यजमान पनगार और तुक्कड़ी प्रणाली : तालाब के जल वितरण का ज्ञान स्रोत

हमारे पूर्वजों ने तालाब के पानी के वितरण की जो प्रथा अपनाई वह विविध प्रकार की है। उन्होंने विशेष तौर पर सूखे के दौरान जो सावधानी और सरोकार जताया और जो भी थोड़ा बहुत पानी उपलब्ध था उसकी हिस्सेदारी के लिये जो भावना प्रदर्शित की वह अपने में अनुकरणीय है। कई प्रथाएँ रिकार्ड में नहीं हैं और वे खो भी चुकी हैं। यहाँ हम दो प्रथाओं की भूमिका प्रस्तुत कर रहे हैं जो जमीन की सिंचाई के बारे में किसानों के विवेक को रेखांकित करते हैं।

यजमान पनगार एक गाँव की बैठक में चुने जाते हैं जहाँ छह गाँवों के लोग जमा होते हैं और आपसी विमर्श के बाद अपने चयन के बारे में संकेत देते हैं। इस चयन में जाति और पंथ की कोई शर्त नहीं होती और हर कोई चुने जाने की अर्हता रखता है। जो किसान समुदाय के भीतर जनमत को प्रभावित कर सकते हैं और लोगों को एक साथ जोड़ सकते हैं उन्हें वरीयता दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान नहर के बाएँ किनारे के दो गाँवों के चार व्यक्तियों को और दाएँ किनारे के तीन गाँवों के छह लोगों को यजमान पनगार के रूप में नियुक्त किया जाता है। जेट्टी अग्रहार तुमकुर जिले के कोराटगेरे तालुका का एक गाँव है। यहाँ एक बड़ा तालाब है जिसका (कमांड एरिया) 477 एकड़ है। यह तालाब छह गाँव के मनुष्य और मवेशियों के लिये एक जीवनरेखा है। सभी छह गाँवों में प्रचलित यजमान पनगार के रूप में चर्चित प्रणाली एक समुदाय आधारित तालाब के पानी का सक्षम और समान वितरण सुनिश्चित करती है। यह प्रणाली अपने में सरल है लेकिन जिस व्यवहार के साथ इसे लागू किया जाता है, उससे किसानों के बीच एक प्रकार के सहयोग की भावना बनती है। यह प्रणाली ऐसी है जो कि क्षेत्र और इलाके से जुड़ी होने के बावजूद दूसरी जगहों के लिये अनुकरण का आदर्श बन सकती है।

पृष्ठभूमि


सन् 1911 में अंग्रेज सरकार ने एक ऐसी पहल शुरू की जिसके माध्यम से समुदायों को अपने संसाधन का खुद प्रबन्धन करने में सक्षम बनाना था और उसी के लिये सरकार ने तालाब पंचायत अधिनियम जारी किया। इस कानून के तहत एक ऐसा समुदाय जिसके स्वामित्व में तालाब के नीचे पड़ी बिना खेती वाली ज़मीन का आधे से कम हिस्सा न हो वह तालाब पंचायत बना सकता है। हालांकि इस काम के लिये उन लोगों को कमांड क्षेत्र के दो तिहाई लोगों की सहमति जरूरी थी।

तालाब पंचायत को समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर बनाया गया था और इसमें ग्राम प्रधान, लेखपाल और चुने हुए किसान शामिल होते थे। इसके कृषक सदस्यों में बिना खेती वाली ज़मीन व बागवानी की ज़मीन के स्वामी या भूमिहीन किसान भी शामिल हो सकते थे। पंचायत का कार्यकाल तीन साल का होता था और ग्राम प्रधान इसके अध्यक्ष के तौर पर काम करता था।

यह कानून जो कि पूरे देश पर लागू किया गया था बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि कई तालाब पंचायत अपने निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन नहीं कर सके। हालांकि कुछ गाँवों के किसानों को इस प्रणाली में सार्थकता लगी और वे आज तक इसे अपना रहे हैं, उन्होंने इलाके और समुदाय की विशेष आवश्यकता को देखते हुए इसमें बदलाव भी किया।

