परिकल्पना: नदी में गिरने वाले तैलीय पदार्थों का तटीय इलाकों के मछुआरों के जीवन पर अन्य समुदायों के मुकाबले कहीं अधिक असर पड़ता है।कारण: विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों की पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रति उनकी चिंताओं का स्तर भी अलग-अलग होता है। यह उनके जीवन पर पड़ने वाले असर पर निर्भर करता है। ऐसे में शहरी लोग ट्रैफिक जाम से अधिक चिंतित होते हैं। दूसरी ओर किसानों के लिए भूमिगत जल में कमी अधिक चिंता का कारण है। इसी तरह अपने भरण पोषण के लिए जलीय संसाधनों पर निर्भर करने वाले मछुआरा समुदाय के लिए तटीय प्रदूषण चिंता सबब है। कार्यप्रणाली: विभिन्न पेशे और सामाजिक-आर्थिक स्तर के १०० लोगों को नमूने के तौर पर चुनिये। उनसे विभिन्न पर्यावरणीय चिंताओं पर अपनी उनकी राय पूछिए। मसलन (1) मत्स्य संसाधनों की कमी(2) समुद्र में छोड़े गए तैलीय पदार्थ (3) पशुओं के चारे की कमी (4) भूमिगत जल का गिरता स्तर (5) विभिन्न स्थानीय जंगली प्रजातियों का विनाश (6) प्रदूषित नदी जल (7) ट्रैफिक जाम (8) वैश्विक गर्मी आदि। विभिन्न वर्गों के स्थानीय लोगों से प्रारंभिक बातचीत करने पर्यावरणीय मसलो पर उनकी चिताओं की सूची बनाई जा सकती है। अगला कदम: मछुआरा समुदाय के सदस्यों और तटीय इलाकों के होटल मालिकों से नदी के जल में तैलीय पदार्थों के पड़ते असर पर साक्षात्कार लिया जा सकता है।
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