भोपाल. राजधानी में मानसून के दौरान वर्षा के दिन लगातार कम हो रहे हैं। इस साल मानसून में अब तक 3 मिमी से अधिक बारिश वाले दिनों की कुल संख्या 31 रही है जो पिछले 20 सालों में सबसे कम है। इससे पहले 1991 में यह संख्या सबसे कम 36 दिन थी।
यही नहीं पिछले दो दशकों के बारिश के आंकड़े बताते हैं राजधानी में वर्षा वाले दिनों की औसत संख्या 1980 के पूर्व के औसत की तुलना में लगातार घट रहे हैं। सामान्यत: 3 मिमी या उससे अधिक बारिश वाले दिन को वर्षा का दिन माना जाता है।
2000 से लेकर अब तक दस सालों में भोपाल में प्रतिवर्ष ऐसे दिनों की औसत संख्या 40.6 रही है। यह पिछले दशक के औसत के मुकाबले 3.2 दिन कम है। 1990 से 1999 के बीच प्रतिवर्ष वर्षा वाले दिनों की औसत संख्या 43.8 थी। 1951 से 1980 के बीच यह संख्या और भी अधिक 44.3 थी जो आज भी मौसम विभाग के दस्तावेजों में शहर के औसत वर्षा के दिनों की संख्या के रूप में दर्ज है।
जानकार इस तरह कम हो रहे वर्षा के दिनों की दीर्घकालीन औसत को राजधानी में जलवायु परिवर्तन की दस्तक मान रहे हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, नई दिल्ली में जल-मौसम विज्ञान के सह प्राध्यापक आरके माल के अनुसार जलवायु परिवर्तन किसी स्थान पर तापमान, बारिश या आद्र्रता की दीर्घकालीन औसत (सामान्यत: एक-दो दशक या उससे अधिक) में आए परिवर्तनों के रूप में व्यक्त होता है। वर्षा के दिन कम होना और अतिवृष्टि की घटनाएं बढ़ना जलवायु परिवर्तन के कई लक्षणों में से एक हैं।
अब नहीं लगती बारिश की झड़ी
वर्षा के दिन कम होने का अनुभव शहर के नागरिक भी कर रहे हैं। पर्यावरण पर नजर रखने वाले प्रलय बागची का कहना है कि पहले सात-सात दिनों तक बारिश नहीं रुकती थी। लगातार कभी तेज तो कभी धीमी बारिश होती रहती थी। दिनभर बारिश नहीं रुकने से स्कूल कॉलेज की छुट्टी हो जाती थी। अब तो दिन में 3-4 घंटे लगातार बारिश होना ही बड़ी बात लगती है। जुलाई अगस्त में कुछ दिन तेज बारिश होती है तो कुछ दिन तेज धूप और सूखा रहता है। यह जलवायु परिवर्तन के ही लक्षण हैं।
वर्ष 1951-80 1990-99 2000-09
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औसत वर्षा के दिन 44.3 |
वर्ष 2009 2008 2007 2006 2005 2004 2003 2002 2001 2000 औसत
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वर्षा के दिन |
1999 1998 1997 1996 1995 1994 1993 1992 1991 1990 औसत |
50 40 39 46 42 |
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