पश्चिम बंगाल के लाल माटी वाले जिले बीरभूम में स्थित वक्रेश्वर केवल धार्मिक कारणों से ही मशहूर नहीं है, बल्कि यहाँ के गर्म स्प्रिंग्स भी इसे खास पहचान देते हैं।
वक्रेश्वर में 10 स्प्रिंग्स स्थित हैं जहाँ से आठों पहर गर्म पानी की धाराएँ निकलती रहती हैं। कुछेक धाराओं से निकलने वाले पानी का तापमान तो 70 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है।।
कोलकाता से लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित वक्रेश्वर के इन्हीं गर्म स्प्रिंग्स से पहली बार पता चला था कि भूगर्भ में हिलियम मौजूद है।
हिलियम बहुत हल्का और निष्क्रिय गैस है। रॉकेट साइंस, मेडिकल साइंस, एटॉमिक एनर्जी, लेजर टेक्नोलॉजी समेत अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में रिसर्च करने की बात हो तो चर्चा हिलियम गैस की होती है। एक तरह से कहा जाये तो इन क्षेत्रों में शोध के लिये यह गैस अनिवार्य है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत को 0.15 बिलियन क्यूबिक फीट हिलियम की जरूरत पड़ती है जो पूरे विश्व की जरूरत का 2.3 प्रतिशत है। हिलियम के लिये भारत मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर है।
अमेरिका समेत विश्व के कई देशों के पास हिलियम का भण्डार है जिससे वे अपनी जरूरतें तो पूरी कर ही लेते हैं, साथ ही दूसरे देशों को भी हिलियम बेचते हैं। भारत में हिलियम के भण्डार को लेकर व्यापक तौर पर शोध कार्य नहीं हुआ है। अलबत्ता पूर्व में किये गए शोध इस ओर इशारा करते हैं कि भारत के भूगर्भ में भी हिलियम मौजूद है।
लगभग 4 दशक पहले यानी 1971 में फेलोज ऑफ दी अमेरिकन सोसाइटी से जुड़े प्रसिद्ध विज्ञानी सत्येंद्रनाथ बोस ने इण्डियन एसोसिएशन ऑफ कल्टिवेशन ऑफ साइंस के प्रोफेसर एस. डी. चटर्जी को वक्रेश्वर के गर्म स्प्रिंग्स पर शोध करने को कहा था। यहाँ यह भी बताते चलें कि सत्येंद्रनाथ बोस ने वर्ष 1924 में महान विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ मिलकर एक अणु की खोज की थी जिसे बोस के नाम पर ‘बोसाणु’ नाम दिया गया था।
असल में वक्रेश्वर में हिलियम की मौजूदगी की खोज करने का श्रेय पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय को जाता है। विधानचंद्र राय सत्तर के दशक में पश्चिम जर्मनी गए थे। वहाँ उन्होंने गर्म स्प्रिंग्स के औषधीय गुणों को देखा था। उसी वक्त उन्हें वक्रेश्वर के गर्म स्प्रिंग्स का खयाल आया। पश्चिम जर्मनी से लौटकर उन्होंने सत्येंद्रनाथ बोस से कहा कि वे वक्रेश्वर के गर्म स्प्रिंग्स में औषधीय गुणों का पता लगाएँ। उक्त स्प्रिंग्स में औषधीय गुणों की खोज ही हिलियम तक ले गई।
सती के 51 पीठों में से एक है-वक्रेश्वर शक्तिपीठ। इस शक्तिपीठ की बाउंड्री के भीतर गर्म स्प्रिंग्स स्थित हैं। स्प्रिंग्स को बांग्ला में ‘प्रसवन’ कहा जाता है। वक्रेश्वर राज्य का एकमात्र स्थान है, जहाँ स्प्रिंग्स स्थित हैं।
