फोर्स नाम के एक गैर सरकारी संगठन की अध्यक्षा हैं ज्योति शर्मा। दिल्ली आधारित उनका संगठन जल संरक्षण के लिए काम करता है। उनका मानना है कि शहरी पानी को बचाने के लिए तीन सूत्री कार्यक्रम पर ध्यान देना होगा। पहला, शहरों के तालाबों को पुनः जीवनदान देना होगा; दूसरा, शहर के साफ पानी के नालों पर चेकडैम बनाना; तीसरा, सभी घरों में वर्षाजल संचयन की व्यवस्था करना।
सूत्र वाक्य लिखने और उसे साकार करने के बीच का अंतर तय करना शायद सरकारी संस्थाओं की पहुंच से बाहर है। शायद यही कारण है कि पानी की समस्या साल दर साल बढ़ती ही चली जा रही है। सच तो यह है कि देश का कोई भी ऐसा शहर नहीं है जहां उसकी जरूरत से अधिक मात्रा में बारिश न होती हो। दिल्ली में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 65 लीटर (एलपीसीडी), मुंबई 173 एलपीसीडी, कोलकाता 180 एलपीसीडी, चेन्नई 325 एलपीसीडी, बेंगलूर 241 एलपीसीडी। सभी जगह होने वाली औसत वर्षा सर्वमान्य औसत 135 एलपीसीडी (सीपीईईएचओ के दिशानिर्देश) से ज्यादा है। यदि इसका प्रयोग सही तरीके से किया जाए तो पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अधिकांश लोगों को यह विश्वास नहीं होता है कि वर्षाजल से ही उनकी समस्या दूर हो सकती है। उन्हें लगता है कि पानी तो बहुत कम बरसता है। मुझे आशा है कि इन आंकड़ों से कम से कम यह गलतफहमी तो दूर हो जाएगी।
आज हमें जरूरत है कि हम पूर्ण वर्षा जल संचय करें। हर शहर ऐसा बनाना पड़ेगा जिससे वहां होने वाली बारिश की एक बूंद भी बेकार न जाने पाए। यानी वर्षा की हर एक बूंद, प्रयोग के बाद ही नदी में बह कर जाए। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सभी शहरों को तीन सूत्री कार्यक्रम अपनाना पड़ेगा।
पहला सूत्र शहरों के तालाबों को पुन: जीवनदान देना चाहिए। प्रकृति में तालाब की बहुत महत्ता है। वह एक क्षेत्र में बरसने वाले पानी को वहीं समेट कर रखता है। तालाब का तल, उसी पानी को धीरे-धीरे जमीन में रिसने देता है। इससे उस क्षेत्र का भूजल बढ़ता है। प्रकृति की यह समझदारी हम जमीन की हवस में भूल चुके हैं। आज जरूरत है कि शहरी अधिकारी पुन: इसे समझें। दिल्ली जैसे महानगर में आज भी 900 तालाब हैं। उन्हें सरकार साफ करे, गहरा करे और इंतजाम करे कि आसपास के क्षेत्र में बहता वर्षा जल उस तालाब में आ सके।
दूसरा सूत्र शहर के नाले साफ कर उन पर चेकडैम बनाएं जाएं। उससे पहले सरकार को इंतजाम करना पड़ेगा कि बारिश के नालों में सीवर या सेप्टिक टैंक का पानी न जाए। नालों में चेकडैम बनाने से बहते पानी को धरती में रिसने का समय मिलेगा जिससे भूजल का स्तर बढ़ेगा। नालों और तालाबों को साफ रखने में हम सबको भी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी। उनमें कचरा न फेंके, अपने बाथरूम का पानी केवल सीवर में ही डालें और इनके आसपास पेड़-पौधे लगवाएं।
तीसरा सूत्र वर्षाजल संचयन, हर घर, हर मुहल्ले को अपने यहां कम से कम 70 प्रतिशत बहते हुए वर्षा जल का संचय करना चाहिए। आप इस पानी को सीधा भूमिगत टैंक में जमा कर सकते हैं। इस पानी को आप बाग में, घर एवं कपड़ों की सफाई में इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि टैंक बनाने की जगह न हो तो वही पानी अपने घर के किसी सूखे ट्यूबवेल में या नए बोरवेल में डाल सकते हैं। इससे आपके क्षेत्र में भूजल बढ़ेगा और ट्यूबवेल में पानी की मात्रा बढ़ेगी। पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। आइए वर्षा जल संचय करें, हम अपना और समाज का उद्धार करें।
