वैश्विक तापन के संभावित परिणाम

वैश्विक तापन के संभावित परिणाम
वैश्विक तापन के संभावित परिणाम

प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं ने धरती के विविध रंगों को बेरंग कर दिया है। प्रदूषण के कारण बदलती आबोहवा जीवन के ताने-बाने को पूरी तरह नष्ट करने को है । प्रदूषण के चलते उत्पन्न अनेक समस्याओं में बदलती जलवायु मुख्य समस्या है। आज बदलती जलवायु से कहीं ग्लेशियर पिघलने लगे हैं तो कहीं नदियां सूखने लगीं हैं जिसके कारण कहीं धरती की प्यास बढ़ रही है तो कहीं फसलें तबाह होने लगीं हैं। इस अध्याय में प्रदूषण और वैश्विक तापन यानी ग्लोबल वार्मिंग के अंतःसंबंधों को समझते हुए ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न हो सकने वाली समस्याओं पर चर्चा की जा रही है ।

बढ़ते प्रदूषण के कारण तापमान में बदलाव का विश्व भर में व्यापक प्रभाव दिखाई दे रहा है । आज बदलती जलवायु के प्रभाव कुछ क्षेत्रों विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र, अफ्रीका और छोटे द्वीपों को अधिक प्रभावित कर रहा है। उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) दुनिया की तुलना में दोगुनी दर से गर्म हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी कुछ वर्षों में ग्रीष्म ऋतु के दौरान उत्तरी ध्रुव की बर्फ पिघल जाएगी । एक अन्य अध्ययन के अनुसार ऐसा छह वर्ष के दौरान भी हो सकता है। पिछले 100 वर्षों में अंटार्कटिका के तापमान में दोगुनी वृद्धि हुई है। इसके कारण अंटार्कटिका के बर्फीले क्षेत्रफल में भी कमी आई है। इस प्रकार वहां की पारिस्थितिकी में होने वाले बदलावों के कारण वहां उपस्थित समस्त जीव भी प्रभावित होते हैं। जलवायु विज्ञानियों के अनुसार यदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के जमाव का सिलसिला जारी रहा तो धरती के तापमान में वृद्धि होती रहेगी जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर और धुव्रीय इलाकों की बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ने से सागर तटीय इलाकों के डूबने का खतरा बढ़ जाएगा और महासागरों का बढ़ता जल स्तर मालदीव जैसे हजारों द्वीपों को डूबा देगा। इसके अलावा समुद्र तटीय इलाकों में समुद्र का खारा पानी घुसने से भूमिगत जल के खारे होने के साथ ही उस स्थान की मिट्टी भी खेती लायक नहीं रहेगी। भारत के समुद्री जल स्तर में वृद्धि का सर्वाधिक खतरा सुंदरवन जैसे नाजुक पारिस्थतिकी तंत्र को पूरी तरह डूबा सकता है। नदियों के उद्गम स्थल से देश के मैदानी इलाकों में सूखे की नौबत आ सकती है।

सिकुड़ते ग्लेशियर

बढ़ते तापमान के कारण विश्व के ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। ग्लेशियरों का तेजी से पीछे सिखकना ग्लोबल वार्मिंग का स्पष्ट संकेत है। यदि तापमान में वृद्धि इसी तरह होती रही तो इस सदी के अंत तक एल्प्स पर्वत श्रृंखला के लगभग 80 प्रतिशत ग्लेशियर पिघल जाएंगे। हमारे लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि हिमालय क्षेत्र के हिमनद विश्व के अन्य क्षेत्रों के हिमनदों से अधिक तेजी से पिघल रहे हैं।
पिछले सौ वर्षों के दौरान भारत के तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी रिकॉर्ड  की गई है। जिसके कारण विश्व में शुद्ध जल के दूसरे सबसे बड़े स्रोत हिमालय के हिमनदों में लगभग 21 प्रतिशत की कमी आई है। एक सर्वे के अनुसार वर्ष 1971 से पहले दौ सौ वर्षों में जहां गंगोत्री हिमनद प्रति वर्ष 10 मीटर की दर से सिकुड़ता हुआ करीब दो किलोमीटर कम हुआ वहीं सन् 1971 से 2001 के मध्य इसकी सिकुड़ने की औसत दर तीस मीटर रही जिससे वर्ष 2001 तक यह हिमनद अपने स्थान से 870 मीटर और पीछे हट गया। यदि यही हाल रहा तो वर्ष 2030 तक शायद इस क्षेत्र के हिमनद खत्म हो जाएंगे जिसके परिणामस्वरूप भारत में हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियां सूख जाएंगी। हमारे ग्रह का तापमान कम करने में सहायक उत्तर ध्रुवीय बर्फ टोप (केप) पूर्वानुमानित मान से भी करीब तिगुनी अधिक तेजी से पिघल रही है। अगर ध्रुवीय बर्फ के पिघलने की दर यही रही तो अगामी 30 से 35 वर्षों में यह क्षेत्र महज एक इतिहास बनकर रह जाएगा। बर्फीले क्षेत्रों और निचले प्रशांत महासागरीय द्वीपों के निवासी उन क्षेत्रों से दूर जाना चाहते हैं, उन्हें डर है कि कहीं वे मौसम के गुस्से का शिकार न हो जाएं।

