वर्षा का गायन


तीखी गर्मी के बाद पहली फुहार और प्रेम से सराबोर कविताओं व गीतों का आनन्द

मानसून - वर्षा गायनमानसून - वर्षा गायनमानसून भारत में अनोखा नहीं है। वास्तव में एशिया में मानसून की एक चौड़ी पट्टी बनती है जो समूचे पूर्वी एशिया को ढँकती है। भारत में मानसून का संगीत के साथ सम्बन्ध शायद उसे विशेष बनाता है। यहाँ ढोल, तुरही और करताल द्वारा वर्षा को बुलाना आश्चर्यजनक नहीं होता, काव्यात्मक अर्थ मिलने से यह ऋतु निश्चित ही विशेष बन जाती है। बरसात के सम्बन्ध में संगीत के अनेक खूबसूरत राग-मेघ, मल्हार के सभी रूप, अमृतवर्षिनी इत्यादि हैं जो कल्पना को उड़ान देने में मानसून की शक्ति को प्रतिध्वनित करने के लिये पर्याप्त हैं।

लम्बी तीखी गर्मी के बाद तड़तड़ाहट के साथ पहली वर्षा, प्रेम की अनुभूति से सराबोर करती कविताओं और गीतों की तरह आनंदित करती हैं। इसलिये जब गंगुबाई हंगल राग वृंदावनी में ‘घन गगन गरजा’ गाती हैं, तो हमारा मन अमूर्त सौन्दर्य में डूब जाता है जो कुछ हद तक उनकी उत्कृष्ट प्रस्तुति की वजह से होता है और कुछ गीत के बोल से हमारा सम्बन्ध होने और कुछ राग के असाधारण होने से जो किसी सुन्दर रंग की तरह वर्णनातीत है और कुछ वर्षा से सम्बन्धित होने से होता है।

ऐसा क्यों होता है? क्या हम मेघ और मल्हार की लय को मौसम के साथ जोड़ते हुए बड़े हुए हैं जिसे कवियों और संगीतकारों द्वारा एक साथ रख दिया गया है? क्या इस संगीतमय रचना से हम एक खास अर्थ की अपेक्षा करते हैं या उन वाक्यांशों से स्वयं को जोड़ लेते हैं जिनमें बारिश या बरखा का उल्लेख है? या फिर इसका कारण है कि चूँकि लम्बी गर्मी की समाप्ति मानसून के आगमन से होती है जो हमें खास मानसिक अवस्था देता है जो उसी तरह जाना पहचाना है जिस तरह भारतीय क्षेत्र के आसमान में उमड़ते-घूमड़ते बादलों से भरा परिदृश्य? कारण शायद दोनों के बीच में है। मैं विश्वास करता हूँ कि हमारी रुचि और स्वाद का बहुत सारा हिस्सा सामाजिक स्तर पर लम्बे समय के प्रयोग से निर्मित होता है जिस पर हमारा पूरा नियंत्रण नहीं होता। मैं यह विश्वास भी करता हूँ कि इस तत्व की सरल और तकरीबन स्वतःस्फुर्त सराहना तभी होती है जब वह पूरी रवानी पर होती है और यह मानसून के आगमन के साथ सुमधूर संगीत के साथ उतना ही सटीक होता है।

संगीत में मानसून का जश्न असंख्य तरीकों से मनाया जा सकता है जो हमारे रोजमर्रा के जीवन में मौसम के साथ अंतरंगता ले आता है। यही कारण है कि भारत अधिक जल में उपजने वाला धान की पैदावार करने में समर्थ हुआ। इसे हमारा मौसम हमें प्रदान करता है। इस मौसम का हम इन्तजार करते रहते हैं और यह हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में स्वतःस्फुर्त आनन्द को अभिव्यक्त करता है।

इस उत्सव का आकर्षण, साधारण और आनन्दपूर्ण टेक-बरखा ऋतु आई’ में है, उपमहादेश के सांस्कृतिक इतिहास में यह गहराई से अंकित है और हम इसके आसपास अपने कलात्मक अभिव्यक्ति से अनुप्राणित होते हैं। संगीत के सन्दर्भ में ढेर सारी कथाएँ मौसम से सम्बन्धित हैं। जो तानसेन और बैजू बावरा को तनिक सा भी जानता हो, वह याद कर सकता है कि कैसे गायक दीपक के स्वतःस्फुर्त ढंग से जलने और वर्षा के होने का आहवान करते थे। ऐसी कहानियाँ आज भी रोमांचित करती हैं।

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