उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं मंडल को राज्य के भीतर ही आपस में जोड़ने वाली कंडी रोड के लालढांग-चिलरखाल हिस्से का निर्माण कार्य रोके जाने से व्यथित वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समक्ष फोन पर अपनी व्यथा रखी।
उन्होंने कहा कि यह सड़क मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार है। जिस तरह से नौकरशाही इसे लेकर खेल खेल रही है, वह ठीक नहीं है।
कंडी रोड के लालढांग-चिलरखाल हिस्से का काम रोकने से व्यथित हैं वन मंत्री
“जो हुआ वह गलत हुआ है। मैं बहुत दुखी हूँ। इतना दुखी पिछले 28 सालों के राजनीतिक करियर में कभी नहीं हुआ। लालढांग-चिलरखाल मार्ग के संबंध में कोई मुझसे पूछता है तो मैं बताता। मुझे विश्वास में लिया जाना चाहिए था। - वन मंत्री, उत्तराखंड”
उन्होंने सवाल किया कि अपर मुख्य सचिव एक डीएफओ के कहने पर सड़क का काम कैसे रुकवा सकता है। रावत ने बताया कि 23 मई के बाद वह सभी साक्ष्यों के साथ इस मसले पर मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे। उधर, इस प्रकरण के सुर्खियाँ बनने के बाद प्रमुख सचिव वन ने लालढांग-चिलरखाल मार्ग के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
वन मंत्री डॉ रावत की पहल पर पूर्व में 11 किमी लंबे लालढांग-चिलरखाल मार्ग के लिए वन भूमि लोनिवि को हस्तांतरित की गई थी। इसके बाद लोनिवि ने इस पर तीन पुलों के साथ ही सड़क की पेंटिंग का कार्य शुरू करा दिया। वर्तमान में वहाँ पुलों का निर्माण कार्य चल रहा था। इस बीच मामला एनजीटी में पहुंचने पर एनजीटी ने इसकी वस्तुस्थिति को लेकर वन विभाग से रिपोर्ट मांगी। एनजीटी का पत्र मिलने के बाद लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ ने लोनिवि को काम रोकने के लिए निर्देशित किया। हालांकि, तब लोनिवि ने यह कहकर ऐसा करने से मना कर दिया था कि यह सड़क शासनादेश के तहत उसे हस्तांतरित हुई थी। बाद में अपर मुख्य सचिव लोनिवि ने सड़क का काम रोकने के आदेश निर्गत कर दिए।
मामला संज्ञान में आने के बाद वन मंत्री डॉ रावत भड़क उठे और उन्होंने अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के आदेश को लेकर सवाल उठाया। इसके सुर्खियां बनने के बाद शुक्रवार को राज्य सरकार भी सक्रीय हो गई। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वन मंत्री डॉ रावत से फोन पर संपर्क साधा। डॉ रावत के अनुसार उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा - "जो हुआ वह गलत हुआ है। मैं बहुत दुखी हूँ। इतना दुखी पिछले 28 सालों के राजनीतिक करियर में कभी नहीं हुआ। लालढांग-चिलरखाल मार्ग के संबंध में कोई मुझसे पूछता है तो मैं बताता। मुझे विश्वास में लिया जाना चाहिए था।"
डॉ रावत के अनुसार उन्होंने बताया कि यदि इस मामले में कुछ गलत था तो भूमि हस्तांतरण कैसे किया गया। शासन ने ही इसका आदेश दिया। फिर यह सड़क जनता को सुविधा मुहैया कराने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अपर मुख्य सचिव एक डीएफओ के कहने पर कैसे निर्णय ले सकते हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि 23 मई के बाद वह सभी तथ्यों और साक्ष्यों के साथ उनसे मुलाकात करेंगे। उधर, लालढांग-चिलरखाल मार्ग के बारे में प्रमुख सचिव वन आनंदवर्धन ने वन विभाग से पूरा ब्योरा तलब किया है। उन्होंने बताया कि इस सड़क के लिए भूमि हस्तांतरण से लेकर अब तक की स्थिति पर समग्र रिपोर्ट मांगी गई है।
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