वर्षाजल संचयन (Rainwater Harvesting)
वर्षाजल संचयन (Rainwater Harvesting, RWH) की प्रक्रिया के तहत वैज्ञानिक तरीके अपनाकर वर्षाजल को भविष्य के इस्तेमाल के लिये संचयित किया जाता है। पानी के संग्रहण का यह तरीका काफी कम खर्चीला होता है। इसे अपनाने के लिये किसी विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती है। घरों की छतों पर वर्षाजल का संग्रह, इस पद्धति का सबसे सामान्य तरीका है।
इस पद्धति का इस्तेमाल गाँवों में भी सीमित स्तर पर घरेलू कार्य के लिये किया जा सकता है। वर्षाजल की गुणवत्ता अन्य सभी उपलब्ध जलस्रोतों से अच्छी होती है अतः इस प्रक्रिया द्वारा संचयित जल का इस्तेमाल खाना बनाने अथवा पीने के लिये किया जा सकता है। गाँव के लोगों को इस पद्धति से जुड़े यांत्रिक कार्यों के लिये ट्रेंड कर इस पर आने वाले खर्च को और भी कम किया जा सकता है।
छतों पर वर्षाजल का संचयन (Roof top rainwater harvesting for drinking and cooking purposes)
इस जल का इस्तेमाल घरेलू कार्यों के साथ ही खाना बनाने में भी किया जा सकता है। जल के संचयन के लिये अंडर ग्राउंड वाटर टैंक का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन संचयित जल को स्वच्छ रखने के लिये कुछ सावधानियाँ बरतने की जरूरत होती है।
वर्षाजल का संचयन क्यों जरूरी है? (why to do rainwater harvesting?)
क्षेत्र विशेष में इस्तेमाल किये जाने वाले पानी में यदि रासायनिक तत्वों की मिलावट पाई जाती है तो वैसी स्थिति वर्षाजल का इस्तेमाल सबसे सुरक्षित होता है। रासायनिक तत्वों वाले जल के इस्तेमाल का बुरा प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
ऐसे जल के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियाँ-
1.स्केलेटल फ्लोरोसिस (Skeletal Fluorosis) और बोड लेग्स (Bowed Legs)
2. डेंटल फ्लोरोसिस (Dental Fluorosis)
3. ज्वाइंट पेन (Joint Pain)
4. आर्सिनेकोसिस हैंड्सविद लेशन्स (Arsenicosis Handswith Lesions)
1. स्केलेटल फ्लोरोसिस (skeletal fluorosis) - इसमें लोगों के पैरों की हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती हैं जिससे उन्हें चलने में काफी परेशानी और दर्द का सामना करना पड़ता है।
2. डेंटल फ्लोरोसिस (dental fluorosis) - इससे प्रभावित व्यक्ति के दाँत पीले पड़ जाते हैं और मसूढ़ों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
3. ज्वाइंट पेन (Joint pains) - इससे प्रभावित व्यक्ति के जोड़ों में काफी दर्द रहता है।
4. आर्सेनिकोसिस हैंड्सविद लेशन्स (Arsenicosis Hands with lesions)- इससे प्रभावित व्यक्ति की हथेलियों पर फफोल निकल आते हैं।
पीने वाले भूजल में यदि फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा हो तो इसके लगातार सेवन से फ्लोरोसिस और आर्सेनिकोसिस की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।पीने के लिये वर्षाजल संचयन के मुख्य तत्व (Components of rainwater harvesting for drinking) -
छतों से वर्षाजल संचयन के लिये पीवीसी पाइप से घर की भूमिगत सतह पर बने टैंक को जोड़ देना चाहिए। पाइप द्वारा पानी, छोटे पत्थरों से बने फिल्टर को क्रॉस करते हुए नेल्टन मेस की सहायता भूमिगत टैंक में चला जाता है। इसे इस्तेमाल के लिये किसी भी पम्प या हैण्डपम्प की सहायता से खींचा जा सकता है।