वर्षा और जलवायु परिवर्तन

वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण वैश्विक वायु पद्धति में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वर्षा का वितरण असमान होगा। भविष्य में मरुस्थलों में ज्यादा वर्षा होगी इसके विपरीत पारंपरिक कृषि वाले क्षेत्रों में कम वर्षा होगी। इस प्रकार के परिवर्तनों से विशाल मानव प्रव्रजन को बढ़ावा मिलेगा जोकि मानव समाज के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक ताने-बाने को प्रभावित करेगा ।

बढ़ता समुद्री जल स्तर

लगभग पिछले सौ सालों में हमारी धरती के औसत तापमान में करीब 0.74 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। धरती के तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियर और धुर्वीय प्रदेशों की बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है जिसके परिणामस्वरूप महासागरों का जल स्तर औसतन 27 सेंटीमीटर ऊपर उठ चुका है। 21वीं सदी के अंत तक धरती के तापमान और समुद्र स्तर में भारी वृद्धि की आशंका जताई जा रही है। यदि भविष्य में भी समुद्रों के जल स्तर में वृद्धि इसी प्रकार जारी रही, तो समुद्र तट से 100 किलोमीटर के दायरे में रहने वाली विश्व की 60 प्रतिशत आबादी के सामने गंभीर समस्या उत्पन्न होगी। ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर के पूरी तरह पिघलने पर समुद्र का जल स्तर काफी ऊंचा उठ जाएगा। बढ़ते समुद्री जल स्तर से प्रशान्त क्षेत्र के कई द्वीप जलमग्न हो जाएंगे। समुद्र के जल स्तर में हो रहे बदलावों को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि प्रशांत महासागर का किरिबाती द्वीप डूबने वाला है।

अम्लीय होते महासागर

कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा के कारण महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित हुए हैं। आज महासागरीय जल में अम्लता की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिसके कारण महासागरों में रहने वाले जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड गैस को सोखने की क्षमता में भी दिनोंदिन कमी हो रही है।

ध्रुवीय क्षेत्रों का बदलता स्वरूप

अगले 60 वर्षों में ध्रुवीय क्षेत्रों का तापमान 12 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वहां कई प्रजातियों के विलुप्त हो जाने का खतरा है, मुख्यतः ध्रुवीय भालू, वालरस आदि का आर्कटिक की बर्फ पिघलने से उसके किनारे के नीचे पैदा होने वाली काई खत्म हो जाएगी। जिस कारण उसे खाने वाली छोटी मछलियां भी खत्म हो जाएंगी और उन छोटी मछलियों पर निर्भर बड़ी मछलियां जैसे व्हेल आदि भी खत्म हो जाएगी जो इन सबसे ज्यादा विध्वंसकारी है आर्कटिक के टुण्ड्रा क्षेत्रों में बर्फ में दफन अरबों टन मिथेन गैस जो इन बर्फ के पिघलने पर बाहर निकल आएगी और हवा को और जहरीला बना देगी। बढ़ते तापमान से पानी में ज्यादा भाप बनेगी, यह भाप या वाष्प भी ग्रीन हाउस गैस ही है। इस कारण तापमान और तेजी से बढ़ेगा।

