वर्षाजल का संरक्षण


अब मानसून ने भले ही चिलचिलाती गर्मी से निजात दिला दी हो, लेकिन देश में पर्याप्त जल संकट अभी भी जस का तस ही बना हुआ है, चाहे बात पेयजल की हो या अन्य कामों के लिये जल की आपूर्ति की। देश में अधिकतर राज्यों में पहले से ही सूखे की घोषणा की जा चुकी है। और यह जल संकट सतही और भूजल दोनों के अभाव से उपजा है। चूँकि अब बारिश की बूँदों ने पूरे देश को भिगोना शुरू कर दिया है तो यह आवश्यक है कि इस वर्षाजल को यूँ ही बेकार जाने न दिया जाए, बल्कि इसका सही तरीके से संरक्षण करके इस जल को दोबारा प्रयोग में लाया जाये।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान में पूरा विश्व जिस प्रकार जल की कमी के संकट से जूझ रहा है, उसे देखते हुए अब विकल्पों पर गहनता से विचार करने की आवश्यकता है। यह एक कटु सत्य है कि पानी का कोई विकल्प नहीं है और न ही यह असीमित संसाधन है। पिछले कुछ वर्षों में यह साफ हुआ है कि जिस प्रकार भूजल का स्तर घट रहा है, उससे आने वाली पीढ़ी को जल संकट का एक बड़े स्तर पर सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार जल की कमी को काफी हद तक कम करने का एक बेहतरीन तरीका वर्षाजल का संग्रहण व संरक्षण है। यदि हर घर में वर्षाजल को संग्रहित करने के उपाय किये जाएं तो हम बेहद आसानी से जल संकट से निपट सकते हैं। जल का संग्रहण आप अपने घर की छत से लेकर आँगन, खुले मैदान, बगीचे आदि में आसानी से कर सकते हैं। वर्षाजल संग्रहण से न सिर्फ मनुष्य अपने दैनिक कार्यों को पूरा कर सकता है, बल्कि घटते भूजल स्तर को भी काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार एक दिन में प्रतिव्यक्ति पानी की खपत 120 लीटर है। यानी प्रत्येक पाँच सदस्यीय परिवार में प्रतिदिन अधिकतम एक हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इतनी बड़ी मात्रा में पानी की आपूर्ति करना अब घटते हुए भूजल के द्वारा संभव नहीं है।

हालाँकि इस साल दिल्ली राज्य सरकार ने मानसून के आने से पहले ही जल संरक्षण के लिये बैठक भी की थी, लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला। वैसे सिर्फ सरकार के प्रयासों से ही वर्षाजल का अधिकतम संरक्षण संभव नहीं है। इसके लिये है कि आम आदमी को भी वर्षाजल संग्रहण के प्रयासों में शामिल किया जाए, लेकिन मुश्किल यह है कि मेट्रो शहरों में रहने के बावजूद भी बहुत से लोगों को वर्षाजल संरक्षण की तकनीक के बारे में पता ही नहीं होता और जो लोग इस तकनीक को जानते भी हैं, वे भी इसकी महत्ता को दरकिनार कर देते हैं।

अब समय आ गया है कि सरकार न सिर्फ लोगों को वर्षाजल संरक्षण की तकनीक के बारे में समझाए, बल्कि इसकी महत्ता के बारे में भी विस्तार से बताया जाए। इतना हीह नहीं, लोगों को वर्षाजल संरक्षण के लिये प्रोत्साहित भी किया जाये। इसके लिये आम नागरिकों को कुछ रिवार्ड्स आदि देने की घोषणा की जा सकती है। साथ ही लोगों को वर्षाजल संरक्षण में व्यापक रूप से मदद भी मुहैया कराई जाये। इसके लिये बारिश के दौरान छतों पर उपलब्ध पानी को संभावित भंडारण जगहों पर संरक्षित करने और इसका पूर्ण प्रयोग करने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये। साथ ही नये भंडारण स्थान बनाये जाएं। जहाँ पर टंकियाँ काफी समय से रखी हुई हैं, उनकी भी मरम्मत की जाए। समय की मांग है कि इस समय परम्परागत जल भंडारण तकनीकों और ढाँचों को पुनः प्रयोग में लाया जाए। कहते हैं न कि बूँद-बूँद से सागर बनता है, यदि इस कहावत को अक्षरशः सत्य माना जाये तो छोटे-छोटे प्रयास एक बड़े बदलाव व समाधान में परिवर्तित हो जाएंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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