यूं तो ‘जल’ मानव संस्कृति का अभिन्न अंग है। इंसान के जीवन में सबसे आवश्यक तत्वों में से एक है ‘जल’, लेकिन हमने जल को कभी इतनी महत्ता नहीं दी और उसका अति-दोहन करते रहे। एक आंकलन के मुताबिक हर दिन हम भारतीय जागरुकता के अभाव में करीब 45 करोड़ लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। नदियों, तालाबों सहित विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों के सूखने के बाद भी हम वर्षाजल संग्रहण के प्रति भी कम जागरुक हैं, जिस कारण हर साल 90 प्रतिशत से ज्यादा वर्षाजल व्यर्थ बह जाता है। नतीजतन, भारत इतिहास के सबसे भयावह जल संकट का सामना कर रहा है, लेकिन बेंगलुरु के एक इंजीनियर और जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करते हुए सैेंकड़ों पानी के स्रोतों को सहेजने का कार्य करने वाले विश्वनाथ एस न केवल वर्षा जल संग्रहण करते हैं, बल्कि ग्रे-वाटर से अपनी छोटी-सी छत पर चावल और सब्जियां भी उगाते हैं। वें 100 स्क्वायर फीट की छत से एक लाख लीटर पानी हर साल संग्रहित करते हैं।
बेंगलुरु में विश्वनाथ का एक छोटा-सा घर है। घर की छत करीब 100 स्क्वायर फीट है। इसी छप पर वें चावल और सब्जियां उगाते हैं। छत पर खेती करने के लिए यदि वें छत पर मिट्टी डालकर खेती करेंगे तो, इससे घर खराब हो जाएगा। पूरे घर में सीलन आएगी, लेकिन पेड़-पौधें लगाने के लिए विश्वनाथ ग्रो-बैग्स, ड्रम और गमलों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन गमलों में चावल नहीं उगाए जाते। चावल उगाने के लिए प्लास्टिक शीट का यूज करते हैं। इसी प्लास्टिक शीट से ग्रो-बैग बनाया है। इसके अलावा प्लांटर्स में भी चावल लगाते हैं। इसके लिए ग्रो-बैग और प्लांटर्स में मिट्टी भरते हैं और सूखे पत्तों से मल्चिंग करते हैं। इसके बाद चावल बोने के लिए जमीन तैयार हो जाती है और फिर सीधे चावल रोपते हैं। महीने में एक बार इसमें से खर-पतवार निकालते हैं।
अच्छी फसल के लिए खाद की जरूरत पड़ती है। विश्वनाथ खाद बाजार से नहीं लाते हैं, बल्कि फसल को पोषण देने के लिए घर पर बनी जैविक खाद को उपयोग करते हैं। खाद वे खुद बनाते हैं। जैविक खाद बनाने के लिए छत पर कंपोस्टि यूनिट भी लगाई है। उनके घर में शौचालय में फ्लश के लिए पानी का उपयोग नहीं करता पड़ता है, बल्कि मल की खाद बन जाती है। दरअसल, इकोसन शौचालय का उपयोग करते हैं। ये एक प्रकार का ऐसा शौचालय है, जिसमें मल त्याग के बाद फ्लश की जरूरत नहीं होती है। कुछ समय बाद मल खाद बन जाता है। दूसरी खाद गीले कचरे के रूप में उनके किचन से आती है। इन दोनों को ही छत पर खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।
विश्वनाथ के घर का डिजाइन भी काफी आकर्षक है। पर्यावरण के अनुकूल बने उनके घर में रोशनी और हवा पर्याप्त रूप से आती है। जिस कारण उन्होंने घर में पंखा और एसी नहीं लगवाए हैं। खाद के अलावा फसल को पानी की जरूरत भी पड़ती है। पानी जरूरत के लिए वे सारा बारिश से ही इकट्ठा करते हैं। इसके लिए घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया गया है। 100 स्क्वायर फीट की छोटी सी छत से वें हर साल 1 लाख लीटर तक पानी संग्रहित करते हैं। यही पानी पीने से लेकर घर के काम में उपयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के रूप में अधिक उपयोग ‘सौर ऊर्जा’ का होता है, जो घर की 70 प्रतिशत बिजली की जरूरत को पूरा करता है। यही नहीं, वे खाना पकाने के लिए सौर कूकर का उपयोग करते हैं। विश्वनाथ के इस पूरे कार्य की खास बात ये है कि वें बड़े शहरों में जल संरक्षण करने का सबसे सफल उदाहरण हैं, क्योंकि वे छत पर फसल में साफ पानी नहीं, बल्कि ग्रे-वाटर का उपयोग करते हैं। यानी ऐसा पानी जो बाथरूम, बर्तन धोने या कपड़े धोने आदि से निकलता है। इस ग्रे-वाटर को साफ करने के लिए उन्होंने घर पर ही रीड बेस्ड सिस्टम लगाया है। ग्रे-वाटर को साफ करने के लिए उन्होंने पांच ड्रम रखे हैं और इन सभी ड्रम्स को आपस में पाइप से जोड़ा है। पहले ड्रम में रीड बेस्ट सिस्टम लगाया गया है। मोटर की मदद से इसी पहले ड्रम में ग्रे-वाटर जाता हैं। फिर यहां दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे ड्रम में जाता है।
ये पांच ड्रम ग्रे-वाटर को साफ करने की एक प्रक्रिया है, जिसमें पांचवे ड्रम तक पहुंचते पहुंचते पानी साफ हो जाता है। पांचवे ड्रम से एक पाइप बाहर की तरफ आ रहा है, जिससे इस पानी का उपयोग छत पर लगे गार्डन और फसल को पानी देने के लिए किया जाता है। छत पर लगा गार्डन प्राकृतिक और जैव विविधता का भंडार है। गार्डन न केवल घर को ठंडा रखता है, बल्कि यहां 32 किस्मों के पक्षी भी आते हैं। इस गार्डन से न केवल 120 किलो चावल की पैदावर हर साल होती है, बल्कि एक टाइम की हरी सब्जी भी मिलती है। खास बात ये है कि इससे वे चावल की तीन फसले लेते हैं। वास्तव में, इस प्रकार के कार्य वर्षा जल संरक्षण के क्षेत्र में काफी अच्छे प्रयास हैं, जिन्हें कर व्यक्ति को अपने अपने स्तर पर करना। ताकि देश में मंडारते संकट को कम किया जा सके।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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