वक्रेश्वर शक्तिपीठ की स्थापना के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं। इनमें एक कहानी सतयुग से जुड़ी है। माना जाता है कि शिव के विवाह में वक्र ऋषि, जिन्हें अष्टवक्र (वक्र ऋषि के शरीर में 8 गाँठ थे जिस कारण उनका नाम वक्र ऋषि पड़ा था) भी कहा जाता था, आमंत्रित थे। इस मौके पर इंद्र देव ने वक्र ऋषि का अपमान कर दिया था। इंद्र के अपमान से तिलमिलाये वक्र ऋषि ने कई वर्षों तक वक्रेश्वर में घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने वरदान दिया था कि उनकी पूजा जो भी करेगा उसका कल्याण होगा। वक्रेश्वर को लेकर दूसरी कथा यह है कि सती के अग्नि में जल जाने के बाद शिव उनके शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। यह देखकर विष्णु ने शिव का मोह भंग करने के लिये सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। 51 जगहों पर सती के अंग गिरे थे। वक्रेश्वर में सती का सिर और भौं गिरा था। एक अन्य पौराणिक कथा में कहा गया है कि अष्टवक्र ऋषि ने शिव की अराधना करने के लिये इस जगह को चुना था और लगभग 10 हजार वर्षों तक यहाँ घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर शिव ने कहा था कि वक्र ऋषि की पूजा करने वालों को बहुत पुण्य मिलेगा। शिव ने विश्वकर्मा को आदेश दिया कि तपस्या स्थल पर मन्दिर बनाए जाएँ।
वक्रेश्वर शक्तिपीठ में मुख्य मन्दिर शिव का है। इसके अलावा कई दूसरे देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।
शक्तिपीठ में प्रवेश कर कुछ कदम चलने के बाद एक जलकुण्ड है जिसमें हाथी की मुँहनुमा आकृतियों से गर्म पानी की धाराएँ निकलती रहती हैं। सबसे गर्म पानी अग्निकुण्ड से निकलता है। अग्निकुण्ड से निकलने वाले पानी का तापमान लगभग 80 डिग्री सेल्सियस है।
वक्रेश्वर छोटानागरपुर पठार क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टानें हैं और इन्हीं चट्टानों से होकर गर्म पानी की धाराएँ निकलती हैं।
जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रंजीत कुमार मजुमदार ने एक शोध में कहा है, ‘वक्रेश्वर के भूगर्भ में दो से चार लीथोलॉजिकल परतें हैं जिनसे होकर गर्म पानी की धाराओं का बहिर्गमन होता है।’
जिओलॉजिस्ट प्रो. असित राय कहते हैं, ‘भूगर्भ में रेडियोएक्टिव सब्सटेंस हैं जिनमें ब्रेकडाउन होने से पानी गर्म हो जाता है।’ वे बताते हैं, ‘रेडियोएक्टिव सब्सटेंस के ब्रेकडाउन होने से पानी गर्म तो होता ही है साथ ही रासायनिक प्रक्रिया होने से हिलियम समेत दूसरी गैसें भी निकलने लगती हैं।’
वक्रेश्वर की इन गर्म स्प्रिंग्स से निकलने वाले पानी में कई तरह के रसायन मिले होते हैं जिनसे कई रोगों का उपचार होता है। गर्म जल के कुण्ड में स्नान करने की पूरी व्यवस्था है। कपड़े बदलने के लिये क्लॉक रूम भी हैं। बाग-बगीचों का बेहतर रख-रखाव किया जाता है और साफ-सफाई पर भी खास जोर रहता है।
बहरहाल, विधानचंद्र राय के निर्देश पर हुए शोध में पाया गया कि वक्रेश्वर के गर्म स्प्रिंग्स में हिलियम है। हिलियम के अलावा और भी कई तरह के रसायन होने की पुष्टि हुई। वक्रेश्वर के बाद इससे महज 25 किलोमीटर दूर झारखण्ड के तांतलोई में स्थित गर्म स्प्रिंग्स को लेकर शोध किया गया तो इसमें भी हिलियम की मौजूदगी पाई गई। शोधानुसार वक्रेश्वर के पानी में 1.8 वोल्यूम प्रतिशत हिलियम मौजूद था।
