यमुना आंदोलन के प्रति सरकार ने दिखाई बेरुखी

आंदोलनकारी किसान
आंदोलनकारी किसान

नई दिल्ली। सूखी यमुना में पर्याप्त पानी छोड़े जाने की मांग को लेकर पिछले दो महीने से चल रहा आंदोलन आखिरकार एक मई को समाप्त हो गया। अहम मामलों पर सरकार की बेरुखी रविवार को एक बार फिर उस समय सामने आई जब धरने पर बैठे संतों व किसानों से मिलने उसका कोई नमुाइंदा आगे नहीं आया और बगैर किसी नतीजे के आंदोलन का पटाक्षेप हो गया। हालांकि, इस आंदोलन के समर्थन में रविवार को देश के कुछ अन्य हिस्सों में बुद्धिजीवियों और समाज के प्रबुद्ध लोगों ने सहानुभूति जरूर जताई। इसके तहत मुंबई, जोधपुर और मथुरा में भी धरने दिए गए।

ज्ञात हो कि 45 दिनों की लगभग सात सौ किलोमीटर पैदल यात्रा करने के बाद सैकड़ों की तादाद में किसान और संतों ने जंतर-मंतर पर अनशन किया और यमुना की अविरल धारा प्रवाह को जारी रखने की मांग की। ये अनशनकारी 13 अप्रैल से एक मई तक जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर डटे रहे, इसके बावजूद सरकार इनके प्रति उदासीन बनी रही और मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस दौरान अनशनकारियों ने हरियाणा के हथिनीकुंड के अलावा राजधानी स्थित वजीराबाद बैराज और ओखला बैराज का दौरा किया। संतों का कहना है कि यमुना को तीन स्थानों पर बांध दिया गया, जिसकी वजह से यमुनोत्री से आने वाला शुद्ध पानी दिल्ली से आगे बढ़ नहीं पाता है। ‘यमुना महारानी बचाओ पदयात्रा’ के महासचिव राजेन्द्र प्रसाद शास्त्री का कहना है कि हथिनीकुंड से पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं छोड़ा जाता है। इसके कारण दिल्ली में यमुना गंदे नाले में परिवर्तित हो चुकी है। जबकि, दिल्ली से आगे यमुना का अस्तित्व ही समाप्त होने के कगार पर है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार यमुना के प्रति उदासीन है और इस समस्या को दूर करने के बजाय मूकदर्शक बनी हुई है।

 

 

अब यूपी व बिहार में निकालेंगे रथयात्रा


रविवार को आंदोलनकारियों ने अनशन तो समाप्त कर दिया है, लेकिन उन्होंने जाते-जाते राजनेताओं को चेतावनी दे डाली है। सरकारी उदासीनता से नाराज अनशनकारी भले ही जंतर-मंतर से चले गए हों, लेकिन उन्होंने सरकार को घेरने के लिए अभी से योजनाएं बनानी शुरू कर दी हैं। किसानों का कहना है कि यमुना को उसका वास्तविक स्वरूप दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश व बिहार में जनजागरण अभियान चलाया जाएगा और आने वाले विधानसभा चुनाव में उसी प्रत्याशी को वोट दिया जाएगा, जो यमुना की आवाज को उठाएगा।

‘यमुना महारानी बचाओ पदयात्रा’ के राष्ट्रीय संरक्षक संत जयकृष्ण दास का कहना है कि अब इसको राजनीतिक मुद्दा बनाया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने ‘यमुना जल लाओ, फिर राहुल यूपी आओ’ और ‘जो यमुना जल लाएगा, वही विधानसभा में जाएगा’ का नारा भी दिया। उन्होंने आगे कहा कि सरकारी उदासीनता के खिलाफ पश्चिमी यूपी के 18 मंडलों में रथयात्रा के जरिए जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। अलीगढ़ से शुरू होकर यह यात्रा सहारनपुर में समाप्त होगी। दूसरी ओर एक जून से 15 जुलाई तक बिहार के बक्सर जिले से रथयात्रा शुरू होकर 38 जिलों तक जाएगी। इसी तरह, 15 जुलाई से 21 अगस्त तक बरसाना-मथुरा में विशेष अभियान चलाया जाएगा और जन्माष्टमी से पूर्व 21 अगस्त को मथुरा में एक बड़ी रैली का आयोजन किया जाएगा। संतों व किसानों की मांग है कि यमुना में 30 क्यूमेक पानी अतिरिक्त छोड़ा जाए, ताकि यमुना को उसका वास्तविक स्वरूप मिल सके और नदी से प्रदूषण समाप्त हो। अनशनकारियों की मांगों को पर्यावरणविद भी जायज ठहरा रहे हैं।

उनका कहना है कि किसान नदी की पवित्रता, वास्तविक प्रवाह और प्राकृतिक रूप देने की मांग कर रहे हैं। जो कार्य भारत सरकार को करना चाहिए, उस मुद्दे को आम किसान उठा रहे हैं। ज्ञात हो कि यदि 1996 के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को पूरी तरह से लागू कर दिया जाए तो यमुना की समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी।

 

 

 

 

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