विश्व पर्यावरण दिवस पर झारखण्ड के मुख्यमन्त्री का सन्देश

प्रिय मित्रों,
‘विश्व पर्यावरण दिवस’ की आप सबों को ढेर सारी मंगलकामनाएँ एवं बधाइयाँ।

हर वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ का दिन हमें यह स्मरण कराता है कि यह पृथ्वी और प्रकृति हमारी माँ है और हम इसके पुत्र। सुयोग्य पुत्र की भाँति हमें हर पल इस बात की चिन्ता करनी है कि धरती माँ की हरी चुनर कैसे सुरक्षित रहे? यह हरी चुनर और कुछ नहीं बल्कि जीवों और वनस्पतियों की विविधता है, जिसे हम पर्यावरण कहते हैं।

औद्योगिकीकरण के साथ, मानव इतिहास में पहली बार आमतौर से पर्यावरण संकट की अवधारणा सामने आई, जिसे सभ्यतागत संकट भी कहा जा सकता है। प्रकृति को हुए नुकसान अपने पैमाने और गहनता दोनों स्तरों पर अभूतपूर्व थे। इसने चिन्तकों-विचारकों को चौकन्ना कर दिया, जिन्होंने पर्यावरण की दुर्दशा की नई प्रक्रियाओं से निबटने के तरीकों की तलाश शुरू की। इस तरह ‘पर्यावरण आन्दोलन’ की शुरुआत हुई। प्रकृति के साथ तारतम्य और लगाव भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताओं में सम्मिलित रहा है। जहाँ भारत का आदिवासी समाज शाल वृक्षों के समूह में ही परमपिता परमेश्वर की अवधारणा करता है। उसकी ही अराधना करता है। वहीं वट वृक्ष, पीपल वृक्ष और हर घर के आँगन में मौजूद तुलसी के पौधे के प्रति भी अन्य भारतीय श्रद्धा एवं भक्ति से शीश नवाते हैं, अर्घ्य देते हैं। सैकड़ों वैदिक ऋचाएँ एवं संस्कृत के श्लोक वृक्षों की महिमा गान के लिये हमारे ऋषि-मुनियों-कवियों ने रचे।

किन्तु पर्यावरण के प्रति वैज्ञानिक चेतना के साथ सुचिन्तित कार्रवाइयाँ औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ विकसित हुई। तब से ये दोनों आन्दोलन साथ-साथ आगे बढ़ रहे हैं। एक आन्दोलन ने निसर्ग (Nature) के सौन्दर्य के सराहा और उसके प्रति वैज्ञानिक चिन्तन को आगे बढ़ाया, दूसरे ने प्रकृति के विनाश की गति को तेज किया। अब यह गति इस स्तर पर पहुँच गई है कि ‘वैश्विक तपिश’ (Global Warming) मानव के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती बन कर समाने खड़ी है और पर्यावरणवादी आन्दोलन के विचार अभी क्रियान्वयन के स्तर पर पहुँच नहीं पाए हैं। यह सबसे अधिक चिन्तनीय विषय है। सम्भवतः ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ उसी चिन्तन को क्रियान्वयन के रूप में ढालने का दिन है, जिस पर हमें गम्भीरतापूर्वक कार्य करना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी हमें बेहतर कामों के लिये याद करे। वह पानी, हवा और मिट्टी को बर्बाद करने वालों के रूप में हमारी पीढ़ी से घृणा न करे।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि ‘साउथ एशिया फोरम फॉर एनर्जी एफिशिएंसी’ ने इस वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ समारोह के अवसर पर विमर्श का विषय ‘झारखण्ड में ऊर्जा उत्थान’ रखा है।

झारखण्ड मेें निसर्ग (Nature) ने अपनी सम्पदा खुले हाथों से लुटाई है। हमारे प्रान्त को प्रकृति माँ ने खुले हृदय से आशीर्वाद और वरदान दिया है। हरी-भरी वनराई के साथ सदियों से संजोई खनिज सम्पदा पूरे भारत को ऊर्जा आपूर्ति में सक्षम है। किन्तु अब विज्ञान और विकास के इस उच्चतम अवस्था पर हमें यह विचार करना होगा कि संसाधनों का दोहन (Milking) करना है कि शोषण करना है। विकास टिकाऊ तभी होगा जबकि प्रकृति से उतना ही लिया जितना इस पीढ़ी को आवश्यकता हो ताकि अगली पीढ़ी को बेहतर पर्यावरण सौंप कर हम जा सकें।

अतएव, अक्षय ऊर्जा, सौर ऊर्जा एवं ऊर्जा के क्षेत्र में नवीनतम नवाचरों (Inovatives) का झारखण्ड प्रान्त में खुले हृदय से स्वागत है। ‘ग्रीन एनर्जी’ में ही मानवता का भविष्य छुपा है। दूसरी ओर माननीय प्रधानमन्त्री के ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य को भी न केवल धरातल पर उतारना है बल्कि उसे तेज गति प्रदान करने में भी झारखण्ड को महती भूमिका निभानी है। न्यूनतम प्रदूषण एवं अधिकतम उत्पादकता-दक्षता नए युग का नया दिशा संकेतक है। अतएव एक सुचिन्तित सन्तुलन के साथ प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने में मददगार सारे उद्यमी साथियों, उद्योगपति मित्रों और नवाचरों (Inovatives) में लगे तकनीक विशेषज्ञों का झारखण्ड खुले मन से स्वागत करने को प्रतीक्षारत है।

‘साउथ एशिया फोरम फॉर एनर्जी एफिशियंसी’ जैसी संस्था को मैं अपनी मंगलकामनाएँ अर्पित करता हूँ जिन्होंने इतने समसामयिक विषय पर विमर्श आयोजित किया। वे झारखण्ड में भी ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, उन्हें हमारा सहयोग मिलेगा।

आप सभी सुधीजनों को एक बार पुनः ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ की हार्दिक बधाई।

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Post By: RuralWater
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