वर्ष 1990 में वक्रेश्वर में हिलियम रिकवरी प्लांट स्थापित किया गया था जो भारत के लिये ऐतिहासिक घटना थी। इसके लगभग एक दशक बाद यानी वर्ष 2002 में कोलकाता स्थित साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स में हिलियम प्यूरिफिकेशन प्लांट लगाया गया था जिसमें हिलियम का शुद्धीकरण कर उसका इस्तेमाल होता था। सम्प्रति दोनों ही प्लांट (वक्रेश्वर और कोलकाता के) निष्क्रिय पड़े हुए हैं और वक्रेश्वर के गर्म स्प्रिंग्स से निकलने वाले पानी को हिलियम निकाले बिना ही नदी में बहा दिया जाता है।
वक्रेश्वर और तांतलोई में किये गए शोध से वैज्ञानिकों को बहुत उत्साह मिला तथा उन्होंने देश के दूसरे गर्म स्प्रिंग्स पर रिसर्च किया। रिसर्च में पता चला कि भारत के कम-से-कम 30 गर्म स्प्रिंग्स में हिलियम मौजूद हैं। ये गर्म स्प्रिंग्स पश्चिम बंगाल के अलावा झारखण्ड, ओड़िशा, मेघालय, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मु-कश्मीर, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में हैं। महाराष्ट्र के कुल 9 गर्म स्प्रिंग्स या गर्म जारा (मराठी में स्प्रिंग्स को जारा कहा जाता है) में हिलियम के होने के प्रमाण मिले हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इन गर्म स्प्रिंग्स का दोहन किया जाये तो हिलियम की कमी कुछ हद तक पूरी की जा सकती है। उनका कहना है कि हिलियम का दोहन करना इसलिये भी जरूरी है क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में हिलियम की कीमत दिनों-दिन बढ़ रही है और अमेरिका हिलियम के निर्यात पर लगाम लगा रहा है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (दुर्गापुर) के भौतिक विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. हीरक चौधरी कहते हैं, ‘पश्चिम बंगाल के बीरभूम से लेकर झारखण्ड के दुमका तक भूगर्भ में प्रचूर मात्रा में हिलियम मौजूद है।’
पृथ्वी जब अस्तित्व में आई तभी से इसके कुछ हिस्सों में हिलियम का भण्डार बन गया जबकि कुछ जगहों पर रेडियोएक्टिव सब्सटेंस के चलते नियमित तौर पर हिलियम बनता रहता है। डॉ. हीरक चौधरी बताते हैं, ‘बीरभूम और दुमका क्षेत्र में दोनों प्रकार के हिलियम मौजूद हैं।’
सरकार की योजना है कि हिलियम की प्रचूरता वाले क्षेत्रों में ड्रिलिंग कर हिलियम का दोहन किया जाये। हिलियम दोहन की सम्भावनाएँ तलाशने का जिम्मा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (दुर्गापुर) को दिया गया था। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (दुर्गापुर) द्वारा बनाई गई विशेषज्ञों की टीम में डॉ. हीरक चौधरी भी शामिल थे। डॉ. चौधरी ने कहा, ‘कुछ आधिकारिक कारणों से यह प्रोजेक्ट बन्द हो गया लेकिन आज नहीं तो कल भूगर्भ से हिलियम का दोहन किया जाएगा।’
विशेषजों की सलाह है कि हिलियम का दोहन किया जाये लेकिन इसमें इस बात का जरूर खयाल रखा जाना चाहिए कि इससे गर्म स्प्रिंग्स और भूगर्भ की प्रकृति के साथ कोई छेड़छाड़ न हो।
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Post By: RuralWater