इनके मद्देनजर प्रधानमंत्री ने कई बार दोनों राज्यों के राजनीतिकों को संयम बरतने की सलाह दी है। यह सही है कि मुल्लापेरियार तमिलनाडु के खासकर मदुरै, थेनी, शिवगंगा और रामनाथपुरम जिलों के लिए बहुत मायने रखता है। ये सूखे इलाके हैं। मुल्लापेरियार बांध इन जिलों के लिए पेयजल का बड़ा सहारा तो है ही, सिंचाई का भी जरिया रहा है। लेकिन लीज की अवधि पूरी होने में आठ सौ चौरासी साल बाकी हैं।
जल विवाद को लेकर दो पड़ोसी राज्यों के बीच तकरार की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं लेकिन कुछ दिनों से तमिलनाडु और केरल के बीच जो तनाव चला आ रहा है उसके पीछे मसला नदी जल के बंटवारे का नहीं है। झगड़ा मुल्लापेरियार बांध को लेकर है। यों यह बांध पहले भी कई बार दोनों राज्यों के बीच खटास का कारण बना है। लेकिन इन दिनों स्थिति जितनी गंभीर नजर आ रही है वैसी नौबत शायद पहले कभी नहीं आई थी। विडंबना यह है कि मुल्लापेरियार केरल की जमीन पर बना है, मगर इसका नियंत्रण और देखरेख तमिलनाडु के लोक निर्माण विभाग के हाथ में है। केरल के इडुक्की जिले में आठ हजार एकड़ जमीन पर बना यह बांध एक सौ सोलह साल पुराना है और इसे त्रावणकोर के तत्कालीन राजा ने मद्रास प्रेसिडेंसी को नौ सौ निन्यानवे साल की लीज पर दिया था।इस बांध से दोनों राज्यों को लाभ हुआ है। लेकिन समस्या यह है कि इडुक्की समेत केरल के कई जिलों के लोग अब इस बांध को एक बड़े खतरे के रूप में देखते हैं। हुआ यह कि इस इलाके में हाल में हल्के भूकम्प के झटके आए थे। खबर यह भी है कि एक सदी से भी ज्यादा पुराने मुल्लापेरियार में दरारें पड़ने लगी हैं। लिहाजा, केरल की सभी राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठन चाहते हैं कि मुल्लापेरियार की जगह दूसरा बांध बनाया जाए। केरल सरकार ने यह पेशकश भी कर दी है कि वह अपने खर्चे से नया बांध बनाने और यह सुनिश्चित करने को तैयार है कि अभी तमिलनाडु को जितना पानी मिल रहा है उसमें कोई कमी नहीं होगी। लेकिन तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियों को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं है। उनका मानना है कि केरल के राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन नाहक खतरे का माहौल बनाकर अपने राज्य के लोगों की भावनाएं भड़का रहे हैं।
तनातनी की हालत यहां तक पहुंच चुकी है कि तमिलनाडु और केरल के सांसद अपने-अपने राज्य के पक्ष में दखल देने के लिए प्रधानमंत्री पर लगातार दबाव डाल रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उग्र प्रदर्शन और भीड़ पर पुलिस के लाठीचार्ज की घटनाएं भी हुई हैं। इनके मद्देनजर प्रधानमंत्री ने कई बार दोनों राज्यों के राजनीतिकों को संयम बरतने की सलाह दी है। यह सही है कि मुल्लापेरियार तमिलनाडु के खासकर मदुरै, थेनी, शिवगंगा और रामनाथपुरम जिलों के लिए बहुत मायने रखता है। ये सूखे इलाके हैं। मुल्लापेरियार बांध इन जिलों के लिए पेयजल का बड़ा सहारा तो है ही, सिंचाई का भी जरिया रहा है। लेकिन लीज की अवधि पूरी होने में आठ सौ चौरासी साल बाकी हैं। हो सकता है केरल के लोग अपने अंदेशे को अतिरंजित रूप में पेश कर रहे हों, मगर किसी बांध के सुरक्षित ढंग से काम करते रहने की एक सीमा होती है।
इसलिए लीज की दलील प्रासंगिक नहीं कही जा सकती। लिहाजा, मुल्लापेरियार की जगह नए बांध की केरल की पेशकश पर विचार किया जाना चाहिए। जब तक वैकल्पिक बांध नहीं बन जाता, तब तक मुल्लापेरियार की दुरुस्ती पर खास ध्यान दिया जाए और इसके नियंत्रण और देखरेख के लिए केंद्र के किसी आला अधिकारी की अध्यक्षता में एक प्राधिकरण बने, जिसमें दोनों राज्यों के प्रतिनिधि समान संख्या में हों। यों यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है और उसने भी दोनों राज्यों के लोगों को समझदारी और संवेदनशीलता दिखाने को कहा है। लेकिन ऐसे विवाद राजनीतिक सूझबूझ और इच्छाशक्ति से ही हल किए जा सकते हैं। यह बेहद अफसोस की बात है कि केंद्र सरकार अभी तक इस मामले में कोई ठोस पहल करने में नाकाम रही है।
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