वृहद् मार्ग परियोजनाओं से पर्यावरण क्षति

मार्ग निर्माण अथवा विस्तार वृहद् परियोजनाओं को तैयार करने एवं उनके क्रियान्वयन काल में, क्षेत्र के पर्यावरण एवं प्राकृतिक संपदा पर होने वाले विपरीत प्रभाव तथा उसके बचाव एवं समाधान पर अब योजनाकारों तथा निर्माण एजेंसियों का ध्यान गया है। विशेष रूप से विश्व बैंक सहायता प्राप्त एवं अन्य बाह्य वित्त-पोषित परियोजनाओं में इसके लिए कड़े मानदंड एवं विस्तृत विशिष्टियां निर्धारित की गई हैं, जिनका अनुपालन योजना की स्वीकृति एवं क्रियान्वयन के समय अनिवार्य है।

मार्ग निर्माण के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव


एक सामान्य मार्ग निर्माण अथवा मार्ग विस्तार (चौड़ीकरण आदि) की परियोजना से स्थानीय पर्यावरण पर निम्न प्रभाव पड़ने स्वाभाविक है-

1. वृक्षों की कटान- यदि नया मार्ग निर्माण कार्य है तो अधिगृहीत भूमि पर स्थित पेड़ काटने होंगे। वर्तमान मार्ग के विस्तार अथवा चौड़ीकरण के मामले में सड़क के किनारे लगे वर्तमान वृक्षों में से कम-से-कम एक ओर के वृक्षों की पूरी पंक्ति ही काटनी आवश्यक हो जाती है। हरे पेड़ों की कटान अपने में पर्यावरण की क्षति है।

2. उपजाऊ मिट्टी की क्षति- जितनी भूमि परियोजना हेतु अधिगृहीत की जाती है, उसमें से कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल की उत्पादकता की क्षति होती है।

3. वायु प्रदूषण- नए अथवा विस्तारित मार्ग पर बढ़े हुए एवं तीव्रगामी यातायात के फलस्वरूप तथा निर्माण की गतिविधियों के कारण भी कई स्थानों पर वायु प्रदूषण का स्तर मानक से अधिक होने की संभावना रहती है।

4. ध्वनि प्रदूषण- बढ़े हुए यातायात के कारण एवं निर्माणकाल में संयंत्रों के संचालन से शोर का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक हो सकता है।

5. पानी का निकास, रुकना अथवा जल भराव- मार्ग निर्माण में उस क्षेत्र का स्वाभाविक जल निकास प्रभावित हो सकता है अथवा बाढ़ एवं जल भराव की समस्या हो सकती है।

6. सामूहिक उपयोग के जल-स्रोत एवं अन्य सांस्कृतिक व धार्मिक संपत्तियों पर प्रभाव- मार्ग निर्माण अथवा विस्तार हेतु स्थाई रूप से अधिगृहीत भूमि में पड़ने वाले कुएं, हैंडपंप अथवा मंदिर, स्कूल धर्मशाला व मजार आदि हटाने से पूर्व उनके स्थान पर आपसी सहमति से किसी अन्य स्थल पर वैकल्पिक व्यवस्था करना आवश्यक हो जाता है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु उपाय


पर्यावरण पर पड़ने वाले उपरोक्त विपरीत प्रभावों को कम करने अथवा उनकी प्रतिपूर्ति के लिए परियोजना के विभिन्न चरणों में विभिन्न उपाय एवं कार्यवाही की जाती है। संक्षिप्त विवरण निम्नवत हैं-

1. निर्माण से पूर्व- परियोजना पर कार्य प्रारंभ करने से पूर्व कुछ चयनित वृक्षों को जड़ सहित उखाड़कर विशेष प्रक्रिया द्वारा नए स्थानों पर लगाना, अधिग्रहीत भूमि के काटे जाने वाले वृक्षों के बदले में उचित संख्या में नए पेड़ लगाए जाने आदि की कार्यवाही वन विभाग के माध्यम से की जाती है। मार्ग में पड़ने वाले सार्वजनिक हैंडपंप अथवा कुओं के स्थान पर अन्य स्थल पर हैंडपंप लगाने की व्यवस्था एवं मंदिर, स्कूल, मजार आदि को भी नए चयनित स्थानों पर स्थापित करने का कार्य भी पहले ही कर लिया जाता है।

2. निर्माण अवधि में- इस अवधि में ही पर्यावरण संरक्षण का सर्वाधिक महत्व है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि निर्माण प्रक्रिया के कारण पर्यावरण (वायु, जल, भूमि आदि) पर निर्धारित सीमा से अधिक हानिकारक प्रभाव न पड़े। पर्यावरण सुधार की दृष्टि से कुछ ऐसी सार्वजनिक उपयोग की सांस्कृतिक एवं सामाजिक संपत्तियों (यथा-तालाब, मंदिर, पिकनिक स्थल आदि) का जो सड़क के निकट ही स्थित हों, उच्चीकरण एवं सुधार भी योजनांतर्गत किया जाता है। परियोजना के प्रावधान के अनुसार, जिस क्षेत्र से सड़क निर्माण हेतु मिट्टी ली जाती है, उसको तदुपरांत पुनः सदुपयोग हेतु (यथा धान की खेती अथवा जल संचय हेतु या मछली पालन हेतु तालाब के रूप में) सुयोग्य बनाया जाता है। इसी अवधि में निर्माण गतिविधियों के कारण संभावित पर्यावरण को प्रभावित करने वाले मुद्दों का एक संतुलित मूल्यांकन भी लगातार आवश्यक होता है। इस श्रेणी के अंतर्गत, सामग्री ले जाने वाले भारी वाहनों एवं संयंत्रों के परिचालन के फलस्वरूप धूल का प्रभाव, तेल व ईंधन के रिसाव अथवा उसके छलकने से प्रदूषण, निर्माण के बड़े संयंत्र तथा क्रशर, हॉट-मिक्स प्लांट आदि से निकलने वाले धुएं से प्रदूषण तथा मजदूर बस्तियों से उत्पन्न अपशिष्ट के कारण हुआ प्रदूषण सम्मिलित है।