जेट्टी अग्रहार में यजमान पनगार प्रणाली


जेट्टी अग्रहार ऐसा गाँव है जहाँ पर इस प्रणाली को जीवित रखा गया है। इसके यजमान पनगार प्रणाली कहा गया है। यजमान का अर्थ कमांड एरिया से जुड़े किसान से है और यह मराठी शब्द पनग्राही का एक पर्याय है। यह प्रणाली अपने शीर्षक से ही दो व्यवस्थाओं के योग का संकेत देती है। यह कमांड एरिया के किसानों और पानी का नियमन करने वालों को समान जिम्मेदारी और अधिकार देता है।

हालांकि इस बात का कोई निश्चित रिकार्ड उपलब्ध नहीं है लेकिन समुदाय के अनुसार अम्माजम्मा नाम की एक रानी ने जेट्टी अग्रहार को 1870 में जत्ती को उपहार में दे दिया था। धर्मादा इस के अवसर की याद में गाँव में एक छोटा सा तालाब बनाया गया। बाद में 1904 में इसे बड़ा तालाब बना दिया गया।

इस तालाब का जलागम क्षेत्र 7.29 वर्ग किलोमीटर और जितने इलाके में पानी फैलता है वह इलाका 299 एकड़ है। इस तालाब का कमांड एरिया 477 एकड़ है जो छह गाँवों में फैला है। उन गाँवों के नाम हैं-जेट्टी अग्रहार, कुल्लूकुंडहल्ली, जम्पेनहल्ली, बेलदाराहल्ली, नवेलू कुरके और मल्लेस्वरा पाल्या। इन गाँवों के 853 किसान इस तालाब से फायदा उठाते हैं।

कमांड एरिया की ज़मीन को न्यूनतम 0.25 गुंटा और अधिकतम 14 गुंटा प्रति व्यक्ति के हिसाब से विभाजित किया गया है। स्थायी अनुदान के तौर पर नीरूगंती को चार एकड़, गाँव प्रमुख को 14 एकड़, जत्ती को 14 एकड़ गाँव के लेखपाल के परिवार को 14 एकड़ इनाम के तौर पर दिया जाता है। हालांकि तालाब में तीन द्वार हैं लेकिन केन्द्रीय द्वार को दुर्भाग्यशाली दुर्घटना के कारण बन्द कर दिया गया है। तकरीबन पचास साल पहले इसमें लीक हुआ था। नीरूगंती ने इसकी मरम्मत करने का विफल प्रयास किया लेकिन वह उसी में भीतर चला गया और मर गया। दो अन्य द्वार अच्छी स्थिति में काम कर रहे हैं। एक द्वार तीन गाँवों और दूसरा द्वार तीन गाँवों को पानी देता है।

इस तालाब के कमांड एरिया में आने वाले 477 एकड़ क्षेत्र में 20.24 एकड़ में बागवानी वाली फसलें हैं, 225.16 एकड़ में सिंचित भूमि है और 270.40 एकड़ अर्द्ध शुष्क क्षेत्र है। यजमान पनगार के कर्तव्य हैं पानी का समान वितरण सुनिश्चित करना, राज कालुव यानी मुख्य नहरों का रखरखाव और द्वारों की निगरानी। ज्यादातर गाँवों में जहाँ पारम्परिक जल वितरण प्रणाली आज भी चलन में है वहाँ नीरूगंती पानी का प्रबन्धन और नियमन करता है और जेट्टी अग्रहार में अभी भी नीरूगंती और यजमान प्रणाली अभी भी कुशलतापूर्वक चल रहे हैं।

इस चलन की कहीं और पर होने की सूचना नहीं है। कोलार जिले में धमाशा और तुक्कड़ी प्रणाली चलन में है लेकिन यहाँ यजमान प्रणाली के बारे में नहीं सुनाई पड़ता।

