वर्षा लाती हैं कहानियाँ

वर्षा लाती है कहानियाँ
वर्षा लाती है कहानियाँ


चेरापूँजी निवासियों के पास वर्षा के नामों की बहुतायत है, सबके अपने गुण हैं।

मानसून - वर्षा लाती है कहानियाँमानसून - वर्षा लाती है कहानियाँमुझे सोहरा अर्थात चेरापूँजी का सब कुछ अच्छा लगता है-जिसे हम आज भी गर्व से धरती पर सबसे अधिक वर्षा वाली जगह मानते हैं- यहीं मेरा जन्म हुआ और पालन-पोषण हुआ, मेरी माँ ने बात करना सिखाया और इसकी सड़कों पर मैंने चलना सीखा। लेकिन मैं सबसे अधिक इसके शुद्ध, प्रचण्ड वर्षा को पसन्द करती हूँ जिसने अनेकानेक बार अपने पवित्र पानी से मुझे परिशुद्ध किया है। मेरी आत्मा इसके मेघवाही हवाओं और ग्रीष्म में वृक्षों से देवदूत की तरह लटकते कुहासा से जुड़ी है। मैं सोहरा की वर्षा के बारे में कविताएँ पढ़ते या लिखते हुए थकती नहीं -

यह प्रसिद्ध वर्षा है,
उदास छतरियों को बेवकूफ बनाती!
लड़ाकू विमानों के जमघट जैसी गुनगुनाती!
आकाश में उछलती, वृत्त बनाती!
अब यह हवा के साथ तेजी से दौड़ती है!
अब यह चारों तरफ नाचती है!
अब यह अन्धड़ों के हजारों चाबुक से सुकुमार पाँव में लिपट जाती है।
और अब यह हिंसक बरसात है ताकि नालों और सड़कों को सफेदी से रंग दे
आखिर में कुहासा आता है सबको ढँक जाता है।


इसकी विविधता और भिन्न प्रकृति की वजह से खासी समुदाय के लोग वर्षा को अनेक नामों से पुकारते हैं। स्लैप (वर्षा), लैपबाह- (भारी वर्षा,) लैपसन- (बहुत भारी वर्षा,) लैप थेह क्तांग-(टपकती वर्षा अर्थात बाँस की फोफी से टपकती वर्षा,) लैप लाई मिएत-(तीन रातों की वर्षा), लैप हाइंरियू मिएत- (छह रातों की वर्षा), लैप खाईंडाई मिएत- (नौ रातों की वर्षा), लैपफ्रिया-(शिलावृष्टि), लैप इरियोंग - (काली आँधी के साथ वर्षा), यू काईलांग- (अन्धड़ के साथ वर्षा), लैपितुंग - (गन्धयुक्त वर्षा क्योंकि यह कई दिनों तक लगातार होती है जिससे कपड़ों से दुर्गन्ध आने लगती है) लैपरो- (हल्की वर्षा), लैप बोई क्सी- (जूँ की जमघट वाली वर्षा क्योंकि यह बालों और कपड़ों पर पड़ने के बाद जूँ की तरह दिखती है।) लैप नियूप नियूप- (नरम वर्षा, काफी हल्की फुहारें), लैपशिलियांग- (आंशिक वर्षा) लैपलीनोंग-(कुछ खास इलाके में सीमित वर्षा), लैपकाईरियांग- (तिरछी वर्षा), लैपमीन्साॅ- (खतरे की वर्षा) और लैपबाम ब्रीयू- (मनुष्य का भक्षण करने वाली वर्षा)।

ये नाम केवल पर्यायवाची नहीं हैं बल्कि वर्षा के विभिन्न प्रकार या उनके गुणों व उग्रता को बताते हैं। अगर आप सांख्यिकी की पुस्तक पढ़ें तो पाएँगे कि सोहरा में प्रतिवर्ष औसतन 750 इंच (एक इंच अर्थात 2.5 सेमी) वर्षा होती है और अक्सर एक ही दिन में 29 इंच तक वर्षा हो जाती है। यह सारी वर्षा अप्रैल से सितम्बर मध्य के बीच होती है, हालांकि किसी-किसी वर्ष यह अक्टूबर के पहले सप्ताह तक जारी रहती है। लेकिन यह पूरी तस्वीर नहीं है। वर्ष की पहली वर्षा अक्सर जनवरी में आ जाती है। यह प्रारम्भिक वर्षा निरन्तर नहीं रहती और अप्रैल के आस-पास तक भीषण नहीं होती। आप देख सकते हैं कि केरल के बारे में लिखी गई पुस्तक व्हेयर रेन बोर्न कितनी गलत है। भारत में वर्षा की जन्मभूमि केरल नहीं है। वहाँ पहली वर्षा जून में होती है जबकि हम इसे जनवरी या फरवरी में ही हासिल करते हैं।