पानी के स्टोरेज के लिये टैंक साइज (Storage tank size recommendation)
टैंक का साइज पानी की जरूरत के अनुसार बढ़ाया या घटाया जा सकता है। जैसा कि चित्र के माध्यम से समझने का प्रयास किया गया है।
नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम के गाइडलाइन के अनुसार प्रति व्यक्ति रोज 8 लीटर पानी की जरूरत होती है। इसमें से 3 लीटर पीने के काम में और 5 लीटर खाना बनाने के काम में होता है।
नोट : कम स्टोरेज वाले टैंकों का इस्तेमाल 500 मिलीमीटर से कम वर्षा वाले इलाकों में किया जाना चाहिए। वहीं जिन क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा 700 मिली लीटर या उससे अधिक हो वहाँ बड़े टैंकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
टैंक बनाने के लिये सामान का ब्यौरा (Quantity of materials required)
नीचे दिये गए तस्वीरों में 8 हजार लीटर की क्षमता वाले भूमिगत टैंक बनाने के लिये जरूरी सामान एवं पाइप फिटिंग का ब्योरा दिया गया है। 8 हजार लीटर वाले टैंक उन घरों में बनाए जा सकते हैं जिसका घेरा (डाइमेंसन) 30 फुट X 20 फुट हो।
सावधानियाँ
1. भूमिगत टैंक के पानी को धूप और हवा के सम्पर्क में नहीं आना चाहिए।
2. घरों की छतों को हमेशा साफ रखना जरूरी होता है। इस पर किसी प्रकार के खरपतवार व अन्य गन्दी चीजें पड़ी नहीं रहनी चाहिए।
3. भूजल टैंक को चूना पत्थर और ब्रिक पाउडर से पेंट कर देना चाहिए। ये दोनों ही पानी की क्वालिटी को बेहतर बनाने में मददगार साबित होते हैं।
पानी को संक्रमण से बचाने के तरीके (Methods to disinfect water)
1. सोलर डिसइन्फेक्शन (SODIS)
टैंक से निकाले गए पानी से भरे एक पेट बॉटल को सतह पर सुलाकर सूर्य की रोशनी में पूरे छह घंटे तक रखें। सूर्य की रोशनी से पानी कीटाणु मुक्त हो जाता है।
2. क्लोरिनेशन (Chlorination)
पानी से भरी एक बाल्टी में एक बड़ा चम्मच ब्लीचिंग पाउडर मिला दें। बाल्टी के पानी को जल से भरे भूमिगत टैंक में डाल दें और उसे 24 घंटे के लिये छोड़ दें। 24 घंटे बीत जाने के बाद पानी पीने योग्य हो जाएगा।
एहतियात - बिना खौलाए पीने के लिये पानी का इस्तेमाल कभी नहीं करें।
पानी की स्वच्छता को जाँचने का तरीका (to check water quality)
संचयित वर्षाजल को प्रयोग के लिये खासतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक बोतल में भर लें। पानी को उसमें दिये गए निशान तक ही भरें और उसे सूर्य की रोशनी से अलग 24 से 48 घंटे के लिये रख दें। इतने घंटों में यदि पानी का रंग पीला या भूरा हो जाता है तो समझना चाहिए कि पानी स्वच्छ और बैक्टीरिया फ्री है। वहीं यदि पानी का रंग काला हो जाता है तो समझना चाहिए कि वह पीने योग्य नहीं है और उसमें बैक्टीरिया विद्यमान है।
जल संचय यूनिट को स्वच्छ रखने के तरीके (Maintenance of rainwater harvesting system)
1. सफाई और पानी में क्लोरीन डालते वक्त ही टैंक का ढक्कन खुला रखें।
2. यूनिट में लगे फिल्टर को हर तीन से चार महीनों के अन्तराल पर साफ करें।
3. साल में एक बार अथवा जरूरत के अनुसार टैंक की सफाई अवश्य करें।
4. वर्षा होने के बाद रेन सेपरेटर का कैप खोल दें। जब पानी पूरी तरह से बह जाये तो उसे बन्द कर दें।
नोट : ओवर फ्लो पाइप के कैप को भूमिगत टैंक भर जाने पर ही खोलें।
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