चयन प्रक्रिया


यजमान पनगार एक गाँव की बैठक में चुने जाते हैं जहाँ छह गाँवों के लोग जमा होते हैं और आपसी विमर्श के बाद अपने चयन के बारे में संकेत देते हैं। इस चयन में जाति और पंथ की कोई शर्त नहीं होती और हर कोई चुने जाने की अर्हता रखता है। जो किसान समुदाय के भीतर जनमत को प्रभावित कर सकते हैं और लोगों को एक साथ जोड़ सकते हैं उन्हें वरीयता दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान नहर के बाएँ किनारे के दो गाँवों के चार व्यक्तियों को और दाएँ किनारे के तीन गाँवों के छह लोगों को यजमान पनगार के रूप में नियुक्त किया जाता है। समुदाय यजमान पनगार के कार्य का हर साल आकलन करता है और जो अपने काम में कमजोर पाए जाते हैं उनकी जगह पर ज्यादा समर्पित लोगों को लाया जाता है।

कार्य प्रणाली


कमांड एरिया में कौन सी फसल पैदा की जाए इसका फैसला लेने से पहले यजमान पनगार किसानों की एक बैठक बुलाता है। तालाब में पानी के स्तर को देखते हुए सभी किसानों को स्वीकार्य एक सामूहिक निर्णय लिया जाता है।

अगर तालाब पूरा भरा होता है तो धान की फसल लगाई जाती है। अगर 18-19 फुट पानी है तो ज्वार, मूँगफली, या उसी तरह की फसल पैदा की जाती है। अगर पानी का स्तर सिर्फ 12 से 13 फुट हो तो सुपारी और नारियल के पौधों का पानी मिलता है। तालाब से कितना पानी छोड़ा जाना है और कब छोड़ा जाना है यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह की फसल उगाई जा रही है। अगर धान की फसल पैदा करने का निर्णय होता है तो पहले महीने में तालाब के दोनों द्वारों से पूरे कमांड एरिया में दिन में दो बार पानी छोड़ा जाता है।

महीना खत्म होने के बाद जेट्टी अग्रहार के कमांड एरिया के लिये सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक और बाकी गाँवों के लिये छह बजे शाम से सुबह छह बजे तक पानी दिया जाता है। सोमवार को जलद्वार बन्द रहते हैं और कोई पानी नहीं छोड़ा जाता। स्वतः अपनाए गए इस प्रतिबन्ध से पानी की किफायत में मदद मिलती है और उसके अनावश्यक प्रयोग को नियन्त्रित किया जा सकता है।

दिलचस्प बात यह है कि दूर वाले खेतों को रात में दो कारणों से पानी दिया जाता है। पहला कारण यह है कि अगर दूर वाले खेतों को दिन में पानी दिया गया तो पास वाले किसान अपने हक से ज्यादा पानी की माँग करेंगे। दूसरा कारण यह मान्यता है कि तापमान गिरने से पानी तेज बहता है और दूर वाले खेतों तक ज्यादा तेजी से पहुँच सकता है। यह छोटे-छोटे प्रयास जब एक दूसरे से जुड़ जाते हैं तो वे समान जल वितरण को सक्षम बनाने में काफी दूरी तक जाते हैं और समुदाय के भीतर परिहार्य विवादों को रोकने में कारगर होते हैं।

यजमान पनगार की अन्य जिम्मेदारियाँ भी हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं

1. मुख्य नहर की गाद निकालने और उसकी सफाई को सुनिश्चित करना।
2. जब जरूरी हो तो समुदाय को श्रमदान के लिये प्रेरित करना।
3. उन लोगों पर जुर्माना लगाना जो कि श्रमदान के लिये तैयार नहीं होते।
4. नीरूगंती के काम की निगरानी करना।
5. यह सुनिश्चित करना कि जलद्वार और उसके रेगुलेटर सही स्थिति में रहें।
6. कमांड एरिया के दोनों तरफ के किसानों के बीच उठने वाले विवादों का निपटारा करना।
7. फसलों का लगान इकट्ठा करना।
8. नहरों को अतिक्रमण से बचाने की निगरानी करना और अतिक्रमण करने वालों पर समय रहते कार्रवाई करना।
9. सिंचाई विभाग वगैरह से तालमेल करना।