ज्योति शर्मा (अध्यक्ष, फोर्स-गैर सरकारी संगठन)
सूत्र वाक्य लिखने और उसे साकार करने के बीच का अंतर तय करना शायद सरकारी संस्थाओं की पहुंच से बाहर है। शायद यही कारण है कि पानी की समस्या साल दर साल बढ़ती ही चली जा रही है। सच तो यह है कि देश का कोई भी ऐसा शहर नहीं है जहां उसकी जरूरत से अधिक मात्रा में बारिश न होती हो। दिल्ली में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 65 लीटर (एलपीसीडी), मुंबई 173 एलपीसीडी, कोलकाता 180 एलपीसीडी, चेन्नई 325 एलपीसीडी, बेंगलूर 241 एलपीसीडी। सभी जगह होने वाली औसत वर्षा सर्वमान्य औसत 135 एलपीसीडी (सीपीईईएचओ के दिशानिर्देश) से ज्यादा है। यदि इसका प्रयोग सही तरीके से किया जाए तो पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है। अधिकांश लोगों को यह विश्वास नहीं होता है कि वर्षाजल से ही उनकी समस्या दूर हो सकती है। उन्हें लगता है कि पानी तो बहुत कम बरसता है। मुझे आशा है कि इन आंकड़ों से कम से कम यह गलतफहमी तो दूर हो जाएगी।
आज हमें जरूरत है कि हम पूर्ण वर्षा जल संचय करें। हर शहर ऐसा बनाना पड़ेगा जिससे वहां होने वाली बारिश की एक बूंद भी बेकार न जाने पाए। यानी वर्षा की हर एक बूंद, प्रयोग के बाद ही नदी में बह कर जाए। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सभी शहरों को तीन सूत्री कार्यक्रम अपनाना पड़ेगा।
पहला सूत्र शहरों के तालाबों को पुन: जीवनदान देना चाहिए। प्रकृति में तालाब की बहुत महत्ता है। वह एक क्षेत्र में बरसने वाले पानी को वहीं समेट कर रखता है। तालाब का तल, उसी पानी को धीरे-धीरे जमीन में रिसने देता है। इससे उस क्षेत्र का भूजल बढ़ता है। प्रकृति की यह समझदारी हम जमीन की हवस में भूल चुके हैं। आज जरूरत है कि शहरी अधिकारी पुन: इसे समझें। दिल्ली जैसे महानगर में आज भी 900 तालाब हैं। उन्हें सरकार साफ करे, गहरा करे और इंतजाम करे कि आसपास के क्षेत्र में बहता वर्षा जल उस तालाब में आ सके।
दूसरा सूत्र शहर के नाले साफ कर उन पर चेकडैम बनाएं जाएं। उससे पहले सरकार को इंतजाम करना पड़ेगा कि बारिश के नालों में सीवर या सेप्टिक टैंक का पानी न जाए। नालों में चेकडैम बनाने से बहते पानी को धरती में रिसने का समय मिलेगा जिससे भूजल का स्तर बढ़ेगा। नालों और तालाबों को साफ रखने में हम सबको भी अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी। उनमें कचरा न फेंके, अपने बाथरूम का पानी केवल सीवर में ही डालें और इनके आसपास पेड़-पौधे लगवाएं।
तीसरा सूत्र वर्षाजल संचयन, हर घर, हर मुहल्ले को अपने यहां कम से कम 70 प्रतिशत बहते हुए वर्षा जल का संचय करना चाहिए। आप इस पानी को सीधा भूमिगत टैंक में जमा कर सकते हैं। इस पानी को आप बाग में, घर एवं कपड़ों की सफाई में इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि टैंक बनाने की जगह न हो तो वही पानी अपने घर के किसी सूखे ट्यूबवेल में या नए बोरवेल में डाल सकते हैं। इससे आपके क्षेत्र में भूजल बढ़ेगा और ट्यूबवेल में पानी की मात्रा बढ़ेगी। पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। आइए वर्षा जल संचय करें, हम अपना और समाज का उद्धार करें।
ज्योति शर्मा (अध्यक्ष, फोर्स-गैर सरकारी संगठन)
Path Alias
/articles/varasaajala-sancaya-sae-hai-samaaja-kaa-udadhaara
Post By: Hindi