बढ़ती गर्मी

धरती की तीन प्रतिशत सतह आइसकैप यानी हिमपरत से आच्छादित है और यह पृथ्वी पर आने वाली 80 प्रतिशत सौर ऊर्जा को परावर्तित करती है । पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि के कारण हिमपरत के नहीं रहने से इस क्षेत्र में धरती की सतह को सौर ऊर्जा का 70 प्रतिशत हिस्सा और वहन करना पड़ेगा, जिससे कारण गर्मी और बढ़ेगी ।
लू का बढ़ता प्रकोप

अमेरिका में तूफान, बाढ़ एवं चक्रवातों की तुलना में लू को ज्यादा खतरनाक माना जाता है। वर्ष 2003 में लू की चपेट के कारण यूरोप में केवल 2 सप्ताह के अंदर लगभग 45,000 लोगों की मौतें हो गई थीं । यूरोप के अलावा विश्व के अन्य क्षेत्रों में गर्म हवाओं का प्रकोप बढ़ रहा है। शहरी क्षेत्रों में पेड़ों के कम होने से वाष्पोत्सर्जन का शीतलन प्रभाव खत्म हो जाता है जिससे ताप में वृद्धि हो जाती है। वायु प्रदूषण से यह समस्या और गंभीर हो जाती है। प्रतिवर्ष गर्मियों के दौरान लू चलने से भारत में सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। 

गहराता कोहरा

हवा में बढ़ते प्रदूषण के कारण ठंड के दिनों में कोहरा अधिक बनता है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम संस्थान  (आईआईटीएम) के एक अध्ययन के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पर्यावरण में आए नकारात्मक बदलावों और खासतौर से कोहरे के कारण धूप में कमी आई है। इस शोध से यह भी पता चला है कि कोहरे के कारण दिन के अधिकतम तापमान में मामूली बढ़ोतरी हुई है लेकिन रात का न्यूनतम तापमान पिछले दो दशक में करीब दो गुना हो गया है ।

फैलते रेगिस्तान

जलवायु में आए बदलावों के कारण पृथ्वी के अनेक स्थानों पर मौसम में अनियमिकता आई है। कभी भारी बारिश वाले क्षेत्र आज जल संकट का सामना कर रहे हैं। विश्व के अनेक क्षेत्रों में वर्षा की अनियमिकता और कमी के कारण प्रतिवर्ष करोड़ों हैक्टेयर भूमि बंजर हो रही है। इसके परिणामस्वरूप रेगिस्तानी क्षेत्रों का फैलाव हो रहा है।

पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का एक विशाल सम्मेलन 1972 में स्टाकहोम में हुआ था। तब से लेकर बढ़ते रेगिस्तानीकरण पर चिंता व्यक्त की जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने विश्व के रेगिस्तानों के फैलाव में वृद्धि की है। प्रतिवर्ष 4 करोड़ एकड़ भूमि रेगिस्तान में बदल रही है।

बढ़ता प्रदूषण - स्थापत्य कला के लिए खतरा

विकास की अंधी दौड़ और जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व के स्थापत्य कला के अमूल्य धरोहरों एवं संस्कृतियों के लिए खतरा बनता जा रहा है। एक गैर सरकारी संगठन विश्व धरोहर कोष की ओर से विश्व के संकटग्रस्त 100 धरोहरों की जारी सूची में पहली बार ग्लोबल वार्मिंग को दुनिया के महान ऐतिहासिक स्थलों के लिए खतरनाक बनाया गया है।

असंतुलित होते विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र

प्रदूषण के कारण पारिस्थितिकी तंत्र को काफी नुकसान पहुंचता है और इस कारण से पृथ्वी पर व्यापक उथल-पुथल मच सकती है। बढ़ते प्रदूषण से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग यानी बढ़ती गर्मी के कारण वनों में आग लगने के कारण वहां उपस्थित विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र का प्राकृतिक स्वरूप विकृत हो रहा है। इसी प्रकार तापमान में होती बढ़ोतरी के कारण नमभूमियां खत्म हो रही हैं और इनके साथ ही वहां का पारिस्थितिकी तंत्र भी खत्म हो रहा है। धरती के अलावा प्रदूषण के कारण महासागरीय जल के अम्लीय होने के साथ ही मैंग्रोव वनों एवं प्रवाल भित्ति जैसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों के अस्तित्व को लेकर चिंता बनी हुई है ।