पहाड़ियों की ओर से आती और धरती को प्रचंड वेग से पार करती वर्षा लोगों को डरा सकती है, खासकर रात में क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब यह भयानक ‘सोहरा इरियोंग’ (काला तूफान) में बदल जाएगी। जब तूफान चलता है तो पेड़ उखड़ जाते हैं, जंगल उग्र तरीके से इधर-उधर डोलने लगता है, पहाड़ी गरजने लगते हैं, रात चीखती है और ऊपर लटके चट्टान नीचे लुढ़कते आते हैं जिससे सोहरा और आसपास के लोग अर्द्ध-बेहोशी सी हालत में होते हैं, जैसे-जैसे वर्षा नीचे प्रपात की तरह गिरती हुई जाती है तो बांग्लादेश की सुरमा नदी की घाटी में कहीं अधिक भयंकर स्थिति होती है। यह कई सप्ताह तक अन्धेरा छाए रहने का मौसम होता है।

जब सूर्य भी नहीं होता जो उगता और डूबता है
केवल कभी-कभी घने बादलों के बीच से झाँक जाता है
समुद्र की तरह सफेद फेनिल और प्रफुल्लित जलप्रपात के पास


मेरे कई दोस्त मेरी उत्सुकता में हिस्सेदार नहीं होते। अनवरत वर्षा के लिये मुझे इतना गर्व क्यों महसूस होना चाहिए? क्या इसने ‘थ्रू द ग्रीन डोर’ के लेखक निगेल जेन्किन्स के अनुसार ‘‘वेबफूटेड वेल्स’ के धर्म प्रचारकों को निराश नहीं किया और अनेक कम्पनी (ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी) वालों को विक्षिप्त होकर आत्महत्या के लिये मजबूर किया?’’ लेकिन अब मैं ऐसे लोगों को जो पैर भीगने से डरते हैं, कैसे समझाऊँ कि हम वर्षा होने पर आनन्द में कूदते थे। हम अपने कपड़े फाड़ लेते थे और वर्षा में नंगे बदन नहाने साबून लेकर बाहर निकल पड़ते थे। और नहाते हुए हम गाते थे-

थेर थेर लैपबाह लैपसन,
बान डूप पैट का माऊ का डिएँग
बान डूप टाट यू क्बा यू खाऊ


(बरसो, बरसो बड़ी वर्षा, महान वर्षा,
कि पत्थर और काठ टूट जाएँ,
कि चावल, गेहूँ सस्ते हो)
या यह गीत कि
आह, आह, आह बा ला थेर यू लैप सोहरा!


सिंगित कि जैन न्गी पाईजाइन्डोंग,
शोंग काली कुलाई टोम टोम।


(आह, आह, आह, कि सोहरा की वर्षा ने बम फोड़ दिया है!
हमने अपने कपड़े चुस्त कर लिये हैं और उन्हें छोटा बना लिया है
हम घोड़ागाड़ी पर चलेंगे।)

हमने इस घोड़ागाड़ी को कभी देखा नहीं, ब्रिटिश जो उन पर चढ़ते थे, काफी अरसे पहले चले गए। लेकिन उनके बारे में गीत गाने से कभी किसी ने नहीं रोका। कई बार हम अपने घरों के पास मैदानों में नंगे चले जाते, जहाँ वर्षा का पानी ऊँची घासों के बीच गहरी जगहों में इकट्ठा होता, उनमें हम लुढ़कते और नकली लड़ाई लड़ते जिसे काईंशाइत यूम (पानी में छप छप करते चलना) कहा जाता। वह बहुत ही मनोरंजक खेल था जिसे मैंने खेला है। वह अधिक मनोरंजक था क्योंकि उसमें कोई हारता नहीं था। हमारे माता-पिता इसके लिये कभी झिड़कते नहीं थे क्योंकि पानी हमेशा साफ होता था- सोहरा में कभी किचड़ नहीं होता, केवल बालू और कंकड़ होते थे। एक मशहूर कहावत आज भी इस इलाके में प्रचलित है कि उत्सलैप सोहरा यू लौंग दवाई (सोहरा की वर्षा औषधीय है।)

वर्षा का समय कहानियों का समय होता है। माताएँ सोहरा के प्रसिद्ध जगहों के बारे में बताने के लिये मानसून पूर्व अप्रैल की काली रात को चुनती हैं जिसमें हर किसी के साथ एक दुखद कथा है। आँखें चुँधियाने वाली बिजली की चमक और कानों को फाड़ने वाले वज्रपात के बीच माताएँ हमें लिकाई के बारे में बताती और उसकी भयावह भाग्य का वर्णन करती। वह अपने नाम क्षैद नोका लिकाई से अप्रसन्न थी और आखिरकार लिकाई प्रपात में छलांग कर मर गई। अगर वर्षा का समय नहीं होता तो इन कहानियों के बारे में बताने के लिये माताओं के पास समय शायद ही होता या वे इन कहानियों को बताना चाहती।
 

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