वॉटरमिलों को मिल रहा नया जीवन

हेस्को भारतीय सेना के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर के सीमांत गांवों में बंद पड़ी वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने का काम कर रहा है। इनमें से ज्यादातर मिलों को राज्य में अशांति की वजह से क्षति पहुंची थी।

हिमालय क्षेत्र में करीब 2 लाख वॉटर मिलें हैं, जिनसे हो सकता है 2,500 मेगावॉट बिजली उत्पादन कुछ वर्ष पहले कोटद्वार इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पी जोशी ने उत्तराखंड की बंद पड़ी वॉटर मिलों को नए सिरे से जीवंत करने का बीड़ा उठाया था। ऐसा करके पर्यावरण के अनुकूल बिजली उत्पादन की कोशिश की जा रही थी। जोशी देहरादून के गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'हेस्को’ के प्रमुख है, जो प्रदेश एवं हिमालय क्षेत्र की पुरानी वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने के लिए अनुसंधान करता है। वॉटर मिलें पर्यावरण के अनुकूल खास तरह के उपकरण होते हैं, जिनके जरिए गेहूं पीसने में पानी की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है और 1 से लेकर 3 किलोवॉट तक बिजली का उत्पादन भी किया जाता है। हिमालय क्षेत्र में फिलहाल करीब 2,00,000 वॉटर मिलें हैं।

हेस्को का आकलन है कि इन वॉटरमिलों के जरिए 2,500 मेगावॉट बिजली उत्पादन किया जा सकता है।वॉटर मिलें ठीक वैसे ही काम करती हैं, जिस तरीके से पनबिजली संयंत्रों का संचालन होता है। इसके लिए धारा के पानी को एक ढलान से गुजारा जाता है, जिसके बीच में एक पहिया लगा दिया जाता है। पहिए में ब्लेड लगे होते हैं। ऊंचाई से गिरने वाले पानी से पहिया घूमता है और टरबाइन को बिजली मिलती है। वॉटरमिल की अवधारणा प्रदेश में जोर पकड़ती गई, जिसके बाद एशियाई विकास बैंक की ओर से वहां एक सर्वेक्षण कराया गया। इसके नतीजों के मुताबिक वर्ष 2003 में प्रदेश में वॉटर मिलों की संख्या 15,449 थी, जिनमें से करीब 7,000 बंद पड़ी थीं। इसके बाद उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूरेडा) ने बंद पड़ी वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने की जिम्मेदारी ली। इसके अधिकारियों के मुताबिक वॉटर मिलों से बिजली उत्पादन के लिए केंद्र सरकार 1.10 लाख रुपये की सब्सिडी देती है, जबकि गेहूं पीसने जैसे तकनीकी काम के लिए केवल 35,000 रुपये की सब्सिडी मिलती है।

अब तक प्रदेश की लगभग 753 वॉटर मिलों को दोबारा शुरू किया जा चुका है। यूरेडा ने इस वर्ष 500 अतिरिक्त वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने का लक्ष्य रखा है। उत्तराखंड सरकार ने भी अपनी तरफ से ऐसी 9 कंपनियां स्थापित करने की सुविधाएं दी हैं, जो अब प्रदेश की वॉटर मिलों की हालत सुधारने का काम कर रही हैं। यूरेडा के निदेशक एन के झा ने बताया, 'इन वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने का मूल उद्देश्य इन्हें कुटीर उद्योग की शक्ल देना है। ताकि बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के मौके भी ईजाद किए जा सकें। झा के मुताबिक वॉटर मिल न केवल दो घर-परिवारों के लिए पर्यावरण के अनुकूल बिजली का उत्पादन करती है, बल्कि गेहूं, मसाले और तिलहन पीसने जैसे छोटे कारोबार में लोगों के लिए रोजगार के मौके भी उपलब्ध कराती है। झा ने कहा कि मसूरी के निकट क्यारकुली ऐसी ही जगह है, जहां वॉटर मिलें बढिय़ा काम कर रही हैं।

हेस्को देहरादून के शुक्लापुर इलाका स्थित अपने दफ्तर में प्रशिक्षण केंद्र चलाता है। यहां वॉटरमिल चालने का प्रशिक्षण लेने के लिए जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से भी काफी लोग आते हैं। हेस्को भारतीय सेना के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर के सीमांत गांवों में बंद पड़ी वॉटर मिलों को दोबारा शुरू करने का काम कर रहा है। इनमें से ज्यादातर मिलों को राज्य में अशांति की वजह से क्षति पहुंची थी। जोशी ने बताया कि जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा, बारामूला, कारगिल, बटालिक, द्रास, पुंछ और राजौरी जैसे इलाकों में भी कई वॉटर मिलों को दोबारा शुरू किया गया है। झा ने कहा, 'विभिन्न कार्यक्रमों के तहत हमने अब तक देश की लगभग 4,000 वॉटर मिलों को दोबारा शुरू किया है।
 

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