जलवायु परिवर्तन और कृषि पैदावार

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बाढ़, सूखा तथा आंधी-तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि के कारण अनाज उत्पादन में गिरावट दर्ज होगी। स्थानीय खाद्यान्न उत्पादन में कमी भूखमरी और दीर्घकालीक प्रभाव पड़ेंगे। खाद्यान्न और जल की कमी से प्रभावित क्षेत्रों में टकराव पैदा होंगे।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विश्व भर में कृषि पैदावार पर भी पड़ेगा। संयुक्त राज्य अमरीका में फसलों की उत्पादकता में कमी आएगी जबकि दूसरी तरफ उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व देशों, भारत, पश्चिमी आस्ट्रेलिया तथा मैक्सिको में गर्मी तथा नमी के कारण फसलों की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी। वैश्विक तापमान वृद्धि का प्रभाव फसल पद्धति पर भी पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्तर तथा मध्य भारत में ज्वार, बाजरा, मक्का तथा दलदली फसलों के क्षेत्रफल में विस्तार होगा। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में गेहूं तथा धान के क्षेत्रफल में अभूतपूर्व गिरावट आएगी जबकि देश के पूर्वी, दक्षिणी तथा पश्चिमी राज्यों में धान के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी होगी ।
भारत में जलवायु परिवर्तन के फलस्परूप गन्ना, बाजरा, मक्का, रागी तथा ज्वार जैसी फसलों की उपज में वृद्धि होगी जबकि इसके विपरीत मुख्य फसलों जैसे गेहूं, धान तथा जौ की उपज में गिरावट दर्ज होगी। सब्जियों के राजा आलू के उत्पादन में भी गिरावट दर्ज होगी। तापमान में वृद्धि के कारण दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की दर में वृद्धि के कारण अरहर, चना, मटर, मूंग, उड़द, मसूर आदि की उपज में वृद्धि होगी। तिलहनी फसलों जैसे पीली सरसों, भूरी सरसों, सूरजमुखी, तिल, काला तिल, अलसी, बर्रा यानी कुसुम की पैदावार में गिरावट होगी जबकि सोयाबीन तथा मूंगफली की पैदावार में वृद्धि होगी।

एक अनुमान के अनुसार अगर वर्तमान वैश्विक तापमान वृद्धि की दर जारी रही तो भारत में वर्षा सिंचित क्षेत्रों में 12. 5 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन में कमी आएगी। शीत ऋतु में 0.50 सेल्सियस तापमान वृद्धि के कारण पंजाब राज्य में गेहूं की फसल की पैदावार में 10 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।      

फलों की पैदावार पर प्रभाव

भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप आम, केला, पपीता, चीकू, अनानास, शरीफा, अनाज, बेल, खजूर, जामुन, अंगूर, तरबूज तथा खरबूज जैसे फलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी जबकि सेब, आलू बुखारा, नाशपती जैसे फलों की पैदावार में गिरावट आएगी।

मत्स्य पालन

भारत जैसे उष्ण कटिबंधीय देश में जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप देश में जलाशयों में पानी की कमी के कारण मखाने तथा सिंघाड़े की खेती पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसके अतिरिक्त मत्स्यपालन तथा उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जलीय जीवों पर भी पड़ेगा। मीठे जल की मछलियों का प्रव्रजन ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर होगा जबकि शीतल जल मछलियों की आवास नष्ट हो जाएगा। जिसके कारण बहुत सी मछलियों की प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।

खाद्यान्न संकट

प्रदूषण का खेती-बाड़ी पर भी विपरीत असर पड़ेगा। बढ़ते प्रदूषण के कारण मिट्टी की पोषक क्षमता कम हो रही है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण भारत समेत दुनिया भर के ऊंचे पहाड़ों पर मौजूद हिमनद तेजी से पिघलेंगे। जिससे नदी मुहानों में जल उपलब्धता गंभीर रूप से बाधित होगी और जिसके परिणामस्वरूप पैदावार में काफी कमी आएगी। बढ़ते तापमान और मिट्टी में पानी की कमी से जंगल खतरे में पड़ सकते हैं। कम उपजाऊ भूमि पूरी तरह से बंजर हो जाएगी। इसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न संकट का खतरा बढ़ सकता है।
खाद्यान्न संकट   जलवायु परिवर्तन के द्वारा खाद्यान्न संकट की व्यापकता को देखते हुए विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समस्या के कारण भारत के अनाज उत्पादन में कम से कम 18 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण मौसम में आई अनियमितता से भारत में चावल का उत्पादन 15 से 43 प्रतिशत तक कम होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अनुमान के अनुसार जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के कारण सन् 2050 तक पूरी दुनिया में खाद्यान्न संकट की स्थिति गंभीर रूप धारण कर सकती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी के बढ़ने से जीवांश पदार्थों के तेजी से विघटन के कारण पोषक चक्र की दर में बढ़ोतरी होगी जिसके कारण मृदा की उपजाऊ क्षमता अव्यवस्थित हो जाएगी जो कृषि पैदावार को प्रभावित करेगी । वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि के कारण पौधों में कार्बन स्थिरीकरण में बढ़ोतरी होगी। परिणामस्वरूप मृदा से पोषक तत्वों के अवशोषण की दर कई गुना बढ़ जाएगी जिसके कारण मृदा की उर्वरा शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। तापवृद्धि के कारण वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन की दर में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। परिणामस्वरूप मृदा जल के साथ ही जलाशयों में जल की कमी होगी जिससे फसलों को पर्याप्त जल उपलब्ध न होने के कारण उनकी पैदावार प्रभावित होगी।