समुदाय के सामने अक्सर पानी की कमी से ज्यादा पानी की बर्बादी से बड़ी समस्या खड़ी होती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब तालाब पूरा भरा रहता है लेकिन निजी राग द्वेष और लालच के चलते पानी का बराबर वितरण नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में यजमान पनगार प्रणाली उपयोगी है और किसानों को एक साथ लाने में मदद करती है।

तुक्कड़ी प्रणाली


तालाब निर्माण के दौरान समुदाय अहाता, कमांड एरिया और तालाब के रखरखाव पर विशेष ध्यान देता है। इस दिशा में हर गाँव की ज़रूरतों और तालाब की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए विभिन्न प्रकार की देशी प्रणालियों और प्रथाओं का पालन किया जाता है। तुक्कड़ी या निषेध प्रणाली एक ऐसी विशेष प्रथा है जो कि मलबगल तालुका और कोलार जिले में कई तालाबों में चलन में थी। इस वक्त यह हरमनहल्ली, मेलेरी, कम्मादत्ती और उत्तनुरू के चार तालाबों में अपनाई जाती है।

इस प्रणाली के तहत कमांड एरिया को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाता है और हर सीजन में बारी-बारी से उन तीनों हिस्सो को पानी दिया जाता है। यह ऐसी प्रणाली है जिसे पानी की कमी के दौरान समुदाय की सहमति से तैयार किया गया था। विवेक और अनुभव से तैयार की गई यह प्रणाली किसानों की जरूरत को समान रूप से पूरा करती है।

कम्मादत्ती गाँव की तुक्कड़ी प्रणाली


कोलार जिले के मुलबंगल तालुका के कम्मादत्ती गाँव में तुक्कड़ी प्रणाली आज भी सक्रियता से अपनाई जाती है। कम्मादत्ती गाँव देवार्य समुद्र पंचायत के दायरे में आता है और यह मुलबंगल-कोलार मार्ग पर स्थित है। पूर्वी कर्नाटक के इस शुष्क इलाके में कभी यह गन्ना पैदा करने वाला क्षेत्र हुआ करता था।

यहाँ के तालाब को कई अन्य तालाबों से पानी मिलता है। कमांड एरिया में 102 किसान और चार कुएँ हैं। तालाब में एक कल्याणी पड़ी रहती है जिसका इस्तेमाल लोग पीने के पानी के लिये करते हैं। इस तालाब में दो जलद्वार और चार राज कालुव (मुख्य नहरें) हैं। धान इस इलाके में पैदा की जाने वाली मुख्य फसल है। कमांड एरिया के चार और गाँवों में तुक्कड़ी प्रणाली की पालन होता है।

मानसून की फसल प्रणाली


मानसून के सीजन में वर्षा के लिहाज से कमांड एरिया में धान की बुवाई शुष्क मुट्टी की पद्धति से की जाती है। तालाब के पानी का प्रयोग तभी किया जाता है जब फसल के लिये नमी पर्याप्त नहीं होती। पानी का नियमन करना नीरूगंती की जिम्मेदारी है।

गर्मी का सीजन


पहली बुवाई के दौरान नीरूगंती गाँव के बुजुर्गों की सहमित से कमांड एरिया के सभी किसानों की एक बैठक बुलाता है। इस बैठक में अगली फसल बोने का निर्णय लिया जाता है और इसके बाद तुक्कड़ी प्रणाली अस्तित्व में आ जाती है।

