जल संरक्षण: क्या करें,क्या न करें (Water Conservation: What to do,What not In Hindi)

जल संरक्षण: क्या करें,क्या न करें 
जल संरक्षण: क्या करें,क्या न करें 

आज समूची दुनिया के जल संसाधन गहरे संकट में हैं। भारत भी जल संकट का सामना कर रहा है। देश के बहुत बड़े भूभाग पर जल संकट की छाया मंडरा रही है। देश के जल स्रोत सिमटते जा रहे हैं। नदियों तथा झीलों में जल की मात्रा कम होती जा रही है। जो जल शेष है, वह भी प्रदूषण की चपेट में है। शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्याग दिया। लेकिन आज जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में अपनाने का समय आ गया है। लेखक भारतीय संदर्भ में जल संसाधन के अनुभवी विशेषज्ञ है और प्रस्तुत लेख में उन्होंने भारत में जल के भौगोलिक वितरण, वर्षा के पैटर्न, पेयजल, तालाब संस्कृति और जल संरक्षण हेतु जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की है।

कृषि तथा दैनिक जरूरतों के लिए भूजल पर हमारी निर्भरता दिनोंदिन बढ़ रही है। लेकिन अफसोस की बात है कि  भूजल का स्तर देश के अधिकांश भागों में तेजी से नीचे जा रहा है। कुएं तथा बावड़ी जैसे पारंपरिक जलस्रोत तेजी से सूखते जा रहे है। गांव देहात में पेयजल के अनिवार्य साधन हैंडपंप समय के साथ जवाब देते जा रहे हैं। अब बोरिंग के लिए बहुत गहराई में जाना पड़ रहा है। नलकूप तथा ट्यूबवेल भी अब ज्यादा गहराई से पानी खींच रहे हैं। देश के गांगेय क्षेत्रों में भूजल का स्तर करीब 40 सेंटीमीटर से 90. सेंटीमीटर प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है ये तथ्य उस भयावह संकट की ओर संकेत कर रहे हैं जब लोगों को पानी के लिए विकट संघर्ष करना पड़ेगा।

जल है तो जीवन है

वैज्ञानिक कहते हैं कि इस सृष्टि की रचना जल से हुई है। पृथ्वी पर जीवन है क्योंकि यहां जल है जल को जीवन का आधार कहते हैं। वास्तव में जल के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है। इसीलिए अक्सर कहा जाता है कि जल ही जीवन है। भारतीय चिंतन परंपरा में जीवन के संघटनात्मक मूल तत्व के रूप में जो पंचतत्व गिनाये जाते हैं, जल उनमें एक प्रमुख तत्व है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा ही है- 'क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच रचित यह अधम सरीरा।।" मानवजाति का इतिहास जल से जुड़ा है। दुनिया की अधिकांश सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ है। धरती पर जीव आदि प्रजाति अमीबा से लेकर इंसान तक की जैव-विकास की यात्रा जल के साथ ही संपन्न हुई है।

जल के साथ-साथ जंगल और जमीन हमारी प्रकृति के अभिन्न अवयव हैं। सदियों से मनुष्य का इनसे गहरा आत्मिक सम्बन्ध रहा है। पहले के समय में मानव समाज का प्रकृति तथा पर्यावरण के साथ दातात्म्य था, समरसता थी। भौतिक विकास तथा आधुनिकता ने इसी सम्बन्ध पर निर्मम प्रहार किया है तथा उसे बिलकुल क्षत-विक्षत कर दिया है। फलस्वरूप जल, जंगल, जमीन, जीवन और जीविका के मध्य के जीवन्त सम्बन्ध टूटकर बिखर रहे हैं। भौतिक विकास की अंधी दौड़, प्रचंड उपभोक्तावाद, तथा बाजारवाद समूचे पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। मनुष्य दिनोंदिन तथाकथित आधुनिकता के मोहक मकड़जाल में उलझता चला जा रहा है। कहां तो सोचा गया था कि भौतिक विकास के चलते मानव समाज को तमाम अभावों तथा असुविधाओं से मुक्ति मिलेगी। लेकिन आधुनिक भौतिक विकास के असंतुलित ढांचे ने प्रकृति के अवयवों के बीच के ताने-बाने को तहस-नहस कर दिया है।

क्या करें

  1. घर के सामने खुली जगह को कच्चा रखें।
  2. घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चा रखें।
  3. पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाये जाये ।
  4. फसलों की सिंचाई क्यारी बनाकर करें।
  5. सिंचाई की नालियों को पक्का करें।
  6. बागवानी की सिंचाई हेतु ड्रिप विधि व फसलों हेतु स्प्रिंकलर विधि अपनायें
  7. बगीचों में पानी सुबह ही दें जिससे वाष्पीकरण से होने वाला नुकसान कम किया जा सके।
  8. जल की कमी वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें बोयें जिसमें कम पानी की आवश्यकता हो
  9. खेतों की मेड़ों को मजबूत व ऊँचा करके खेत का पानी खेत में रिचार्ज होने दें।
  10. छतों पर गिरने वाले पानी को रिचार्ज के लिए प्रयोग करें।
  11. उपलब्ध परम्परागत जल स्रोतों डिसिल्टिंग व मरम्मत समय-समय पर करायें।
  12. सूखे कुओं को रिचार्ज के लिये उपयोग करें।
  13. परती भूमि पर वृक्षारोपण करें।
  14. पानी की बचत घर से समाज तक करें।

क्या न करें

  1.  घर के सामने खुली जगह को पक्का न बनायें
  2. घर के बाहर सड़क के किनारें पक्का न बनाये
  3. पार्को में पानी भरने से रोका जाये 
  4.  बिना क्यारी की फसलों की सिंचाई न करें।
  5.  कच्ची नाली बनाने से बचें
  6.  जहां भूमि ऊपर-नीचे हो वहां पर क्यारी सिंचाई न करें।
  7.  फसलों को दोपहर में पानी डालने से बचें
  8.  अधिक पानी वाली फसलों की बुवाई न करें
  9.  मेड़ की ऊँचाई कम न रखें
  10.  छतों पर गिरने वाले पानी को बर्बाद न करें।
  11.  उपलब्ध परम्परागत जल स्रोतों में सिल्ट जमा न होने दें।
  12.  सूखे कुओं को खरपतवार से न भरें।
  13.  खेत परती न छोड़े ।
  14. पानी बर्बाद न करें।

स्रोत - अटल भूजल योजना 

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Post By: Shivendra
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