बदल रहा है मौसम का मिजाज

जलवायु परिवर्तन के कारण कही बाढ़, कहीं सूखा, तो कहीं समुद्री तूफान जैसी स्थितियां पैदा होंगी। समुद्र तटीय क्षेत्रों में तूफानों का कहर बढ़ने की संभावना है। वैज्ञानिकों के अनुसार पांच साल से अचानक मौसम में हो रहे बदलावों से अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। कभी अधिक ठंड, तो कभी अधिक गर्मी और फिर बरसात का कम या अधिक होना भी खतरनाक होता जा रहा है। वर्ष 2008 में मुंबई में मानसून समय से पहले आया वहीं मार्च में केरल में हुई असामान्य भारी वर्षा से मौसम विशेषज्ञ हैरान हैं। वैज्ञानिकों ने इस घटना को जलवायु परिवर्तन का लक्षण बताया है। मौसम विभाग के अनुसार राज्य में सामान्य तौर पर मार्च में 2 सेंटीमीटर बारिश होती है लेकिन इस साल मार्च में 17 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हुई है जो पिछले 25 वर्षों में एक रिकॉर्ड  है । इस असमान्य बारिश के लिए जलवायु में होने वाले बदलावों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। मौसम वैज्ञानिकों के एक वर्ग के अनुसार ऐसा अरब सागर में हवा के कम दबाव के बनने से हुआ था ।

वर्ष 2008 में कोसी नदी में भारी बाढ़ के कारण बिहार के लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। वैसे तो बिहार में बाढ़ का इतिहास पुराना है लेकिन इस वर्ष बाढ़ ने बहुत बड़े पैमाने पर तबाही मचायी है। बिहार के अलावा उड़ीसा एवं गुजरात में भी इस वर्ष बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ है। मौसम के इस तरह के बदलाव का असर दुनिया भर में देखा जा रहा है।

ढीला पड़ता सामाजिक ताना-बाना

भविष्य में यदि तापमान में परिवर्तन अधिक तेजी से होने लगा तो इसका परिणाम बहुत भयानक हो सकता है। तापमान में केवल एक-दो डिग्री सेल्सियस के अंतर के कारण ही धरती के अनेक भागों में कृषि में व्यापक परिवर्तन हो सकता है। चराई के लिए उपलब्ध क्षेत्रों में परिवर्तन होने के साथ ही पानी की उपलब्धता पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और इन सबके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होगा ।

जलवायु परिवर्तन जनित सूखे और बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर पलायन होने से सामाजिक संतुलन बिगड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप अस्थिरता और हिंसा से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय असुरक्षा पैदा होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न खाद्यान्न संकट और पानी की कमी से विश्वव्यापी अशांति फैलने वाली है उसकी चपेट में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तथा चीन भी आएंगे। वर्ष 2007 में "जलवायु परिवर्तन - खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा" नामक प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन कई समुदायों के आपसी ताल-मेल को प्रभावित करेगा ।

विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के निम्नांकित प्रभाव हो सकते हैं :

