावा सीआरपीएफ, रेपिड एक्शन फोर्स और महिला पुलिसकर्मी भी भारी संख्या में तैनात किए गए हैं। उमड़ते समर्थकों की तादाद को देखते हुए एक दिन पहले ही गांव तक पहुंचने वाले तमाम रास्तों पर पुलिस बल तैनात कर दी गई थी।
अगला पड़ाव संसद मार्ग
यमुना मुक्ति यात्रा के आंदोलनकारियों व सरकार के बीच कई दौर की वार्ता में समाधान का रास्ता निकलकर आ रहा है। लेकिन खबर लिखे जाने तक सरकार से कोई लिखित आश्वासन न मिलने की वजह से मंगलवार को आली गांव से सीधा संसद मार्ग पर धरना प्रदर्शन की उम्मीद बढ़ गई है। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह ने कहा कि सरकार हमारी मांगों को यदि पूरी तरह से रात 12 बजे तक स्वीकार कर लेती है तो हम यहां से वापस जाने को तैयार हैं। लेकिन यदि हमें पिछले साल की तरह फिर से अंधेरे में रखने की कोशिश की गई तो हम संसद की तरफ मंगलवार को कूच करेंगे।
विदेशी श्रद्धालुओं को भी सरकार से आस
प्रणति तिवारी
यमुना को फिर से जीवन मिलने की आस लिए दिल्ली की सड़कों पर पैदल गुजरती गोपियों, नंद सखाओं और नंद नगरी की गइयों के काफिले में कई ऐसे श्रद्धालु भी पहुंचे जो देश के अलग-अलग हिस्सों से ही नहीं, विदेश से भी यहां यमुना से अपने लगाव को दर्शाने आए हैं। राधा कृष्ण भक्तों के इस तबके को भी आस है कि भारतीय संस्कृति की इस अनमोल धारा को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा। उनका कहना है कि यह अभियान किसी नदी के संरक्षण से ही नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही आस्था को संरक्षित करने से भी वास्ता रखता है। फ्रांस से वृंदावन आई कृष्ण भक्त माया कहती हैं कि यमुना के बिना ब्रज वैसे ही है जैसे राधा के बिना कृष्ण। यदि यहां की ही सरकार अपनी इस अनमोल धरोहर को बचाने के लिए प्रयासरत नहीं होगी तो यह दुर्भाग्य की बात है। कृष्ण नगरी मथुरा वृंदावन में यमुना को स्वच्छ किया जाना आवश्यक है जिससे मंदिरों में आचमन के लिए पारंपरिक जल के रूप में इसका प्रयोग किया जा सके। इस्कॉन से ही जुड़ी अमेरिका से आई कौशल्या ने सरकार के रवैये पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि पीएम यदि ग्रंथ साहब पढ़े हैं तो संतों की महिमा जरूर जानते होंगे।
यमुना जी के वास्ते खाली कर दो रास्ते
हजारों की तादाद में राजधानी की सड़कों से गुजरता यह कारवां लगातार यह नारा लगाते दिखाई दिया कि 'यमुना जी के वास्ते, खाली कर दो रास्ते'। इस आह्वान के साथ निकला यह काफिला शांतिमय तरीके से सड़कों और फ्लाई ओवर से गुजरता हुआ स्थानीय लोगों के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहा। आंदोलन में शामिल होने के लिए माइक की मदद से लोगों को आमंत्रित भी किया जा रहा था। सड़कों पर नाचते गाते और गोकुल, ब्रज, मथुरा आदि नंदनगरियों की पारंपरिक वेशभूषा में गुजरते इन आंदोलनकारियों ने लगातार सरकार से गुहार लगाई कि वह यमुना की अविरल धारा को बंधनमुक्त करें और दुर्दशा होने से रोके। यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह दिल्ली से वापिस नहीं जाएंगे और ब्रज की होली भी नहीं होगी। हालांकि इस काफिले के आली गांव तक पहुंचने तक दोपहर करीब दो बजे से शाम चार बजे तक का वक्त लगा जिस वजह से दिल्ली से फ़रीदाबाद जाने वाला मथुरा रोड घंटों जाम भी रहा।
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