तालाब के बीच में खड़ी कोक्करे गुट्टे नाम की एक शिला का इस्तेमाल तालाब के पानी के स्तर के आकलन के लिये किया जाता है। समुदाय के अनुसार यह प्राकृतिक पैमाना लगभग नौ फुट ऊँचा है। जब यह शिला पूरी तरह से पानी में डूब जाती है तो तालाब उफनाने लगता है और जब पानी का स्तर तकरीबन छह फुट होता है तो दूसरी फसल पैदा की जाती है। जब पानी का स्तर छह फुट से कम होता है तो कोई फसल नहीं पैदा की जाती। उस वक्त तालाब के पानी का इस्तेमाल सिर्फ कपड़ा धोने और मवेशियों के पीने के लिये किया जाता है।

समुदाय ने कमांड एरिया को तीन हिस्सों में बाँट रखा है। इन इलाकों को हल्ला कट्टू, मोदाला कट्टू और मेडू कट्टू कहा जाता है। जब पानी का स्तर कम होता है तो फसल को सभी इलाकों में नहीं पैदा किया जा सकता क्योंकि पानी सभी क्षेत्रों के लिये पर्याप्त नहीं होता। ऐसी स्थिति में हर इलाके में बारी-बारी से खेती की जाती है। ऐसे मौकों पर दूसरे किसान न तो फसल नहीं पैदा कर पाते न तालाब के पानी का इस्तेमाल कर पाते हैं। चाहे किसान की ज़मीन नहर के एकदम किनारे होती है और ज़मीन में पर्याप्त नमी होती है तब भी इस प्रणाली में परिवर्तन नहीं आय़ा। यह भी सम्भव है कि किसी किसान की बारी कई वर्षों में एक बार ही आए।

इस नियम में उन किसानों को छूट दे दी जाती है जिनके पास कुएँ हैं लेकिन शर्त यह है कि वे समुदाय द्वारा निर्दिष्ट फसल पैदा करें।

इलाके में पैदा की जाने वाली फसलों का कैलेंडर


क्रम संख्या

कटबंध का नाम

वर्ष

1.

हल्ला कट्ट

2005-06

2.

मोडला कट्ट

2000-01

3.

हल्ला कट्ट

1996-97

4.

मोडला कट्ट

1990-91

5.

मेडू कट्ट

1985-86

 

यह सारणी प्रदर्शित करती है कि किस प्रकार तुक्कड़ी प्रणाली सख्ती से लागू की गई थी। चूँकि मेडू कट्टू इलाके में 1990 के बाद पानी पर्याप्त नहीं था इसलिये यहाँ यूकिलिप्टस पैदा किया गया और इलाके को कोई पानी नहीं मिला। एक ग्रामीण वेंकटप्पा के अनुसार अगर कानून के तहत माँग की जाती है तो पानी दिया जाएगा। उन मामलों में जहाँ सभी इलाकों के किसान पानी के लिये जोर देते हैं वहाँ नीरूगंती को सभी जलद्वार बन्द करने का हक है। तकरीबन 15 साल पहले एक विवाद के दौरान एक किसान ने पानी की माँग की थी और समुदाय की आमराय बनाई गई और जलद्वारों को बन्द कर दिया गया। तबसे वैसी स्थिति नहीं उत्पन्न हुई। जैसा कि बलरमन्ना कहता है, ``हमारे बुजुर्गों ने तीन चरणों के इस नियम को बनाया था और हम इसका पालन इसलिये कर रहे हैं क्योंकि इससे हमें फायदा होता है।’’

हमारे पुरखों के पास कैसा विवेक था इसके बेहतरीन उदाहरण के रूप में यजमान तुक्कड़ी प्रणाली है। वे इस बात के भी प्रतीक हैं कि उनके सहयोग की भावना समकालीन जीवन के लिये एक सबक साबित हो सकती है।

एएम वीरेश समाज विज्ञान में प्री-स्नातक हैं और वाटर आगमेंटेशन एसोसिएशन के कोलार ऑफ़िस में काम करते हैं।

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Post By: RuralWater
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