इन सभी कुप्रभावों को नियंत्रित करने हेतु नियमित पानी का छिड़काव, मरम्मत वर्कशॉप आदि शोर के स्थानों के चारों ओर अस्थायी दीवार का प्रावधान, बड़े संयंत्रों से धुआं-शोधन यंत्र का प्रावधान तथा मजदूर बस्तियों की उचित सफाई-व्यवस्था एवं अपशिष्ट के निस्तारण की व्यवस्था की जाती है। उपरोक्त सभी उपायों को निरंतर, साप्ताहिक एवं मासिक समीक्षा एवं मूल्यांकन सभी स्तर पर किया जाता है।

3. परियोजना की उपयोग अवधि में- परियोजना को यातायात हेतु खोलने के उपरांत इस बात का सर्वेक्षण एवं मूल्यांकन आवश्यक होता है कि पर्यावरण संरक्षण के जो उपाय योजना की परिकल्पना एवं निर्माण अवधि में किए गए उनकी वास्तविक उपलब्धि क्या रही।

इसके अंतर्गत विभिन्न पूर्व चिन्हित स्थानों पर वायु, जल एवं ध्वनि प्रदूषण के स्तर का आंकलन एवं यातायात सुरक्षा हेतु किए गए प्रावधानों की उपयोगिता का मूल्यांकन एवं समीक्षा आदि सम्मिलित है।

पर्यावरण सुरक्षा हेतु दायित्व


पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के उपरोक्त सभी कार्यकलापों हेतु मुख्यतया चार घटक उत्तरदायी होते हैं-

1. परियोजना का राजकीय विभाग अथवा स्वामित्व अधिकार प्राप्त एजेंसी- इसका यह उत्तरदायित्व होता है कि योजना बनाते समय उसमें यातायात एवं पर्यावरण सुरक्षा के विभिन्न उपायों का समावेश किया जाए। पर्यावरण संरक्षण के मानकों का निर्धारण भी इसी का उत्तरदायित्व है। योजना निर्माण के अनुबंध में इन सभी मानकों एवं प्रक्रियाओं का प्रावधान भी इसी स्तर पर आवश्यक है।

2. परियोजना की क्रियान्वयन इकाई (पी.आई.यू.)- यह उपरोक्त विभाग अथवा स्वामित्व अधिकार प्राप्त एजेंसी का ही अंग है। इसका यह दायित्व होता है कि पर्यावरण संरक्षण आदि के विभिन्न प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करें।

3. परियोजना की निर्माण एजेंसी (ठेकेदार)- परियोजना में परिभाषित एवं अनुबंध में सम्मिलित पर्यावरण सुरक्षा के प्रावधानों का निर्माण अवधि में स्थल पर अनुपालन इसका दायित्व है। इसके अतिरिक्त निर्माणकाल में प्रदूषण स्तरों का समयानुसार लगातार मानकों के अनुसार मापन भी इसी के दायित्व में सम्मिलित है। इस हेतु स्थल पर एक पर्यावरण अभियंता/विशेषज्ञ एजेंसी की नियुक्ति अनिवार्य होती है।

4. परियोजना की पर्यवेक्षण सलाहकार एजेंसी (सुपरविजन कंसल्टेंट)- निर्माण कार्य की गुणवत्ता के साथ-साथ, पर्यावरण एवं यातायात सुरक्षा के सभी प्रावधानों का ठेकेदार द्वारा समुचित एवं समयानुसार अनुपालन सुनिश्चित करना इसका उत्तरदायित्व है। पर्यावरण प्रदूषण-स्तर की ठेकेदार द्वारा की गई जांच एवं मापन को सत्यापन करके समय-समय पर क्रियान्वयन इकाई को उपलब्ध कराना भी इसी के दायित्वों में आता है। इस कार्य हेतु इस टीम में भी एक पर्यावरण अभिंयता/विशेषज्ञ की नियुक्ति का प्रावधान है।

इस प्रकार यह विदित होता है कि विश्वबैंक अथवा अन्य बाह्य वित्त पोषित, वृहद मार्ग परियोजनाओं में, योजनाकाल से लेकर निर्माण एवं उपयोग काल तक, पर्यावरण संरक्षण एवं यातायात सुरक्षा के विभिन्न उपायों एवं प्रावधानों का समावेश करके, पर्यावरण को होने वाली क्षति को बहुत कुछ नियंत्रित किया जा रहा है तथा उसकी क्षति पूर्ति का भी प्रयास किया जा रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि मार्ग निर्माण की अन्य राज्य स्तरीय योजनाओं में भी साधनों की सीमा के अंतर्गत ही, पर्यावरण संरक्षण के उपायों का प्रावधान किया जाए, जिससे प्रदूषण एवं पर्यावरण के निरंतर होने वाले ह्रास के भयावह परिणामों से समय रहते बचा जा सके।

नोट : यह आलेख इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) वाराणसी, लोकल सेंटर द्वारा आयोजित विश्वेश्वरैया दिवस, 2004 के अवसर पर विषय प्रवर्तन के रूप में पढ़ा व सराहा गया था।

पूर्व संयुक्त प्रबंध निदेशक, उ.प्र. राज्य सेतु निगम लि. संप्रति : विश्व बैंक पोषित मार्ग योजना में सलाहकार

Path Alias

/articles/varhada-maaraga-paraiyaojanaaon-sae-parayaavarana-kasatai

Post By: admin
×