समुद्र, झील, तालाब और नदियों का पानी सूरज की गर्मी से वाष्प बनकर ऊपर उठता है। इस वाष्प से बादल बनते हैं।
ये बादल जब ठंडी हवा से टकराते हैं तो इनमें रहने वाले वाष्प के कण पानी की बूँद बन जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कमरे की हवा में रहने वाली वाष्प फ्रिज से निकाले गए ठंडे के कैन से टकरा कर पानी की बूँद बन जाती है।
बूँदों वाले बादल भारी होकर धरती के पास आ जाते हैं। बूँदें धरती की आकर्षण शक्ति से खिंचकर वर्षा के रूप में बरस जाती हैं। इस प्रकार धरती से बादल और बादल से धरती तक यात्रा करता हुआ पानी सदा गतिमान रहता है।
एशिया में यूरोप की तरह बारहों महीने वर्षा नहीं होती। मानसूनी हवाएँ वर्षा ऋतु लाती हैं और इसके बाद सर्दी और गर्मी की ऋतुओं में वर्षा आमतौर पर बहुत ही कम होती है। गर्मी की ऋतु के बाद लोग वर्षा ऋतु की प्रतीक्षा करते हैं। अगर वर्षा न हो तो आकाल पड़ जाता है। खेत सूख जाते हैं और पशु मरने लगते हैं।
जब बहुत ज़्यादा वर्षा होती है तो नदियाँ अपने किनारों से बाहर आकर बहने लगती हैं और शहर में पानी भर जाता है। इसको बाढ़ कहते हैं।
वर्षा का जल साफ़ और शुद्ध होता है। इसलिए यह शुद्ध जल का सबसे अच्छा स्रोत है। भारत के चेरापूँजी नगर में विश्व की सबसे अधिक वर्षा होती है।
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