वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (Forest (Conservation) Act, 1980)

(1980 का अधिनियम संख्यांक 69)


{27 दिसम्बर, 1980}


वनों के संरक्षण का तथा उससे सम्बन्धित अथवा उससेआनुषंगिक या प्रासंगिक विषयों काउपबन्ध करने के लिये अधिनियम

भारत गणराज्य के इकतीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 है।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह 25 अक्तूबर, 1980 को पूर्व हुआ समझा जाएगा।

2. वनों के अपारक्षण या वन भूमि के वनेतर प्रयोजन के लिये उपयोग पर निर्बन्धन


किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य सरकार या अन्य प्राधिकारी यह निदेश करने वाला कोई आदेश, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना, नहीं देगा।

(i) कि कोई आरक्षित वन (उस राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में “आरक्षित वन” पद के अर्थ में) या उसका कोई प्रभाग आरक्षित नहीं रह जाएगा;
(ii) कि किसी वन भूमि या उसके किसी प्रभाग को किसी वनेतर प्रयोजन के लिये उपयोग में लाया जाये।
1{(iii) कि कोई वन भूमि या उसका कोई प्रभाग पट्टे पर या अन्यथा किसी प्राइवेट व्यक्ति या किसी प्राधिकरण, निगम, अभिकरण या किसी अन्य संगठन को, जो सरकार के स्वामित्व, प्रबन्ध या नियंत्रण के अधीन नहीं है, समनुदेशित किया जाये;
(iv) कि किसी वनभूमि या उसके किसी प्रभाग से, पुनर्वनरोपण के लिये उसका उपयोग करने के प्रयोजन के लिये, उन वृक्षों को, जो उस भूमि या प्रभाग में प्राकृतिक रूप से उग आये हैं, काट कर साफ किया जाये।,

2{ स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजन के लिये “वनेतर प्रयोजन” से, :-

(क) चाय, काफी, मसाले, रबड़, पाम, तेल वाले पौधे, उद्यान-कृषि फसलों या औषधीय पौधे की खेती के लिये;
(ख) पुनर्वनरोपण से भिन्न किसी प्रयोजन के लिये,

किसी वन भूमि या उसके प्रभाग को तोड़ना या काट कर साफ करना अभिप्रेत है किन्तु इसके अन्तर्गत वनों और वन्य-जीवों के संरक्षण, विकास और प्रबन्ध से सम्बन्धित या उनसे आनुषंगिक कोई कार्य अर्थात चौकियों, अग्नि लाइनों, बेतार संचारों की स्थापना और बाड़, पुलों और पुलियों, बाँधों, जलछिद्रों, खाई चिन्हों, सीमा चिन्हों, पाइप लाइनों का निर्माण या अन्य वैसे ही प्रयोजन नहीं हैं।}

3{2क. राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपील


कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 (2010 का 19) के प्रारम्भ होने पर या उसके पश्चात धारा 2 के अधीन राज्य सरकार या अन्य प्राधिकारी के किसी आदेश या विनिश्चय से व्यथित है, वह राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 3 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय हरित अधिकरण को, उस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार, अपील फाइल कर सकेगा।,

3. सलाहकार समिति का गठन


केन्द्रीय सरकार, निम्नलिखित के बारे में उस सरकार को सलाह देने के लिये एक समिति का गठन कर सकेगी जो इतने व्यक्तियों से मिलकर बनेगी जितने वह ठीक समझे :-

(i) धारा 2 के अधीन अनुमोदन का प्रदान किया जाना; और
(ii) वनों के संरक्षण से सम्बन्धित कोई अन्य विषय जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे निर्देशित किया जाये।

4{ 3 क. अधिनियम के उपबन्धों के उल्लंघन के लिये शास्ति


जो कोई धारा 2 के उपबन्धों में से किसी का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन का दुष्प्रेरण करेगा वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि पन्द्रह दिन तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।

3 ख. प्राधिकरणों और सरकारी विभागों द्वारा अपराध


(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध, -

(क) सरकार के किसी विभाग द्वारा किया गया है, वहाँ विभागाध्यक्ष; या
(ख) किसी प्राधिकरण द्वारा किया गया है, वहाँ प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो उस अपराध के किये जाने के समय उस प्राधिकरण के कारबार के संचालन के लिये उस प्राधिकरण का प्रत्यक्ष रूप से भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह प्राधिकरण भी,

ऐसे अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्रवाई किये जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा :

परन्तु इस उपधारा की कोई बात विभागाध्यक्ष को या खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि वह अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उस अपराध के किये जाने का निवारण करने के लिये उसने सब सम्यक तत्परता बरती थी।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध सरकार के किसी विभाग या उपधारा (1) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किसी प्राधिकरण द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध विभागाध्यक्ष से भिन्न किसी अधिकारी की, या, प्राधिकरण की दशा में, उपधारा (1) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट व्यक्तियों से भिन्न किसी व्यक्ति की, सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा अधिकारी या व्यक्ति भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और वह तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा।,

4. नियम बनाने की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी।

(2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

5. निरसन और व्यावृत्ति


(1) वन (संरक्षण) अध्यादेश, 1980 (1980 का 17) को इसके द्वारा निरसित किया जाता है।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अध्यादेश के उपबन्धों के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी।

सन्दर्भ


1. 1988 के अधिनियम सं० 69 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
2. 1988 के अधिनियम सं० 69 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
3. 2010 के अधिनियम सं० 19 की धारा 36 और अनुसूची 3 द्वारा अन्तःस्थापित।
4. 1988 के अधिनियम सं० 69 की धारा 3 द्वारा अन्तःस्थापित।

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