एशिया

  • 2050 तक मध्य, दक्षिणी, पश्चिमी और दक्षिण - पूर्वी एशिया में स्वच्छ पेयजल की कमी हो जाएगी।
  • तटीय इलाकों में समुद्र का स्तर अधिक बढ़ने से बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा ।
  • बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते जलवायु परिवर्तन पर्यावरण के लिए खतरा बन जाएगा ।
  • दक्षिणी एशिया, पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में बाढ़ और सूखे के बाद विभिन्न बीमारियों से मरने वालों की संख्या बढ़ेगी।
  • अगामी 30 सालों में भारत में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 3.4 गुना और चीन में 5.8 गुना अधिक बढ़ जाने की संभावना है।

आस्ट्रेलिया

  • 2020 तक इस क्षेत्र की जैव विविधता बहुत सीमित हो जाएगी ।
  • 2030 तक दक्षिणी और पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड के पूर्वी इलाकों में खेती को नुकसान होगा।
  • तटीय इलाकों में अधिक जनसंख्या के निवास करने के कारण सन् 2050 तक वहां खतरा बहुत बढ़ जाएगा।
  • इन क्षेत्रों में समुद्री बाढ़ और तूफान का खतरा बना रहेगा।

यूरोप

  • यूरोप में 2080 तक पहाड़ी क्षेत्रों में हिमनद पिघल जाएंगे। बर्फ कम होगी व कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
  • दक्षिण यूरोप में जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर पड़ेगा। यहां गर्मी अधिक बढ़ जाएगी।
  • लगातार पिघल रहे हिमनदों से इस क्षेत्र में पानी की समस्या उत्पत्र हो सकती है।

उत्तरी अमेरिका

  • गर्मी के कारण लगातार बर्फ पिघलने के परिणामस्वरूप बाढ़ का खतरा बना रहेगा ।
  • गर्म हवाओं की समस्या और अधिक विकराल रूप धारण करेगी। इस वजह से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी बढ़ेंगी।
  • जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक गरीब व्यक्ति और बुजुर्ग प्रभावित होंगे।
  • भुखमरी और बीमारियों में वृद्धि होगी ।
  • सूखा, बाढ़ एवं लू सभी जीवों पर कहर बरपाएंगे।

तापमान बढ़ने के अनुसार होने वाले संभावित परिवर्तन

1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से:-  

  •  हिमनदों के पिघलने से 5 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं।
  • आर्कटिक में बसने वाले समुद्री जीवों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • मानसून में नाटकीय ढंग से बदलाव आ सकता है।

2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से:-

  • विभिन्न द्वीपों में रह रहे 10 लाख लोगों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है।

3 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से :-

  • पूरे विश्व में 1 से 4 अरब लोगों को पेयजल की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
  • हर साल 10 से 30 लाख लोगों के कुपोषण से मरने की संभावना है।
  • 15 से 55 करोड़ लोगों को भूखमरी के संकट का सामना करना पड़ सकता है।

4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से:-

  • अफ्रीका में खाद्यान्न उत्पादन में 15 से 35 प्रतिशत की कमी हो सकती है।
  • अफ्रीका में 8 करोड़ लोग मलेरिया और अन्य बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से :-

  • हिमालय के हिमनदों का अस्तित्व खत्म हो सकता है।
  • चीन की एक चौथाई आबादी प्रभावित हो सकती है।
  • हिमनदों के पिघलने का प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा ।

जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विश्व के समस्त क्षेत्रों में दिखाई देगा। भारत भी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से बच नहीं पाएगा। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण भारत को भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस शताब्दी के अंत तक भारत में औसत तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने उपग्रहों से प्राप्त आकड़ों के आधार पर बताया है कि भारतीय समुद्र 2.5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से ऊपर उठ रहा है। एक अध्ययन से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि भारतीय सीमा से सटे समुद्रों के जल स्तर के ऊपर उठने का यह सिलसिला जारी रहा तो सन् 2050 तक समुद्री जल स्तर 15 से 36 सेंटीमीटर ऊपर उठ सकता है। समुद्री जल स्तर में 50 सेंटीमीटर की वृद्धि होने पर अनेक इलाके डूब जाएंगे। भारत के सुंदरवन डेल्टा के करीब एक दर्जन द्वीपों पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है जिससे सात करोड़ से अधिक आबादी प्रभावित होगी।

स्रोत:- प्रदूषण और बदलती आबोहवाः पृथ्वी पर मंडराता संकट, श्री जे.एस. कम्योत्रा, सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा प्रकाशित मुद्रण पर्यवेक्षण और डिजाइन : श्रीमती अनामिका सागर एवं सतीश कुमार

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Post By: Shivendra
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